सभी प्रकार की सुख समृद्धि को प्रदान करने वाला व्रत है वरुथिनी एकादशी

सभी प्रकार की सुख समृद्धि को प्रदान करने वाला व्रत है वरुथिनी एकादशी
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डॉ मृत्युञ्जय तिवारी

वेबडेस्क। सनातन वैदिक धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इसे व्रतों का राजा भी कहा जाता है । वैसे तो वर्ष भर में कुल 24 एकादशी पड़ती है जिसमें से हर माह 2 एकादशी होती है। लेकिन जिस साल मलमास पड़ता है तब 26 एकादशी पड़ती है। प्रत्येक एकादशी का अपना एक अलग महत्व होता है, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इन्हीं तिथियों में से एक वरुथिनी एकादशी है। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार ये एकादशी 26 अप्रैल 2022 को पड़ रही हैं। जानिए वरुथिनी एकादशी का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि इस कथा को धर्मराज ने युधिष्ठिर को सुनाया था जो इस प्रकार है, धर्मरा‍ज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? आप विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरूथिनी है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है।

इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करे तो उसको सौभाग्य मिलता है। इसी वरूथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गया था। वरूथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी‍ एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में इसको कन्यादान के बराबर माना है।

वरूथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश होकर कन्या का धन लेते हैं वे प्रलयकाल तक नरक में वास करते हैं या उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म लेना पड़ता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, उनके पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हैं, उनको कन्यादान का फल मिलता है।

वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी के दिन निम्नलिखित वस्तुओं का त्याग करना चाहिए -

  • काँसे के बर्तन में भोजन करना
  • माँस नहीं खाना,
  • मसूर की दाल
  • चने का शाक,
  • कोदों का शाक
  • मधु (शहद)
  • दूसरे का अंत
  • दूसरी बार भोजन करना
  • स्त्री प्रसंग
  • व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए
  • उस दिन पान खाना, दातुन करना,
  • दूसरे की निंदा करना
  • चुगली करना
  • क्रोध, मिथ्‍या भाषण का त्याग करना चाहिए
  • नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित

हे राजन्! जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है।

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