सात समुंदर पार कर शारदा डैम पहुंचे साइबेरियन पक्षी: हजारों किलोमीटर और जान जोखिम में डाल कर प्रवास को आते हैं यह पक्षी…

हजारों किलोमीटर और जान जोखिम में डाल कर प्रवास को आते हैं यह पक्षी…
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भारत-नेपाल सीमा के पास एशिया के सबसे बड़े कच्चे मिट्टी के बांध पक्षियों के कलरव से गुलजार

कुंवर निर्भय सिंह, पीलीभीत। तराई में ठंड के बढ़ने के साथ ही साइबेरियन मेहमान पक्षियों की भी दस्तक होने लगी भारत-नेपाल सीमा के पास एशिया के सबसे बड़े कच्चे मिट्टी के बांध शारदा सागर जलाशय में विदेशी मेहमानों के कलरव की गूंज सुनाई देने लगी इसके अतिरिक्त जनपद के अन्य सरोवरों झीलों एवं नदियों आदि में भी इन साइबेरियन मेहमान पक्षियों के कलरव से गुलजार होने लगे हैं यह मेहमान पक्षी सर्दी भर यहां रहते हैं और गर्मी के मौसम शुरू होते ही अपने वतन वापस लौट जाते हैं।

यूरोप और मध्य एशिया के उच्च हिमालय क्षेत्रों से हजारों की संख्या में हर साल सर्दी के मौसम में विदेशी परिंदे शारदा सागर डैम पहुंचते हैं इस बार भी सर्दी का प्रभाव कुछ देर से शुरू हुआ तो अक्टूबर के अंतिम दिनों की अपेक्षा नवंबर माह के अन्त में यह विदेशी मेहमान साइबेरियन पक्षी यहां आना शुरू हो गए हर वर्ष की भांति इस बार भी शरद ऋतु में इन साइबेरियन पक्षियों के कलरव से पीलीभीत टाइगर रिजर्व के महोबा एवं बरही वन क्षेत्र से घिरे शारदा सागर जलाशय गुंजायमान रहेगा और पर्यटकों को अपनी ओर यह पक्षी आकर्षित करेंगे।

क्या होता है प्रवास : माइग्रेशन यानी प्रवास लैटिन शब्द माइग्रेशन से आया है जिसका अर्थ होता है बदलाव इसलिए पक्षियों के द्वारा किसी विशेष मौसम में भौगोलिक बदलाव को ही माइग्रेशन नाम दिया गया है जिसका अर्थ हिंदी में प्रवास होता है प्रवास का मतलब यात्रा पर जाना या दूसरे स्थान पर जाना लेकिन यह प्रवास अपने देश तक ही सीमित नहीं होता है जहां भी इन्हें हैं अपने अनुकूल मौसम और भोजन मिल जाए वही यह प्रवास कर लेते हैं तराई की आबोहवा साइबेरियन मेहमान पक्षियों के लिए काफी मुफीद मानी जाती है ठंड की शुरुआत होती ही यह साइबेरियन मेहमान पक्षी एशिया के सबसे बड़े 22 किलोमीटर लंबे और 5 किलोमीटर चौड़े मिट्टी के बने बांध शारदा सागर जलाशय में 4 माह के लिए प्रवास पर आते हैं।

कहां से आते हैं यह मेहमान विदेशी पक्षी : ऐसा ही नहीं कि दूसरे देश के पश्चिमी भारत आते हैं बल्कि भारत के पक्षी भी दूसरे देश को जाते हैं भारत के पक्षी लगभग 10000 किलोमीटर का सफर तय करके रूस के निकट साइबेरिया पहुंचते हैं। इसी प्रकार उस देश के पक्षी भारत में आते हैं जो पक्षी भारत में आकर सर्दियां गुजारते हैं उत्तरी एशिया रूस कजाकिस्तान तथा पूर्वी साइबेरिया एवं सेंट्रल एशिया से आते हैं।

