शैक्षिक संस्थानों में समरसता सुनिश्चित करता अभाविप

शैक्षिक संस्थानों में समरसता सुनिश्चित करता अभाविप
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डॉ.स्वदेश सिंह

आज का छात्र आज का नागरिक भी है। उसे समाज की अगुवाई करनी पड़ेगी। अभाविप ने इस बात को न केवल समझा बल्कि छात्रों को सामाजिक चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए खड़ा भी किया। सामाजिक समस्याएं शैक्षणिक संस्थाओं में परिलक्षित होती हैं। यशवंतराव केलकर, मदन दास देवी जैसे मनस्वियों के मार्गदर्शन में अभाविप ने भेदभाव और बहिष्कार जैसी विसंगतियों को दशकों पहले न सिर्फ समझने की कोशिश की बल्कि इसका समाधान खोजने का भी प्रयास किया। इसका मुख्य उद्देश्य छात्र समुदाय के बीच मधुर संबंध बनाए रखना था, क्योंकि छात्र तो समाज के अलग-अलग वर्गों से परिसर में आते थे।

संगठन की मान्यता है कि कैंपस में छात्रों के बीच सामाजिक मेलजोल नहीं है तो देश में भी नहीं हो सकता। संगठन छात्रों के बीच डॉ.अंबेडकर के आदर्शों के माध्यम से असमानता खत्म करने और समरसता लाने का काम किया। शोषणमुक्त एवं समतायुक्त समाज के लिए आधार तैयार कर अभाविप राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लक्ष्य की पूर्ति कर रहा है। कार्यकर्ता समानता आधारित समरस समाज की स्थापना का कार्य व्यक्तिगत प्रतिबद्धता और जीवन मूल्यों का हिस्सा होने के नाते करते हैं। समरसता के संदेश को शैक्षणिक परिसर और समाज में प्रसारित करने के लिए अभाविप तत्पर है।

अभाविप निराश्रित बच्चों के लिए संस्कार केंद्र चलाता है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में इसके अच्छे परिणाम आए। दूसरे राज्यों में यह कार्यक्रम संगठन के कार्यकर्ता चलाते हैं। इन केंद्रों पर शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन और अन्य जरूरतों का ध्यान रखा जाता है। हर साल, हजारों कार्यकर्ता सामाजिक अनुभूति के शिविरों में हिस्सा लेते हैं, जिसके तहत उन्हें झुग्गी-बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में जाना होता है, जहां वो समाज के कमजोर वर्गों की समस्याओं को समझने का प्रयास करते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अभाविप कमजोर छात्रों के लिए नि:शुल्क शैक्षिक सत्र, कार्यशाला, मार्गदर्शन कार्यक्रम करता है। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को विद्यार्थी निधि से सहायता देता है।

अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के अधिकारों के लिए अभाविप कार्यकर्ता खड़े होते हैं। आंदोलन और अभियानों से छात्रवृत्ति, भेदभाव के विरुद्ध मामलों को अभाविप न सिर्फ उठाती है बल्कि लक्ष्य तक पहुंचाती है। संगठन ने एससी-एसटी छात्रों की समस्याओं का अध्ययन छात्रावासों में जाकर किया। इस आधार पर न्यायालय में याचिका दायर की। न्यायालय के निर्देश पर छात्रों की सुविधा के लिए अलग से राशि आवंटित हुई। छात्रों का जीरो बैलेंस बैंक खता खुलवा कर छात्रवृत्ति सुविधा दिलवाई। अभाविप ने विभिन्न राज्यों में संचालित छात्रावासों का भी सर्वे किया, जिसकी रिपोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों को भेजी गई। इस अभियान में दो हजार से अधिक छात्रों, प्राध्यापकों और कार्यकर्ताओं ने छात्रावास का दौरा किया।

स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के प्रसिद्ध सूत्र-वाक्य में सामान्य रूप से बंधुत्व पर कम चर्चा होती है। बाबा साहब का कहना था कि उन्हें प्रेरणा फ्रांसीसी क्रांति से नहीं बल्कि बुद्ध की शिक्षा से प्राप्त हुई। डॉ.अंबेडकर के सिद्धांतों से प्रेरणा लेते हुए अभाविप छात्रों के बीच बंधुत्व का भाव बढ़ा रही है। प्रमुख कार्यक्रमों में डॉ.अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसे 1980 के राष्ट्रीय अधिवेशन से समरसता दिवस के रूप में मनाना सुनिश्चित किया गया। इससे पूर्व में डॉ. अंबेडकर के समरसता के विचार को प्रसारित करने के कई कार्यक्रम चल रहे थे, जैसे जयंती मनाना, शैक्षिक संस्थाओं, झुग्गियों और आदिवासी क्षेत्रों और गांवों में शैक्षिक गतिविधि करना। 1986 में सावरकर जन्मशताब्दी वर्ष में अभाविप ने महाराष्ट्र में समता ज्योति यात्रा निकाली। ज्योतिबा फुले की जयंती पर बहुत से कार्यक्रम किए गए, इसमें युवती सम्मेलन, युवा महोत्सव एवं अन्य गतिविधियां शामिल थीं।

जहानाबाद में नृशंस हत्याओं के बाद जब बिहार जल रहा था तब अभाविप ने सामाजिक सौहार्द के लिए अभियान चलाया। पिछड़ों को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा में आरक्षण बड़ा औजार है, ऐसा अभाविप का मामना है। 1990 में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण लागू किया गया और परिसरों में तनावपूर्ण माहौल था तब अभाविप ने हजारों बैठकें कर शांति और सौहार्द का वातावरण बनाने का काम किया। अभाविप का मानना है कि एक बार सामाजिक समरसता, सौहार्दपूर्ण वातावरण परिसरों में पूरे तरीके से बन गया तो सामाजिक व्यवस्था में इस संदेश को फैलाने में समय नहीं लगेगा।

(लेखक दिल्ली विवि के सत्यवती कॉलेज

में राजनीति के आचार्य हैं)

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