लता मंगेशकर का जाना सरस्वती का जाने जैसा...

लता मंगेशकर का जाना सरस्वती का जाने जैसा...
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मनोज श्रीवास्तव

वेबडेस्क। लता मंगेशकर का जाना बसंत का चला जाना है या सरस्वती का। बसंत पंचमी के ठीक बाद उनका जाना ऐसी ही अनुभूति देता है। वे जहां गईं हैं, उस देवलोक की दुनिया अवश्य ही श्रुतिमधुर हो गयी होगी। आख़िरकार उस नंदनकानन की कोकिला लौट जो आई, किन्तु पृथ्वी उस स्वर-स्वर्गोद्यान के इस टुकड़े से वंचित हो ही गई।

ईश्वर का कहना होगा कि हमने उसे इतनी अवधि के लिए तो भेजा। लेकिन वह भी जानता है कि यह तथाकथित दीर्घायुष्य उसकी कालगणना का एक निमिष मात्र भी नहीं।वह लय अब विलय हो गई।पाक्किआरोट्टी ने कभी कहा था कि गाना वही जानता है कि जिसे मालूम है कि साँस कैसे लेनी है और उच्चारण कैसे करना है। लता मंगेशकर की साँस अब जब थम चुकी है, हमें उनके वे सारे गीत याद आ रहे हैं जो इस देश की प्राणवायु बन गये थे।

वे एक पॉपुलर कल्चर की नश्वरताओं के बीच अमरता का अहसास कराने वाला माधुर्य थीं। धीरे-धीरे उस मुंबई की मेलडी का स्थान बहुत सी उत्पाती उच्छृंखलताओं ने ले लिया था। धीरे-धीरे संगीत की इस देवी को जैसे नई प्रासंगिकताओं ने किनारे कर दिया था या उन्होंने एक गहरी उदासी के साथ स्वयं किनारा कर लिया था। जब उन्हें नये जमाने की हक़ीक़तों का पता लगा, हमारे संगीत का दु:स्वप्न-युग शुरू हुआ ।

भारत ने उन्हें रत्न मानकर अपनी अँगूठी पर सजाया हो, पर उनके स्वर में यह देश धड़कता था। जब हम लोग उड़ नहीं पाते थे, उनके गीत हमारे लिए पंख बन जाते थे।उनकी आवाज़ के उजाले अनगिनत भारतीयों की ज़िंदगी के दरीचों पर फैले रहते थे।हम उनकी मृत्यु को नहीं रोक पाए, लेकिन पता नहीं कितनी बार उन्हें सुनते हुए ऐसा लगा जैसे मौत के भी क़दम रुक गये होंगे जब जिसे वह लेने आई, उस वक़्त वह लता जी को सुन रहा हो।

जब वे 'ऐ मेरे वतन के लोगों' कहकर सम्बोधित करतीं थीं तो ऐसा लगता था जैसे इस वतन पर उन्हीं का स्वत्व है।वे इस वतन की ओर से साधिकार बोल रहीं हैं।जब वे लगभग फुसफुसाती-सी थीं - कुछ ऐसी भी बातें होती हैं-तो लगता था पौधों पर रात भर गिरती रही ओस जैसे अभी अभी ढुलक गई हो।जब वे कहती थीं कि 'रहें न रहें हम महका करेंगे' तो वे अपने हर श्रोता को उसकी आसन्न अमरता का विश्वास सा दिलातीं थीं। सबके भीतर अमरता की वह महक भर जाने वाली लता आज जब स्वयं अमर हो गईं हैं तो मुझे स्वर की इस महादेवी के लिए महादेवी वर्मा के शब्द पता नहीं क्यों याद आ रहे हैं:

  • क्या अमरों का लोक मिलेगा
  • तेरी करुणा का उपहार
  • रहने दो हे देव! अरे
  • यह मेरे मिटने क अधिकार!

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