समूह में ही करते हैं माइग्रेशन : समुद्री और दुर्गम रेगिस्तानी प्रदेशों को पार करने के लिए यह मेहमान विदेशी पक्षी एक समूह में ही उड़कर प्रवास के लिए निकलते हैं इनका कोई भी पक्षी अकेला नहीं निकलता है यह प्रवासी पक्षी अनुकूल हवा देखकर स्थान बदलते हैं यदि यह एक बार माइग्रेशन शुरू कर देते हैं तो लगातार करते ही रहते हैं किसी खराब मौसम के कारण ही यह माइग्रेशन नहीं कर पाते और यह तभी उड़ान पर जाते हैं जब इन्हें लगता है कि इनके पास इतना फैट है जो इन की यात्रा के दौरान साथ देगा।

हाइपरफेजिया की चपेट में आ जाते हैं यह पक्षी : हजारों किलोमीटर दूरी तय करने के लिए साइबेरियन पक्षियों को प्रवास के कई सप्ताह पहले चर्बी इकट्ठा करना होता है इसलिए यह सामान्य से अधिक भोजन करते हैं किससे बनी चर्बी कोवे बाद में अपनी लंबी यात्रा में उड़ान के लिए इस्तेमाल करते हैं किंतु कभी-कभी रास्ते दुर्गम और कष्टकारी या कोई अन्य समस्याएं हो जाने के कारण उनकी उड़ान बाधित हो जाती है तो यह पक्षी हाइपरफेजिया नामक बीमारी से भी पीड़ित हो जाते हैं।

शिकारियों की भी होती है इन पर नजर : सात समुंदर पार कर शारदा सागर जलाशय में साइबेरियन पक्षियों का यहां आना शुरू हो गया। वहीं, इन मेहमान पक्षियों पर शिकार करने वालों की भी नजरें जमने लगी 4 माह के प्रवास के दौरान शिकारियों की नजरें भी इस प्राग में लग जाती हैं कि कौन से नायाब तरीके से इन पक्षियों का शिकार किया जाए‌।

शरद ऋतु में आने वाले वाले यह मेहमान पक्षी : साइबेरियन क्रेन, रेड क्राइस्ड कोचर्ड, कामन कोचर, क्रिस्लिगं, गडवाल, किससैल, ग्रेटर फ्लेमिंगो, रफ, रेड क्रेस्टेड कोचर्ड, कॉमन पोचार्ड, कॉमन कूट, कमेरिट आदि।

क्यों आते हैं यह साइबेरियन पक्षी : शीत ऋतु में प्रवासी पक्षियों के यहां बर्फ जम जाती है और हाड़ मांस को कप कपा देने वाली ठंड का प्रकोप बढ़ जाता है जिस कारण इन पक्षियों का आहार और जीना दुष्कर हो जाता है इनके आहार वाले जीव जंतु अधिक ठंड होने के कारण जमीनी सतह में दुबक कर चले जाते हैं ऐसी अवस्था में आहार और अपने जीवन को बचाने के लिए यह गर्म जलवायु वाले देश चले आते हैं जहां बर्फ नहीं जमती है और आसानी से भोजन मिल जाता है।

कैसे होता है इन पक्षियों के वायु मार्ग का निर्धारण : विदेशी पक्षियों के पैरों में रिंग टैग डालकर उनके हवाई मार्ग का पता लगाया जाता है इस रिंग का इंटरनेशनल मानक होता है सभी देश के संरक्षित केंद्रों से इन पक्षियों के बारे में रिपोर्ट इकट्ठी की जाती है इसके अलावा सैटेलाइट चिप डाली जाती है जिससे उनके हवाई मार्ग का ज्ञान हो जाता है प्रवास के दौरान यह पक्षी अपने शरीर को मौसम के अनुरूप अनुकूलित कर लेते हैं लेकिन फिर भी इन्हें कई चुनौतियों का भी सामना इन मार्गों में करना पड़ता है।

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