एक देश एक विधान-समान नागरिक संहिता
10 मई 1995 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में सरकार से कहा कि वह संविधान के चौदह निर्देशक सिद्धातों में से अनुच्छेद 44 को क्रियान्वित करने के विषय में अवगत कराए। सरकार से कहा गया है कि वह इस दिशा में उठाये गये कदमों के बारे में अगस्त 96 तक हलफनामा प्रस्तुत करे। इस अनुच्छेद 44 में निर्देशित है कि भारत के नागरिक एक समान नागरिक संहिता के अन्तर्गत उपचारित होंगे। न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह तथा न्यायमूर्ति आर. एम. सहाय की खंडपीठ ने जो निर्णय दिया।
बीते वर्षों में तीसरा अवसर है जब सर्वोच्च न्यायालय ने देश को सचेत किया है कि उत्तरोत्तर सरकारें संविधान द्वारा प्रदत्त दायित्व को निभाने में पूर्णत: उदासीन रहीं हैं। यह उदासीनता क्यों? मैं समझता हूँ कि राजनेताओं की नजर वोट बैंक पर है जिस कारण मुसलमानों को खुश करने की कांग्रेस सहित तथा कथित सभी धर्मनिरपेक्ष दल उनके तलवे चाटने लगे हैं। 10 मई 95 तथा इससे पूर्व भी सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के सभी समुदायों के लिए समान नागरिक संहिता की अनिवार्यता व्यक्त की है। शाहबानों केस की बात लें, तो एक धनवान प्रतिष्ठित मुसलमान वकील अदालत के आदेश पर उस वृद्ध महिला, जो उसके पांच बच्चों की माँ थी और जिसे निकाह (विवाह) के 43 वर्ष पश्चात घर से निकाल बाहर किया था, को पाँच सौ रुपए अदा करने से इनकार कर दिया। न्यायालय उसे यह धनराशि अदा करने का आदेश देता है और वह धनी वकील इस अदालती आदेश को इस्लाम पर हमला बताते हुए चीखने चिल्लाने लगता है। उसके इस चिल्लाने को मुल्ला मौलवी इस्लाम खतरे में कहकर उठ खड़े होते हैं। मुसलमानों के वोट बैंक से कांग्रेस सरकार थरथराई और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को पैरों तले रौंदकर मुसलमानों के गले जीत की माला पहनाकर खुशामद की। फलत: मुल्ला मौलवियों के दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गये। इस 10 मई 95 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लेकर वही मुल्ला मौलवी लखनऊ (उ.प्र.) में 16 व 17 जून 95 को सम्मेलन आयोजित कर पूर्व की भांति इसका नेतृत्व करने वाले तथा कथित उदार मुस्लिम नेता अलीमिया नदवत उल-उलमा के प्रमुख तथा उस-राविता-उल-आलम-अल इस्लामी नाम संगठन के संस्थापक थे। ध्यान रहे कि इस संस्था का गठन सऊदी अरब के शाह ने किया था। इस संस्था को अरबों की धनराशि मुस्लिम देशों से मिलती है। पूर्व में पाक की गुप्तचर अधिकरण के प्रशिक्षित मुस्लिम युवक जो भारत में आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त थे। नदवत उल-उलमा में पकड़े गये थे। नदवत-उल-उलमा परिसर में क्या हुआ और सरकार ने क्या किया यह मेरा आज का विषय नहीं है। बुद्धिजीवी चिंतक इस घटना से भली-भाति परिचित होंगे। अलीमियां ने कहा था कि हम ऐसा आन्दोलन खड़ा करेंगे कि सरकार को हमारे आगे झुकना ही पड़ेगा। अर्थात अलीमिया कहते हंै कि कानून को हमारे आगे झुकाना ही पड़ेगा। राष्ट्र स्वाभिमानियों को अलीमियां