आखिर पटेल क्यों कहलाए लौह पुरुष
जी हां, पटेल का नाम लेते ही वल्लभ भाई और वल्लभ भाई का जिक्र होते ही उस शक्तिशाली नेता की छवि उभर कर सामने आती है, जिन्हें आज 'लौह पुरुषÓ के नाम से जाना जाता है। आज जिस अखंड भारत की बात हो रही है असल में उसकी वकालत करने वाले या यूं कहें कि उसकी नींव रखने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल ही थे। आजादी के समय भारत 562 रियासतों में बंटा था। सरदार पटेल का मानना था कि इन सबके विलय के बिना अखंड व आधुनिक भारत का सपना साकार नहीं हो सकता। आजाद भारत के पहले केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में उन्होंने 559 रियासतों को भारत में विलय करने के लिए मना लिया। सिर्फ कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद ऐसी रियासतें थीं, जिन्होंने विलय का प्रस्ताव मानने में आनाकानी की थी। हैदराबाद के मुस्लिम शासक उस्मान अली खां आसिफ ने भारत के बीचो बीच 'एक और पाकिस्तानÓ बनाने की ठान ली थी। जब सरदार पटेल ने जोर डाला तो आसिफ ने पाकिस्तानी सेना को बुलाने की कोशिश की। यह पता चलते ही सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत में शामिल करने के लिए 1948 में 'ऑपरेशन पोलोÓ चलाया, जिसका परिणाम यह हुआ कि अड़ियल निजाम सत्ता से बेदखल कर दिया गया और हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया।
प्रसिद्ध लेखक एचवी हडसन ने तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड मांउटबेटन से कहा था कि अच्छा हुआ नेहरू ने गृह मंत्रालय का जिम्मा नहीं उठाया। अगर ऐसा होता तो सब कुछ बिखर जाता। यथार्थवादी पटेल ने यह काम बहुत बेहतर ढंग से अंजाम दिया। जूनागढ़ ने तो बाकायदा पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी थी, लेकिन सरदार के सामने एक न चली अंतत: हैदराबाद और जूनागढ़ में सेना भेज कर सरदार पटेल ने इन देशी राज्यों को भारतीय संघ में मिला लिया, जबकि इनके शासकों को भागकर अपनी प्राण रक्षा करनी पड़ी।
भारत का प्रचीन इतिहास लिखने वाले कई रूसी लेखकों ने लिखा है कि भारत में रियासतों के एकीकरण के लिए 1947 में एक विशेष मंत्रालय गठित किया गया, जिसकी जिम्मेदारी पटेल को दी गई। यह भी लिखा गया है कि राज्यों के विलय के लिए राजाओं को 5.6 करोड़ की राजकीय पेंशन भी दी गई। थल सेना के उपप्रमुख रहे ले. जनरल एसके सिन्हा के मुताबिक सरदार पटेल ने 'आपरेशन पोलोÓ पर बातचीत के लिए तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल करियप्पा को चर्चा के लिए बुलाया था। करियप्पा पटेल से मिले और तुरंत बाहर आ गए। करियप्पा के शब्दों में पटेल ने पूछा कि तुम तैयार हो और करियप्पा ने कहा- हां। बस मुलाकात खत्म। उसके बाद क्या हुआ यह सब जानते हैं। पटेल की इस दृढ़ इच्छाशक्ति ने असंभव को संभव बनाया, इसलिए देशवासियों ने उन्हें 'लौह पुरुषÓ के खिताब से नवाजा।
यह कहने और लिखने में कोई हिचक नहीं कि सरदार पटेल जितने निर्भीक थे उतने स्पष्टवादी भी। उन्होंने एक बार गांधीजी से बिल्कुल साफ कह दिया था कि देश को विदेशी हमलों से बचाने के लिए उनकी अहिंसा की नीति लंबे समय तक कारगर नहीं रह सकती। समाजवादी और वामपंथी भी अहिंसा के सिद्धांत को तवज्जो नहीं देते। इस पर गांधीजी ने 1 अगस्त, 1940 को पटेल को पत्र लिखा-'तुम इतने असहज क्यों महसूस कर रहे हो? मैं तुम्हारी हर उस बात का समर्थन करूंगा, जिसे तुम उचित समझो।Ó सरदार पटेल भी अहिंसा में विश्वास रखते थे, लेकिन उसी सीमा तक, जहां तक वह राष्ट्र के लिए उपयोगी हो। वे शासन कला में इसके कारगर होने को लेकर संशय में थे। आज यह चर्चा होती है कि शायद उनकी स्पष्टवादिता व गांधीजी से विचार मेल न खाने के कारण ही तमाम योग्यता के बावजूद प्रधानमंत्री पद के लिए गांधी ने पटेल के बजाय नेहरू को तरजीह दी।
बेशक, किसी तरह के विवाद से बचने के लिए सरदार पटेल ने कह दिया था कि 'गांधी द्वारा उत्तराधिकारी घोषित पंडित जवाहरलाल नेहरू ही हमारे नेता हैं, लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि पटेल बतौर प्रधानमत्री नेहरू के कामकाज के तरीके से बहुत खुश नहीं थे। उन्होंने गांधीजी से इस बात की शिकायत भी की थी। उन्होंने गांधीजी से कहा था कि अगर नेहरू ने अपने तरीकों को नहीं सुधारा तो वे उपप्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। सरदार पटेल के बारे में आम हिंदुस्तानी उतना नहीं जानता जितना उन्हें जानना चाहिए था। राजमोहन गांधी ने सरदार पटेल की जीवनी में लिखा है कि भारत आज जो कुछ है उसमें पटेल का बहुत योगदान है, लेकिन इसके बावजूद हम उनकी उपेक्षा करते हैं। उनके योगदान की चर्चा में हम अक्सर कंजूसी कर जाते हैं।
सच कहें तो अखंड भारत एक ऐसी अवधारणा है, जिसके साकार होने का सपना हर राष्ट्रवादी देखता था, देखता है और देखता रहेगा। इस सटीक अवधारणा में अपनी-अपनी सोच के मुताबिक अखंड भारत की सीमाएं, परिधि आदि अलग-अलग हैं। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में जो भारत है, जिसे आज की पीढ़ी अखंड भारत के नाम से जानती है, उसके रचयिता हैं सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें सरदार पटेल व लौह पुरुष के नाम से भी पुकारा जाता है। वहीं यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद जैसे हिन्दुत्ववादी संगठनों के अखंड भारत की बात करें तो उनकी परिकल्पना में अखंड भारत की सीमाएं आज के बांग्लादेश, तिब्बत, म्यांमार, थाईलैंड, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तक फैली होनी चाहिए और यहां हिंदू साम्राज्य होना चाहिए। हालांकि, वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में यह कल्पना मात्र ही परिलक्षित होती है।
मालूम हो कि वल्लभ भाई का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात प्रांत के नडियाद में पाटीदार परिवार में हुआ था। पटेल अपने पिता झावेरभाई वंश मां लाडबा की चौथी संतान थे। उनकी शिक्षा मुख्यत: स्वाध्याय से हुई थी। उन्होंने लंदन जाकर वकालत की शिक्षा ली और स्वदेश लौट कर अहमदाबाद की अदालत में वकालत शुरू की, लेकिन उनके मन में तो देश को स्वतंत्र कराने की लगन थी, इसलिए वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे।
(लेखक, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)