26 नवम्बर 2008 मुम्बई पर आतंकी हमला

26 नवम्बर 2008 मुम्बई पर आतंकी हमला
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रमेश शर्मा

भारतीय इतिहास के पन्नों पर 26 नवम्बर 2008 का वह काला अध्याय है जिस दिन देश की औद्योगिक राजधानी समझी जाने वाली मुम्बई पर सबसे भीषण और सबसे सुनियोजित हमला हुआ था। इस हमले में प्रत्यक्ष हमलावर केवल दस थे पर तीन दिनों तक पूरा देश आक्रांत रहा। इस हमले को पन्द्रह साल बीत गये लेकिन कुछ प्रश्नों का समाधान अभी तक नहीं हुआ, कुछ रहस्यों पर आज भी परदा पड़ा हुआ है । हमले का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एएसआई तुकाराम आँवले ने गोलियों से छलनी होकर भी आतंकवादी कसाब को जिंदा पकड़ लिया था। उनके प्राणों ने भले शरीर को छोड़ दिया, पर तुकाराम ने कसाब को नहीं छोड़ा था। कसाब की पकड़ से ही भारत यह प्रमाणित कर पाया कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं माना गया कि हाथ में कलावा बाँधकर और भगवा दुपट्टा गले में डालकर आये आतंकवादी किसके सिर पर आतंकवाद का बोर्ड लगाना चाहते थे।