की चुनौती स्वीकार करनी ही होगी। क्या कानून मुसलमानों की दया पर निर्भर रहेगा। इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय अपना दुख व व्यथा व्यक्त करने पर विवश हुआ है कि 40 प्रतिशत नागरिकों को आचारवद्ध संहिता निजी कानून के अन्तर्गत पहले से ही लाया जा चुका है। अत: सम्प्रति भारत के सभी नागरिकों के लिए समान आचार संहिता को क्रियान्वित न करने में कोई औचित्य नहीं है। दो राष्ट के सिद्धांत पर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के नेतृत्व में मुसलमानों ने देश का विभाजन माना। केवल हिन्दू महासभा तथा उसके नेता वीर सावरकर ने विभाजन का प्रबल विरोध किया था। हिन्दुस्तान को खंडित कर भारत के भू-भाग पर पाक का निर्माण हुआ। पाकिस्तान, उत्तरप्रदेश, बिहार, वर्तमान महाराष्ट्र के मुसलमानों के विकृत मस्तिष्क की उपज है जिनकी सोच की देन भारत का सबसे बड़ा शत्रु पाक है। आज के भारत के 95 प्रतिशत मुसलमानों ने पाक के पक्ष में मत दिया था। दुख तो इस बात का है कि जिन मुसलमानों ने पूरी शक्ति लगाकर हिन्दू भूमि का विभाजन करवा पाक बनवाया वह 70 प्रतिशत शेष रहे भारत में दनदना रहे हैं। इनकी आस्था आज भी पाक के लिए अटूट बनी हुई है राष्ट्रवादी मुसलमान हमारे भारतीय समाज के अभिन्न अंग हैं हम उनका सम्मान करते है पर वह है कि कितने (?) वह उंगलियों पर गिने जा सकते है। मुसलमानों के तलवे चाटने वालों से हम पूछते है कि क्या उनकी यही मानवता है कि एक व्यक्ति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक-तलाक कहकर निकाल बाहर करता है। एक नन्हीं असहाय डेढ़ माह की बच्ची को उसके माँ-बाप छोड़ देते हैं जो मुसलमान परिवार में जन्म लिए है उस पर तरस खाकर एक मुसलमान गोद लेना चाहता है। पर विरोध होता है यह गोद नहीं ले सकता है क्यों कि गोद लेना इस्लाम को मान्य नहीं है। यद्यपि यह तलाक या गोद क्योंकि गोद वाली बातें मुसलमानों की अपनी है परन्तु मानवता के नाते इस क्रूरता को हम सहन नहीं कर सकते हैं और यह धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाले मुख में चने दबाये बैठे हैं। धिक्कार है इनको। मजेदार बात यह है कि सीरिया, तुर्की, बंगला देश, पाक सरीखे इस्लामी देशों में एक से अधिक पत्नी पर प्रतिबंध है। मुल्ला मौलवी क्या (?) क्योंकि वह समझते हैं कि समान नागरिक संहिता के लागू हो जाने पर इस्लाम का अवरोध हो जावेगा। आज के वैज्ञानिक युग में इस्लाम में कोई आकर्षण नहीं रहा केवल कुछ लोग दूसरे विवाह के चक्कर में मुसलमान बनते हैं। हिन्दू रहकर यह दूसरी शादी नहीं कर सकते हैं विवश होकर विवाह की आड़ में मुसलमान बन जाते हैं। यदि समान आचार संहिता लागू हो जाती है तो उनका बढ़ना अपने आप समाप्त हो जाएगा। तभी तो न्यायमूर्ति आर.एम. सहाय ने अपने समवर्ती निर्णय में कहा कि सरकार धर्मान्तरण कानून बनाने हेतु एक समिति के गठन की व्यावहारिकता पर तत्काल विचार कर सकती है ताकि किसी भी व्यक्ति के द्वारा धर्म का दुरुपयोग रोका जा सके। माननीय न्यायमूर्ति ने ठीक कहा है।
(लेखक आ.भा. हिंदू महासभा के राष्ट्रीय सचिव हैं)