श्रीराम मंदिर, मोदी का तपस्वी नेतृत्व और संसद में अमित शाह

श्रीराम मंदिर, मोदी का तपस्वी नेतृत्व और संसद में अमित शाह
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- संजय तिवारी

भारत की संसद में 10 फरवरी 2024 का दिन ऐतिहासिक रहा। देश के गृह एवं सहकारितामंत्री अमित शाह ने लोकसभा में इस दिन जो उद्गार व्यक्त किया वह देश के ससंदीय इतिहास का एक ऐसा पृष्ठ बन गया जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता। भारतीय संसद में दिये गये विगत 76 वर्षों के कुछ ऐतिहासिक उद्बोधनों में से एक अमित शाह का यह उद्बोधन जिसने भी सुना होगा वह निश्चित रूप से भारत, भारतीयता, श्रीराम और भारतीय जीवन में रामतत्व की महत्ता से बहुत ही भावपूर्ण तरीके से परिचित हुआ होगा। इस संबोधन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि गृहमंत्री ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के लगभग 500 वर्षों के संघर्ष को तो रेखांकित किया ही, भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी के एक ऐसे स्वरूप से उन्होंने सभी को परिचित कराया जिसको जानना खासतौर पर नयी पीढ़ी के लिये अतिआवश्यक है। श्रीरामचरितमानस के रचयिता कविकुल शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीहनुमान चालीसा में एक चैपाई की एक अद्र्धाली में हनुमान जी के लिये लिखा है - सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा।।

लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने श्रीअयोध्या जी में श्रीराम जन्मभूमि पर निर्मित श्रीराम मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में प्रस्तुत किये गये प्रस्ताव पर जो कुछ बोला वह भारतीय संसद के साथ-साथ भारत की लोक परम्परा के लिये भी धरोहर है। अपने संबोधन के आरंभ में ही गृहमंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि भारत की स्वाधीनता के बाद राष्ट्र के जीवन में जो कुछ महत्वपूर्ण प्रस्ताव आए हैं उनमें से एक प्रस्ताव श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर के निर्माण का है। गृहमंत्री ने अपने संबोधन के आरंभ में ही यह स्पष्ट कर दिया कि वह किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे जा रहे हैं बल्कि स्वयं के मन की, भारत की जनता की भावनाओं की और भारत से बाहर के सभी रामभक्तों की भावनाओं के प्रतिनिधि स्वरूप अपनी बात कर रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत की 140 करोड़ जनता और विश्व में अलग-अलग देशों में रह रहे रामभक्तों का यह ऐसा स्वर है जो वर्षों से न्यायालयी प्रत्रावलियों में दबा हुआ था। नरेन्द्र मोदी जैसे संकल्पित और तपस्वी प्रधानमंत्री के प्रयासों से वह स्वर मुखर हुआ, अभिव्यक्ति पाया और एक दुर्लभ सपना आज साकार स्वरूप में सभी के सामने है। गृहमंत्री ने अपने उद्बोधन में जोर इस बात पर दिया कि 22 जनवरी 2024 का दिन आने वाले दस सहस्त्र वर्षों के लिए ऐतिहासिक बन चुका है। 22 जनवरी वह दिन है जिसमें करोड़ों भक्तों की आशाएं, आकांक्षाएं सिद्ध हुयी हैं। यह समग्र भारत के लिये आध्यात्मिक चेतना के पुनर्जागरण का दिन है। यह महान भारत की यात्रा के आरंभ का दिन है। और मां भारती को विश्व गुरु के मार्ग पर आगे ले जाने का एक पड़ाव है।

गृहमंत्री ने अपने उद्बोधन में राम, रामतत्व, राम के आदर्श, राम राज्य, राम का जीवन चरित्र, राम की यात्रा, उनके संघर्ष, उनके साहस, उनकी मार्यादा और लोक में राम की उपस्थिति पर बहुत विस्तार से चर्चा की। भारत के लिये राम कितने महत्वपूर्ण हैं इसकी व्याख्या करते हुए गृहमंत्री ने स्पष्ट किया कि राम और राम के चरित्र के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। जो भी लोग भारत को पहचानना चाहते हैं, जानना चाहते हैं, जीना चाहते हैं वे राम और रामचरितमानस के बिना जी ही नहीं सकते। राम का चरित्र और राम भारत के जनमानस के प्राण तत्व हैं। इसे सभी को समझना भी चाहिए और स्वीकारना भी चाहिए। जो लोग राम के अलावा भारत की कल्पना करते हैं वे भारत को तो नहीं ही जानते हैं बल्कि वे हमारी पराधीनता के समय का ही प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं।

भारत के संविधान से लेकर माहात्मा गांधी के रामराज्य तक की कल्पना में राम की महत्ता को गृहमंत्री ने बहुत विस्तार से समझाया। गृहमंत्री के अति गंभीर और विस्तृत उद्बोधन में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन, श्रीलालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा, निहंग आंदोलन, स्व. अशोक सिंघल जी द्वारा किये गये संघर्ष के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों पर जिस ढंग से प्रकाश डाला गया वह अत्यंत भावुक रहा। गृहमंत्री ने पालमपुर में भाजपा की कार्यकारिणी के प्रस्ताव से लेकर मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा तक की यात्रा को बहुत विस्तार से सदन के पटल पर तो रखा ही, ऐसी शैली में रखा कि पूरा परिवेश अत्यंत भावपूर्ण हो गया। 1528 में मंदिर के विध्वंस से लेकर 1990 की कार सेवा और भारत के सुप्रीम कोर्ट में चलने वाली कार्यवाहियों और विवादों के बाद पांच जजों द्वारा दिये गये फैसले और अब मंदिर के बन जाने तक की यात्रा को गृहमंत्री ने विध्वंस के सामने विकास की विजय बताया। धर्मान्धता के सामने आध्यात्मिकता और भक्ति की विजय के रूप में रेखांकित करते हुए उन्होंने इसको भारत के गौरवमय युग की शुरुआत बताया।