आतंकवादी हमलों से तो कोई नहीं बचा, आधी से ज्यादा दुनिया आक्रांत है। इन दिनों हम हमास के आतंकी हमले से इजराइल को जूझता हुआ देख रहे हैं। अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों ने भी आतंकवादी हमले झेले हैं। इन सबके पीछे एक विशेष मानस और मानसिकता काम कर रही है। जो दुनिया को केवल अपने रंग में रंगना चाहती है। मुम्बई का यह हमला बहुत घातक था। ये कुल दस हमलावर एक विशेष आधुनिकतम नौका द्वारा समुद्री मार्ग से मुम्बई पोर्ट आये थे। रात्रि लगभग सवा आठ बजे कुलावा तट पर पहुँचे थे। सभी के हाथ में कलावा बंधा था और कुछ के गले में भगवा दुपट्टा भी दिख रहा था। सभी के पास बैग थे। ये जैसे ही पोर्ट पर उतरे मछुआरों ने देखा। उन्हें ये लोग सामान्य न लगे, न कद काठी में और न वेश भूषा में। मछुआरे चौंके। उनके चौकने का कारण था। सामान्यत: भगवाधारियों की टोली ऐसी टीम नाव से कभी नहीं आती। नाव भी विशिष्ट थी। इसलिये मछुआरों को उनमें कुछ अलग लगा। मछुआरों ने इसकी सूचना वहां तैनात पुलिस पाइंट को भी दी। किंतु पुलिस को मामला गंभीर न लगा। पुलिस ने ध्यान न दिया और सभी आतंकवादी सरलता के साथ पोर्ट से बाहर आ गये। वे वहां से दो टोलियों में निकले, बाद में पाँच टोलियों में बँटे। इन्हें पाँच टारगेट दिये गये थे। प्रत्येक टारगेट पर दो दो लोगों को पहुँचना था। ये टारगेट थे होटल ताज, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, नारीमन हाउस, कामा हास्पीटल, और लियोपोल्ड कैफे थे। कौन कहाँ कब पहुँचेगा यह सुनिश्चित था। सभी रात सवा नौ बजे तक अपने अपने निर्धारित स्थानों पर पहुँच गये। उन्होंने लगभग पन्द्रह मिनट वहाँ घूमा पूरे वातावरण का जायजा लिया और ठीक साढ़े नौ बजे से हमला आरंभ किया। इन्हें पाकिस्तान में बैठकर कोई जकीउर रहमान कमांड दे रहा था। जकी ने ही साढ़े नौ बजे हमले की कमांड दी थी। ये सभी आतंकवादी अपने दिमाग से नहीं अपितु मिल रही कमांड के आधार पर काम कर रहे थे । इसलिये अपने टारगेट पर पहुँचकर इन्होंने पहले जायजा लिया। सूचना दी और कमांड का इंतजार किया। कहाँ बम फोड़ना है, कहाँ गोली चलाना है, कितनी गोली चलाना है, यह भी कमांड दी जा रही थी। ये हमला कितनी आधुनिक तकनीक से युक्त था इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में बैठा जकीउर रहमान इन सभी को देख सकता था, और वह देखकर बता रहा था कि किसे क्या करना है । वह किसी ऐसी आधुनिक प्रयोगशाला में बैठा था जहाँ से इन्हें आगे बढ़ने का, दाँये या बायें मुड़ने का मार्ग भी बता रहा था और आगे पुलिस प्वाइंट कहाँ, यह भी बताता था। बहुत संभव है कि इन पाँचों टीम को कमांड देने वाले अलग अलग लोग हों। बाकी हमलावरों की मौत हो गयी इसलिये उनका रहस्य, रहस्य ही रह गया। जकी का नाम इसलिये सामने आया कि कसाब पकड़ा गया और उसने यह नाम बताया। ये सभी आतंकवादी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन लश्करे तैयबा के सदस्य थे। सभी के पास एके-47 रायफल, पिस्टल, 80 ग्रेनेट और विस्फोटक, टाइमर्स और दो हजार गोलियाँ थीं। हमला 26 नवम्बर को आरंभ हुआ और 28 नवम्बर की रात तक चला। 29 नवम्बर को सरकार ने हमले से मुक्त होने की अधिकृत घोषणा की। तब जाकर पूरे देश ने राहत की सांस ली। इस हमले में कुल 166 लोगों की मौत हूई। जो घायल हुये और जिन्होंने ने बाद में प्राण त्यागे उन्हें मिलाकर आकड़ा दो सौ से ऊपर जाता है। घायलों की संख्या तीन सौ से अधिक थी। आतंकवादियों से निबटने के लिए सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन 'ब्लैक टोर्नेडोÓचलाया था । यह मुकाबला कोई साठ घंटे चला। अंतिम मुक़ाबला होटल ताज में हुआ। होटल ताज को इन दो आतंकवादियों से मुक्त कराने में सुरक्षा बलों को पसीना आ गया। इसका एक कारण यह था कि सुरक्षा बलों को इनकी लोकेशन का पता देर से लगता जबकि आतंकवादियों को होटल के हर कोने की गतिविधियों का पता तुरन्त कमांड से चल रहा था। आतंकवादियों ने होटल के कैमरे और लिफ्ट सिस्टम को नष्ट कर दिया था। इसलिये सुरक्षा बलों को कठिनाई आ रही थी जबकि पाकिस्तान में बैठा इनका कमांडर होटल की हर गतिविधि को देख रहा था उसी अनुसार इन्हें कमांड दे रहा था जिससे वे सुरक्षाबलों के मूवमेन्ट से परिचित होते और अपनी लोकेशन बदल लेते थे। यही कारण था कि केवल दो आदमियों ने होटल ताज में जन और धन दोनों का कितना अधिक नुकसान किया यह विवरण अब हम सबके सामने है।

मुम्बई ने हमलों का सबसे अधिक गहरा दंश झेला है । 1983 के सीरियल ब्लास्ट के बाद 2008,के इस हमले तक कुल तेरह बड़ी घटनाएँ हुईं जिनमें 257 मौतें और 700 से अधिक लोग घायल हुये। इस बड़ी घटना के बाद कुछ विराम सा लगा। पर समाज और राजनेताओं को राजनैतिक हित और राष्ट्र हित में अंतर अवश्य रखना होगा। आक्रमण यदि राष्ट्र पर है तो राजनीति आड़े नहीं आना चाहिए। हो सकता है गोधरा कांड के बाद हमलों पर राजनीति न होती तो शायद यह घटना न घटती या पाकिस्तान को इतना मौका न मिलता ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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