भगवान महादेव के अवतार श्री मार्तंड भैरव
चंपाषष्ठी पर्व पर विशेष..!
पुण्यवान धर्मपुत्र सप्तऋषि कठोर तपस्या के लिए 'मणिचूलÓ पर्वत पर गए। इनकी महान पवित्र सात पत्नियां भी इनके साथ थीं। इस पर्वत पर सप्त ऋषियों द्वारा कठिन तपस्या प्रारंभ की गई। मणिचूल पर्वत पर एक मणिपुर नामक विशाल नगर था,जिसका स्वामी 'मल्लासुरÓ व उसका एक छोटा भाई 'मणिसुरÓ था। दोनों भाई के राज्य में नगरवासी सुखमय, आनंदमय, धन,धान्य, अन्न सब भरपूर मात्रा में तथा अपनी प्रजा का वे पूरा ध्यान रखते। विष्णु प्रिय तथा ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के फलस्वरुप मल्ला-मणि अजेय हो गये। मल्ला व मणि को अहंकार आ गया उनकी मति-बुद्धि भ्रष्ट हो चली। दोनों भाइयों ने पृथ्वी के साथ तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया यहां तक कि राजा इंद्र भी इनकी आज्ञा का पालन करने लगे। प्रजा को आदेश दिया कि वे सब मल्ला-मणि की पूजा करें हम ही इस धरती पर भगवान और सब कुछ हैं।
पर्वत पर सप्तऋषि अपनी साधना कर रहे थे,वहां भी इन्होंने सब कुछ तहस-नहस कर उत्पात मचा दिया। लोग इनके आतंक से इतने भयभीत हो चले कि अपनी जान बचाने के लिए कई लोगों ने औपचारिक तौर पर इनकी पूजा भी शुरू कर दी। यह सब देख सप्त ऋषियों में क्रोध के साथ उदासी भी छा गई।अत:मदद के लिए ईश्वर से पुकार की, नारायण- नारायण का जयघोष करते हुए उनके पास देव ऋषि नारदजी आए। ऋषियों ने पूरी घटना को विस्तार से कहा। नारद जी ने उन्हें देवराज इंद्र के पास सहायता के लिए पहुंचाया और कहा कि वह देवताओं के राजा है। इंद्र ने मल्ला-मणि के आगे अपनी असमर्थता जताई। इंद्र ने कहा आपकी मदद भगवान विष्णु कर सकते हैं,आप उनकी सहायता लें। ऋषिगण भगवान के पास गए, श्री हरि ने भी बह्मा के आशीर्वाद स्वरुप कहा कि वे दोनों भाई अत्यधिक शक्तिशाली हो चुके हैं। मैं उनका वध नहीं कर सकता। आप देवाधिदेव महादेव के पास जाएं अब वे ही हैं जो आपकी सहायता कर सकते हैं। उनसे आप विनती करें। सप्तऋषि कैलाश पर महादेव के पास जाकर मल्ला-मणि दैत्यों द्वारा हो रहे अत्याचारों की सम्पूर्ण घटना के बारे में बताया। महादेव सुनकर ही इतने क्रोधित हुए कि उनकी आँखें लाल हो चलीं। क्रोधित होकर महादेव ने सात ऋषियों की प्रार्थना पर मल्ला-मणि राक्षस को समाप्त करने व ऋषिमुनि,साधुसंत,सज्जनों की रक्षा व धर्म को पुन:स्थापित करने के लिये 'मार्तंड भैरवÓका अवतार लिया।
स्कंध पर्वत पर महादेव के अवतार 'मार्तंड भैरवÓ तथा दैत्य मल्ला-मणि के बीच भीषण युद्ध हुआ अनेक प्रकार के शस्त्र का उपयोग किया गया मार्तंड भैरव ने दस हजार बाणों को एक साथ छोड़ने पर भी मणिदैत्य पर कुछ असर नहीं हुआ और उसने वह बाण टुकड़े-टुकड़े कर दिए। मणि ने क्रोध में आकर 1100 नुकीले अस्त्र का एक शस्त्र तैयार कर मार्तंड भैरव पर छोड़ा महादेव ने अपनी एक हुँकार से उसे नष्ट कर दिया। दोनों ने एक-दूसरे पर बाणों की बौछार की पर कोई परिणाम सामने नहीं आया। मणिदैत्य ने अपनी मायावी शक्ति से युद्ध में ही रूप बदल कर कुत्ते (श्वान), घोड़े (अश्व), फिर हाथी का रूप लिया, इसके बाद मणि फिर अपने मूल स्वरूप में आया व तलवार से मार्तंड भैरव के ऊपर वार किया। इससे और क्रोधित होकर मार्तंडभैरव ने अपने त्रिशूल से मणि पर वार किया जिससे मणि के प्राण निकलते हुए वह धरती पर गिर पड़ा। सम्पूर्ण प्राण निकलने के पूर्व ही जोर-जोर से चिल्लाया दोनों हाथों को जोड़कर मार्तंड भैरव के चरण कमल में मस्तक रख दिया। मणि ने महादेव की नाना प्रकार से स्तुति की और कहा मुझे आप ऐसा वर दें कि मैं हमेशा आपके पास ही रहूँ। परम पवित्र आपके चरण कमल सदैव मेरे मस्तिष्क पर रहें। (युद्ध का पांचवा दिन) प्रभु ने कहा 'अश्वÓ(घोड़े) के रूप में तू सदा मेरे साथ मार्तंड भैरव रूप में रहेगा!
छठे दिन युद्ध नहीं करने के लिए दैत्य मल्ला को भगवान विष्णु ने समझाया पर वह नहीं माना और युद्ध के लिए तैयार हुआ मार्तंड भैरव ने अपनी खांडा (तलवार)से उसका वध किया। मल्ला ने भी मृत्यु से पूर्व महादेव के चरणों में मस्तक झुकाकर दोनों हाथों को जोड़कर स्तुति प्रारंभ की और कहा हे नाथ मेरा उद्धार करो। 11बार महादेव गायत्री मंत्र भक्ति के साथ आरंभ किया।? तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र प्रचोदयात।।इसके बाद मल्ला ने शिव पार्वती की स्तुति की।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
मार्तंडदेव ने कहा मल्ला वर मांग यह सुनकर मल्ला प्रसन्नचित्त हुआ उसने कहा हे नीलकंठ आपके परमपवित्र नाम के आगे अंनतकाल तक सदैव भक्तगण मेरा नाम ले और आपके चरणकमल के नीचे सदैव मेरा शीश रहे! मल्ला को हरने वाले (मल्ला+हरी) श्रीमल्हारी मार्तंड भैरव छ:दिनों तक चले युद्ध के कुछ क्षण बाद अपने भक्तों के आग्रह,प्रार्थना और विनती पर स्वयंभूलिंग के रूप में एक व्रक्ष के नीचे स्थापित हुए इस समय तीनो लोको से पुष्पों की वर्षा होने लगी। यह दिन मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि दिन रविवार था। चंपा के फूलों का पुष्प वर्षा में अधिक होना। चंपाषष्ठी इस पर्व को कहा गया।