कोटा से कैसे मिटेगा आत्महत्याओं का कलंक?
- रमेश सर्राफ धमोरा
कोटा में एक बार फिर कोचिंग स्टूडेंट के सुसाइड का मामला सामने आया है। छत्तीसगढ़ का रहने वाला स्टूडेंट शुभकुमार चौधरी (16) ने सोमवार रात फंदे पर लटककर जान दे दी। डीएसपी भवानी सिंह ने बताया कि स्टूडेंट 12वीं में पढ़ाई करता था। सोमवार रात जेईई की रिजल्ट आया। सुबह उसने पैरेंट्स का फोन नहीं उठाया तब वार्डन को कॉल किया। वार्डन ने गेट को धक्का देकर खोला तो स्टूडेंट पंखे पर लटका हुआ था। इस साल कोटा में सुसाइड का यह चौथा मामला है। दो फरवरी को गोंडा के नूर मोहम्मद (27), 31 जनवरी को कोटा के बोरखेड़ा की निहारिका (18) और 24 जनवरी को मुरादाबाद के मोहमद जैद (19) ने आत्महत्या की थी।
राजस्थान का कोटा शहर देश में कोचिंग का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहां प्रतिवर्ष लाखों छात्र कोचिंग करने के लिए आते हैं। इससे कोचिंग संचालकों को सालाना कई हजार करोड़ रुपये की आय होती है। हालांकि कोटा आने वाले सभी छात्र मेडिकल व इंजीनियरिंग परीक्षा में सफल नहीं होते हैं। मगर देश की शीर्षस्थ मेडिकल व इंजीनियरिंग संस्थानों में चयनित होने वाले छात्रों में कोटा के छात्रों की संख्या काफी होती है। इसी कारण अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं।
कोचिंग के बड़े केंद्र कोटा में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्या की घटनाएं शहर के दामन पर दाग लगा रही है। वर्ष 2012 से अब तक यहां 148 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। कोटा में कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करने वाले छात्रों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्या की घटनाओं से पूरा देश सकते में है। सरकार व प्रशासन द्वारा लाख प्रयासों के उपरांत भी कोटा के छात्रों में यह प्रवृत्ति नहीं रुक रही।
इसके लिए मुख्य कारण छात्रों पर पढ़ाई करने के लिए पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक दबाव को माना जा रहा है। कोटा में कोचिंग लेने वाले छात्रों को प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। बहुत से छात्रों के अभिभावकों की स्थिति इतना खर्च वहन करने की नहीं होती है। यहां पढ़ने वाले छात्रों में अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवारों से होते हैं। उनके अभिभावक आर्थिक रूप से अधिक सक्षम नहीं होते हैं। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए वह लोग विभिन्न स्तरों पर पैसों की व्यवस्था कर बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं।
यहां आने वाले छात्रों को पता होता है कि उनके अभिभावकों ने कितनी मुश्किल से कोचिंग लेने के लिए उन्हें कोटा भेजा है। ऐसे में यदि वह सफल नहीं होंगे तो उनके अभिभावक जिंदगी भर कर्ज में दबे रह जाएंगे। यही सोचकर छात्र हमेशा मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस करता रहता है। इसके अलावा यहां पढ़ने वाले छात्रों पर पढ़ाई का भी बहुत अधिक दबाव रहता है। यहां के कोचिंग संस्थानों में कई शिफ्टों में अलग-अलग बैच में पढ़ाई होती हैं। यहां पढ़ने वाले छात्रों पर मेडिकल या इंजीनियर की परीक्षा में अच्छे नंबर हासिल करने को लेकर अभिभावकों व कोचिंग संस्थानों का दबाव होता है।
कोचिंग संस्थान भी अच्छा परिणाम दिखाने के चक्कर में छात्रों को मशीन बनाकर रख देते हैं। छात्रों पर हर दिन पढ़ाई का दबाव बना रहता है तथा साप्ताहिक टेस्ट पास करने के चक्कर में छात्र दिन-रात पढ़ाई करते रहते हैं, जिससे ना तो उनकी नींद पूरी हो पाती है ना ही वह मानसिक रूप से आराम कर पाते हैं। ऐसे में छात्र जल्दी उठकर कोचिंग संस्थान में जाकर पढ़ाई करने व दिनभर पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण वह तनाव में आ जाता है। बाहर से आने वाले बहुत से छात्र पढ़ाई में पिछड़ जाने के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
