2024 : मानवाधिकारों के संरक्षण का संकल्प
समय के सापेक्ष चलने में बहादुरी नहीं है। समय के साथ अपनी उपस्थिति दज़र् करने का वक्त है। विश्व में वर्ष 2023 में कई अद्भुत घटनाएं घटीं। हम 2024 में प्रवेश कर रहे हैं। 2023 को जल्द ही हम भूल जाएंगे। इस भूलभुलैया में कटी जा रही ज़िंदगी के बारे में विचार करें आप को कभी-कभी ऐसा लगेगा कि हम कितने भुलक्कड़ हैं जी। हम कल कुछ और सोच रहे थे और आज कुछ और लेकिन यह जो आज के मुताबिक सोच रहे हैं, कल जो खोया-पाया उसे तो हम भूल ही गए।
अच्छा हो, हम हर पल यादगार, अविस्मरणीय स्मृति बनाएं। अच्छा हो हम कुछ ऐसा करें जो केवल अपने लिए न हो, वरन सबके लिए हो। ऐसा करने के लिए हमें हमारे सचेतन मन के साथ मेलजोल बनाकर आगे बढ़ना आवश्यक होगा। 2023 के लिए मानवाधिकार क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र पुरस्कार विजेताओं की घोषणा हुई। इसमें मानवाधिकार केन्द्र 'वियास्नाÓ, बेलारूस, जूलिएन लुसेंज, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मानवाधिकार अध्ययन के लिए अम्मान केन्द्र, जॉर्डन, जूलियो पेरेरा, उरुग्वे, स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार की सार्वभौमिक मान्यता के लिए नागरिक समाज संगठनों, आदिवासी लोगों समेत अन्य हितधारकों का वैश्विक गठबंधन, इन्हें मानव अधिकारों के हितधारक बताया गया है। यह पुरस्कार इसलिए दिए जाते हैं ताकि नई पीढ़ी के लोग आगे आकर ऐसे कर्तव्य करें जिसमें समाज का हित शामिल हो। सबकी गरिमा की रक्षा होती हो या ऐसे नागरिक समाज का निर्माण होता हो, जो मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अभी, और भविष्य में भी काम आएंगे। यह सचेतन मन वाले लोग हैं जो दुनिया में व्याप्त दर्द को समझकर उनके लिए काम कर रहे हैं। पुरस्कार उनके अभिनंदन का प्रतीक हैं।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हमारी पृथ्वी पर चल रहे व्यापक रोष पर चिंता जाहिर की और दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों को चेताते हुए व्यापक सुधार की गुहार लगाई। इसमें भी वे सचेतन मन की तलाश कर रहे हैं। चाहे वह वैयक्तिक सचेतन मन हम समझें या वैश्विक स्तर पर राज्यों के सचेतन मन को समझें। महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की चिंता व्यापक मानवता पीड़ा की है। उनकी चिंता हमारे प्लानेट पर ख़तरे की है। उनकी चिंता 2023 रिकॉर्ड में दर्ज सबसे गर्म साल की है और बढ़ती निर्धनता और भोजन के अभाव में जी रहे लोगों की है। महासचिव गुटेरेश चाहते हैं कि युद्धों की संख्या और तीव्रता बढ़ती जा रही है और आपसी विश्वास घट रहा है। एक-दूसरे पर उंगली उठाने और बंदूक तानने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं, ये सब बंद हो। उनका मानना है कि जब हम एक साथ खड़े होते हैं, तो मानवता मज़बूत होती है।
एंटोनियो गुटेरेस के मन में कहीं न कहीं मानव अधिकारों के गिरते स्तर पर भयानक आक्रोश है क्योंकि ये सभी तत्व मानवाधिकारों के हनन के कारक बने हुए हैं और देश एक-दूसरे से दूर भाग रहे हैं। एक बार हम सभी नववर्ष के स्वागत में जब खड़े हैं तो एंटोनियो गुटेरेस ने नववर्ष 2024 को विश्वास के पुनर्निर्माण और आशा की बहाली का साल बनाने की पुकार लगाई। साझा समाधानों की ख़ातिर, मतभेदों को दूर करके, एकजुट होने का आह्वान किया। जलवायु कार्रवाई, आर्थिक अवसरों और एक निष्पक्ष वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिए, जिसका लाभ सर्वजन को पहुँचाया जा सके इसके लिए हमें साथ मिलकर, उस भेदभाव और नफ़रत के खिलाफ खड़ा होने को कहा है जो देशों और समुदायों के बीच संबंधों में ज़हर घोल रहे हैं। उनका आह्वान है कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (्रढ्ढ) जैसी नई प्रौद्योगिकियों से, कल्याण सुनिश्चित हो। संयुक्त राष्ट्र, दुनिया को शांति, सतत् विकास और मानवाधिकारों के लिए एकजुट करने के प्रयास जारी रखेगा। आइए! 2024 को, उन सभी चीजों में विश्वास और आशा पैदा करने का वर्ष बनाने का संकल्प लें, जिन्हें हम साथ मिलकर पूरा कर सकते हैं।
