सतगुरु नानक प्रगट्या, मिट्टी धुंध जग चाननहोया..
गुरमीत सिंह
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सतगुरु नानक के आगमन दिवस को 'प्रकाश पर्वÓ के रूप में मनाया जाता है। यह प्रकाश बाहरी नहीं, अपितु अंदर के अंधकार को दूर करने के संकल्प का दिन है।15वी शताब्दी के उस कालखंड में जब देश पाखंड, आडंबर, भेदभाव और विदेशी हमलावरों के आक्रमणों से जूझ रहा था, तब नष्ट हो रही मानवता को जीवन के सही उद्देश्यों का बोध कराने, तथा जीवन के अंतस को प्रकाशित कर अनंत दिव्य शक्ति से जोड़ने के ध्येय के साथ गुरु नानक ने जग को प्रकाशित किया। इसीलिए भाई गुरुदास ने उनके आगमन को अंधकार से प्रकाश की यात्रा की संज्ञा देते हुए कहा, 'सतिगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चाननहोयाÓ।
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव (जिसका नाम आगे चलकर ननकाना पड़ गया) में कार्तिक पूर्णिमा को हुआ। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं, परंतु इनका जन्म दिवस हर साल कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन ही मनाया जाता हैै। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था, जबकि बहन बेबेनानकी थीं। गुरु साहिब बचपन से ही प्रखर बुद्धि के स्वामी थे, परंतु सांसारिक मोहमाया के प्रति काफी उदासीन रहा करते थे। उनका सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत होता था। उनके बाल्यकाल में कई ऐसी चमत्कारी घटनाएं हुई, जिसके बाद लोग उन्हे दिव्य शख्सियत मानने लगे। गुरुनानकजी ने संसार की सत्यता को समझने के लिए युवावस्था में ही सुल्तानपुर लोधी के समीप में बहने वाली बेइन नदी में जल समाधि ली वे जब 3 दिवस बाद प्रकट हुए तो उनके मुखमंडल पर दिव्य चेतना का आलोक तथा वाणी में ईश्वरीय संदेशों की अभिव्यक्ति का अनुपम संगम था। इस जगत को मिथ्या बताते हुए उन्होंने कहा कि 'एक ओंकार सतनामÓ ये जगत सब परमेश्वर की माया है, और हम सब अनंत दिव्य चेतना के अंश हैं।
ईश्वर एक है तथा सत्य है, के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए, श्रीगुरुनानक जी ने अपनी दिव्य वाणी से संदेश दिया 'इक ओंकार सतनाम, करता पुरखुनिरभउ। निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसादिÓ अर्थात इस आस्तित्व के रचयिता एक ही हैं, जिन्होंने एक ओंकार के अनहत नाद की अनंत ऊर्जा से संपूर्ण अस्तित्व की रचना की है। अस्तित्व रचयिता परम पिता परमेश्वर सभी तरह के भय से मुक्त हैं, निरवैर है, उनके लिए समस्त मानवता एक समान है, काल से परे अजन्मे स्वयं ही प्रकट हुए हैं। गुरुओं के मार्गदर्शन में ईश्वर की प्राप्ति गुरु प्रसाद की भांति है। यह मूल मंत्र ही समस्त मानवता के लिए जीवन दर्शन है तथा परम पिता परमेश्वर के सानिध्य में रहते हुए समानुभूति के साथ जीवन यात्रा करने का अप्रितम संदेश तथा उपदेश है।
तत्कालीन विषम सामाजिक परिस्थितियों के परिमार्जन हेतु गुरु जी ने विभिन्न स्थानों पर चार बार यात्राएं की जो कि उदासियों के नाम से जाना जाता है। अपने सम्पूर्ण भ्रमण में सामाजिक समरसता, कुरीतियों के नाश, अहम के निर्मूलन तथा सदैव ईश्वर के सामीप्य में रहने के उपदेश दिए। उन्होंने अपनी विनम्र वाणी से व्यक्त किया कि मानवता को अपनी यात्रा के प्रत्येक आयाम में चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, परमात्मा का स्मरण तथा सानिध्य नहीं भूलना है। जिस स्रोत के हम अंश है, उसकी भक्ति में ही जीवन का सर्वोच्च आनंद समाहित है। उनके उपदेशों को सुन कर अथाह जनता का अनुकरण तथा समर्पण देख बाबा नानक कहते हैं कि अनंत की ज्योत का प्रकाश समस्त श्रवण करने वालों के हृदय को आलोकित होता देख, ईश्वर भी आनंदित होता है।
जटिल सामाजिक ताने बाने तथा पाखंड की कुरीतियों को देख कर नानक ने मानव के अहम के निर्मूलन हेतु, मानवता की सेवा के लिए लंगर प्रारंभ कराए, जिसमें प्रत्येक धर्म, जाति, वर्ग के लोग, छुआछूत से ऊपर उठकर, प्रसाद ग्रहण करते थे। कालांतर में यही सेवा सिख पंथ ने निरंतर रखते हुए, समाज कल्याण के अन्य कई कार्य भी सेवा में सम्मिलित कर, गुरुनानक देव जी के संदेशों के निहितार्थ को सार्थक किया है, तथा अब कमजोर और वंचितों की सेवा हेतु अनुपम प्रयास किए जा रहे हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर जब देश चंद्रमा के प्रकाश से आलोकित हो रहा है ,श्री गुरुनानक का प्रकाश पर्व हमें स्मरण दिलाता है कि समाज की विषमताओं तथा विभिन्न भेद भावों से ऊपर उठकर अपने व्यर्थ के अहंकार को तिलांजलि देकर हम अपने समाज में समरसता तथा वंचितों की सेवा का दीप जलाएं तथा श्री गुरु नानक की वाणी के निहितार्थ को अंगीकार करें। इस प्रकाश पर्व के प्रकाश से अपना अंतस प्रकाशित कर ईश्वर की भक्ति के कीर्तन को श्रवण करें तथा इस धरा पर अपने होने को सार्थक करें।