कोटा कभी राजस्थान का बड़ा औद्योगिक नगर होता था। मगर श्रमिक आंदोलनों के चलते यहां के उद्योग-धंधे बंद होते गए। आज कोटा में नाम मात्र के ही उद्योग रह गए हैं। 1990 के दौरान कोटा शहर में कोचिंग संस्थान खुलने लगे थे। 2005 तक यहां बड़ी संख्या में कोचिंग संस्थान स्थापित हो गए, जिनमें प्रतिवर्ष लाखों छात्र पढ़ने लगे। आज कोटा शहर की पूरी अर्थव्यवस्था इन कोचिंग संस्थानों पर ही निर्भर है। शहर के हर चौक-चौराहों पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि अब कोटा में कोचिंग ही सब कुछ है।
यह सही है कि कोटा में सफलता की दर तीस प्रतिशत से उपर रहती है। देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप टेन में पांच छात्र कोटा के रहते हैं। मगर उसके साथ ही कोटा में एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो असफल हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक कोटा के कोचिंग मार्केट का सालाना आठ हजार करोड़ का टर्नओवर है। कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को सालाना 500-700 करोड़ रुपये से अधिक टैक्स के तौर पर दिया जाता है।
कोटा में देश के तमाम नामी संस्थानों से लेकर छोटे-मोटे 200 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। यहां तक कि दिल्ली, मुंबई के साथ ही कई विदेशी कोचिंग संस्थाएं भी कोटा में अपना सेंटर खोल रही हैं। लगभग ढाई लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं। कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं। आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में पढने वाले छात्र बड़ी-बड़ी कम्पनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोडकर यहां के कोचिंग संस्थाओं में पढ़ा रहे हैं। तनख्वाह ज्यादा होने से कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी पास छात्र पढ़ा रहे हैं।
कोटा में बढ़ती आत्महत्याओं की घटनाओं से चिंतित सरकार हरकत में आई है। कोटा में कोचिंग करने वाले छात्रों के लिए अलग से पुलिस थाना खोला गया है। हॉस्टल के कमरों में ऐसे पंखे लगाए गए हैं जिन पर यदि कोई लटकने की कोशिश करेगा तो उस पर लगी डिवाइस में लगा सायरन बजने लगेगा। सरकार ने छात्रों के मानसिक तनाव के विस्तृत अध्ययन के लिए मनोचिकित्सकों की एक टीम भी बनाई है जो छात्रों से मिलकर आत्महत्याओं के कारणों की जांच करेगी। कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान कहा था कि कोटा में बच्चों के सुसाइड के लिए उनके माता-पिता जिम्मेदार हैं, क्योंकि परिजन अपने बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा आस लगा लेते हैं। ऐसे में बच्चे डिप्रेशन में आते है और खुदकुशी जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाते है।
केंद्र सरकार ने कोचिंग संस्थानों के लिए दिशा-निर्देशों की घोषणा की है, जिनमें कोचिंग संस्थान 16 वर्ष से कम आयु के छात्रों का नामांकन नहीं कर सकते। इसके अलावा ना ही वे अच्छी रैंक या अच्छे अंकों की गारंटी दे सकते हैं और न ही गुमराह करने वाले वायदे कर सकते हैं। दिशा-निर्देशों के अनुसार कोई भी कोचिंग सेंटर स्नातक से कम शिक्षा वाले ट्यूटर को नियुक्त नहीं करेगा। छात्रों का नामांकन सिर्फ सेकेंडरी स्कूल परीक्षा देने के बाद हो सकेगा। इनमें छात्रों को स्ट्रेस फ्री रखने और फीस रिफंड प्रोसेस को आसान बनाने समेत कई दिशा निर्देश शामिल हैं।
कोचिंग छात्रों के सुसाइड मामलों को लेकर प्रशासन के साथ-साथ पुलिस की स्पेशल सेल भी काम कर रही है। फिर भी सुसाइड केस थमने का नाम नहीं ले रहे है।कोटा में पढ़ने वाले छात्र जब तक खुले मन से बिना किसी दबाव के पढ़ाई करने लगेंगे तभी यहां का माहौल सुधरेगा। यहां चल रहे कोचिंग संस्थानों को मशीनी स्तर पर चलाई जा रही प्रतिस्पर्धा को रोककर एक सकारात्मक वातावरण बनाना होगा। तभी कोटा में पढ़ने वाले छात्र खुद को सुरक्षित महसूस कर पढ़ाई कर पाएंगे। कोटा में संचालित कोचिंग संस्थान जब तक अपने काम को पैसे कमाने की मशीन समझना बंद कर अपने छात्रों के साथ संवेदनशील व्यवहार नहीं करेंगे तब तक कोटा के हालात नहीं सुधरेंगे।