अब सवाल यह है की महासचिव की बात को लोग गंभीरता से लेते हैं कि हवा-हवाई बनाकर उड़ा देते हैं। जो भी हो, महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का सचेतन मन सकारात्मक विश्व के निर्माण की दिशा में आह्वान कर रहा है। उस अच्छी पृथ्वी की संकल्पना कर रहे हैं जिसमें शुद्ध हवा, शुद्ध मन, शुद्ध विचार प्रवाहित हों। शांति कायम हो। सतत् विकास के लक्ष्य हासिल हो सकें। ये देश जो संप्रभुता के भयंकर अहंकार में पागल हुए जा रहे हैं, उन्हें सचेत करने की कोशिश निश्चय ही मानवाधिकारों के लिए अहम हैं। यदि 2023 में भय, रक्तपात और युद्ध से हमें गाजा को विस्मरण करा रहे हों और यूक्रेन व रूस के संकट भी हम भूल रहे हों तो एंटोनियो गुटेरेस की उस दर्द भरी पुकार व अंतर्मन की पीड़ा को महसूस कर लेना चाहिए। यह हम सभी मनुष्यों के हित के लिए आह्वान है। 2024 को सँवरकर और सँवारकर चलने की आवश्यकता है। वरना हमने करोड़ों के आँखों में आँसू लाने का प्रयास पूरे वर्ष किया है। लाखों बेघर हुए। लाखों विस्थापित हुए। लाखों शरणार्थी बने। ये सब अनागरिक होकर जी रहे हैं। अनागरिक लोगों के अंत:करण से पूछें तो पता चलेगा की अनागरिक होकर दूसरे देश में शरणार्थी बनकर कैसा जीवन होता है।
जिन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार का वर्ष 2023 का पुरस्कार मिला है वे अपने क्षेत्र में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे थे। वर्षों से उन आवाजों को उठा रहे थे जिनकी कोई नहीं सुनता है। अब 2024 यह हमसे मांग कर रहा है कि मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए आगे आइए और हमारी आवाज में अपनी आवाज़ को शामिल कर हमारे हक की रक्षा कीजिए। स्वयंसेवी संस्थाएं, सेवाभावी लोग, आमजन के हितैषी, करुणाशील लोग व राज्य आप सब हमारे साथ आओ और हमारी आवाज बनो। यह संयुक्त राष्ट्र सार्वभौम घोषणा पत्र की 75वीं वर्षगांठ के सेलीब्रेशन का है तो राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सक्षम प्राधिकारी नागरिकों के हित के लिए आप आगे आइए।
समय के सापेक्ष अगर चल सको और सचेतन मन से कुछ कर सकने का साहस हो, तो 2024 का यह वर्ष हमसे यह मांग कर रहा है की इस वर्ष सभी मानवाधिकारों के लिए सजग नागरिक बनकर सजग मानवाधिकार से परिपूर्ण समाज का निर्माण करें। वैयक्तिक सुख का त्याग करके यदि समष्टिगत चिंता करने वाले व्यक्ति, समुदाय, राज्य विश्व में व्याप्त आज की चुनौतियों का सचेतन मन से सामना करेंगे तो एक ऐसे भविष्य के हम निर्माता बन सकते हैं जो हमारे सुख व शांति के कारक बनें। वर्ष 2023 के अनचाहे घावों को भरने में सफलता मिलेगी। यदि हमारी सद्इच्छाएं हमारे साथ होंगी तो हम अपनों की पीड़ाओं को जरूर कम कर सकेंगे। उन्हें आशा दे सकेंगे। उनके लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का अहसास करा सके तो हम उनकी प्रसन्नता को बहुत अधिक नहीं तो कुछ ही सही, लौटा सकेंगे। हम सभी का जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह प्रकृति, धरती, अम्बर और समुद्र सब महत्वपूर्ण हैं। सभी के लिए सचेतन मन का विद्यमान होना आवश्यक है। वैसे आज की पीढ़ी आसानी से उस ओर लौटना नहीं चाहती जहां सबके सुख हों, क्योंकि भूलभुलैया में भटक रही पीढ़ी का मन स्थिरचित नहीं है। वह भ्रम के वशीभूत होकर अनेक ऐसे कार्यों की ओर उद्धत है, जो उसे विनाश की ओर ले जाते हैं।
ऐसे में, सकारात्मक सोच-विचार वाले समाज का आगे आना जरूरी है जो आज की पीढ़ी को सही दिशा में ले जाएं। ऐसे मुखर सामाजिक पैरोकारों को आगे आने की जरूरत है जो नैतिक साहस के साथ बिना भय के राज्यों को भी समय-समय पर सलाह दें और उन्हें युद्ध व विध्वंसक कार्य व विध्वंसक मनोवृत्ति की ओर जाने से रोकें। अंत में भी सवाल वही है कि क्या हम 2024 को मानवाधिकारों के संरक्षण का वर्ष बनाने के लिए तैयार हैं? यदि हैं, तो हमारे सौभाग्य के मार्ग यहीं से खुलेंगे वरना हमें और हमारी सभ्यता और संस्कृति को विनिष्ट करने वाले कारक हमें छोड़ने वाले नहीं हैं। मेरी दृष्टि से 2024 के आगमन पर सभी के लिए अशेष मंगलकामनाओं की भी डोर मानव अधिकारों के संरक्षण में विद्यमान हैं, तो इसे पकड़कर रखने में ही हम सभी की भलाई है। देखना यह है कि स्वयं को सचेतन मन कहने वाले कौन सी राह पकड़ते हैं।
(लेखक भारत के राष्ट्रपति के पूर्व विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं व पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय में चेयर प्रोफेसर हैं)