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन, संघर्ष, अदालती दांव-पेच, विरोधी पक्ष द्वारा की गयी टिप्पणियों और 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद श्रीराम मंदिर निर्माण के लिये किये जाने वाले प्रयासों को अद्वितीय बताते हुये अमित शाह ने कहा कि जब भी दुनिया का इतिहास लिखा जायेगा तब लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए किसी देश के बहुसंख्यक समाज की धार्मिक विश्वास की पूर्ति के लिये इतना बड़ा संघर्ष मानक बनेगा और निश्चित रूप से इसकी सफलता का श्रेय सनातन मूल्यों के प्रति समर्पित और एक तपस्वी राजा के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को ही जायेगा। गृहमंत्री ने और भी बहुत कुछ कहा जिसका उल्लेख सार में ही करना उचित होगा।

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सनातन वैष्णव उपासक स्वरूप को गृहमंत्री ने विशेष रूप से सदन के सामने जब रखा तो वह क्षण भी बहुत भावपूर्ण था। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा - जब राम मंदिर का निर्माण हो रहा था, तब और जब जजमेंट आया तब, कई लोग कयास लगा रहे थे, कई लोग अनुमान लगा रहे थे कि इस देश में रक्तपात हो जाएगा, इस देश में दंगे हो जाएंगे, इस देश में धर्म-धर्म के बीच में बड़े विवाद होंगे। मगर, मैं आज इस सदन को कहना चाहता हूं कि यह भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, नरेन्द्र मोदी जी इस देश के प्रधानमंत्री हैं। कोर्ट के जजमेंट को भी जय-पराजय की जगह सबके मान्य न्यायालय के आदेश में परिवर्तित करने का काम मोदी जी के दूरदर्शी विचार ने किया है। जब समय आया, उनको न्योता मिला कि वे आकर भूमि पूजन करें। वे 140 करोड़ जनता के जनप्रतिनिधि हैं। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने उनको जनता के प्रतिनिधि के नाते शिलान्यास करने का जब मौका दिया, तब मोदी जी का जो पूरा आचरण था, इसको ध्यान से देखना चाहिए। वह आचरण आने वाले सैकड़ों सालों तक दुनिया के सामने रहेगा इससे कई लोगों को प्रेरणा भी मिलेगी।

हम सब ने, आचार्य गोविंद देव गिरी जी के वक्तव्य को सुना है। मोदी जी को जब मौका मिला तब उन्होंने रामानंदी संप्रदाय के और वैष्णव संतों से पूछा कि प्राण प्रतिष्ठा करनी है, किसी संसारी को करनी है तो इसके यम-नियम, इसके लिए किस प्रकार की उपासना करनी चाहिए। जो संतों की ओर से सुझाया गया, उससे भी अनेक गुना कठोर, 11 दिनों का व्रत इस देश के प्रधानमंत्री ने किया। 11 दिनों तक शय्या पर नहीं सोना, 11 दिनों तक केवल नारियल पानी के साथ उपवास करना, 11 दिनों तक पूरा समय रामभक्ति में रचे-बसे रहना और उस वक्त की हर सांस को राम के साथ जोड़ कर, राममय बनकर प्राण प्रतिष्ठा करना, यह प्रमाणित करता है कि भारत का नेतृत्व वास्तव में कितना बड़ा तपस्वी है। इस अवधि में प्रधानमंत्री ने भगवान के वनगमन और वनवास के उन सभी स्थलों पर जाकर अपनी तपश्चर्या की जिसे विश्व ने देखा है। जो लोग 22 जनवरी को अयोध्या में प्रधानमंत्री को प्राण-प्रतिष्ठा के समय देख रहे थे उनको भी ठीक से आभास हुआ होगा कि जब देश का नेतृत्व सात्विक और आध्यात्मिक होता है तो देश कैसे उन्नति करता है।

भारत की संसद में यह दृश्य ही अद्भुत था। भारत के संसदीय इतिहास में किसी गृहमंत्री का ऐसा सात्विक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, लोकभाव से परिपूर्ण यह ऐसा संबोधन था जो निश्चित रूप से भावी भारत की संसदीय परम्परा को एक अलग राष्ट्रोन्मुख दिशा देगा। यह वह क्षण था जब गृहमंत्री ने प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 से अब तक भारत की संसद में लिये जा चुके अनेक कठोर फैसलों का भी उल्लेख किया और यह भी स्पष्ट किया कि यदि नरेन्द्र मोदी जैसा सक्षम नेतृत्व न होता तो ये फैसले न लिये जा सकते थे और न ही लागू किये जा सकते थे। राममय हुये विश्व को बहुत स्पष्ट संदेश देते हुए गृहमंत्री ने कहा कि जय श्रीराम का नारा संघर्ष का नारा था जो अब जय सियाराम के रूप में लोक अभिवादन बनकर भारत को विश्वगुरु के पथ पर ले जाने वाला है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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