चांद के बाद अब भारत की सूरज पर छलांग
भारत की कामयाबी और सफलता पर आज दुनिया आश्चर्य चकित है। भारत ने दस दिन में ही चांद के बाद अब सूर्य पर छलांग लगा दी। दस दिन पूर्व चंद्रयान के चांद के दक्षिण धु्रव पर कामयाब लैंडिग के बाद भारत का अंतरिक्ष यान सूर्य के बारे में जानकारी एकत्र करने करने के लिए रवाना हो गया। आदित्य सूर्य का अध्ययन करेगा। सूर्य के रहस्यों को खोलेगा। इससे भारत के सूर्य विज्ञान की पूरी दुनिया में धाक जमेगी। भारत के आय के साधन बढ़ेंगे। भारत के वैज्ञानिकों की दुनिया में मांग होगी।
करीब चार महीने बाद यह 15 लाख किलोमीटर दूर लैगरेंज पॉइंट-एक तक पहुंचेगा। इस पॉइंट पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता। इसके चलते यहां से सूरज पर आसानी से रिसर्च की जा सकती है। इसरो ने बताया कि जिस सोलर सिस्टम में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है। पृथ्वी पर जीवन पनपने की मुख्य वजह सूरज ही है। सूर्य से लगातार ऊर्जा बहती है। इन्हें हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं। सूर्य का अध्ययन करके ये समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले बदलाव अंतरिक्ष को और पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं कि सूरज के रहस्य इतने अनजाने हैं कि सारी दुनिया उसके बारे में जानना चाहती है। धरती से सूरज 150,920 हजार किलोमीटर दूर है और हमारा मिशन धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर जाकर वहां स्थिर होकर स्टडी करेगा। सूर्य का अध्ययन करने से हमें दूसरे सितारों के बारे में भी ज्यादा जानकारी प्राप्त होगी। सूर्य से ही पृथ्वी पर सब जीवन को ऊर्जा मिलती है, लेकिन सूर्य में विस्फोटक घटनाएं भी होती हैं। ये घटनाएं हमारे उपग्रह और संचार तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती हैं। सूर्य का अध्ययन करके हम ऐसी घटनाओं से पहले ही सावधान होकर इन दुर्घटनाओं को रोक सकते हैं। सूर्य का अध्ययन अंतरिक्ष से करना जरूरी है, क्योंकि पृथ्वी का वायुमंडल और चुम्बकीय क्षेत्र हानिकारक किरणों, जैसे यूवी किरण को रोक देते हैं। इसका मतलब है कि सूर्य पर ये प्रयोग करने के लिए जरूरी सामग्री पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं है। इसलिए पृथ्वी से सूर्य का पूरा अध्ययन नहीं किया जा सकता।
भारत ने 1950 और 1960 के दशक में जब अंतरिक्ष अनुसंधान पर काम शुरू किया था, तक किसी को यकीन नही था, कि भारत इतनी तरक्की करेगा। आज भारत अंतरिक्ष तकनीक में रूस और अमेरिका जैसे देशों से स्पर्धा कर रहा है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अब यह निश्चित रूप से दुनिया के प्रमुख देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों की कतार में खड़ा है। पिछले चार वर्षों में भारत में लगभग डेढ़ सौ निजी अंतरिक्ष कंपनियाँ अस्तित्व में आई हैं। ये टेक स्टार्टअप बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। इन कंपनियों में अरबों रुपये का निवेश किया जा रहा है। इसरो के अंतरिक्ष मिशन में उच्च प्रौद्योगिकी स्टार्टअप और निजी कंपनियों की भूमिका बढ़ती जा रही है। ये कंपनियां भी अपने दम पर आगे बढ़ रही हैं। 2022 में, 'स्काईरूटÓ नामक एक निजी कंपनी ने भारत में निर्मित रॉकेट पर अपना उपग्रह अंतरिक्ष में लॉन्च किया था। यह पहली बार था कि भारत की किसी निजी कंपनी ने अपने ही रॉकेट से अपना उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था। हैदराबाद स्थित यह कंपनी इस साल के अंत तक एक बड़ा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रही है।
भारत हर एक क्षेत्र में खुद को काफी तेजी से विकसित कर रहा है, चाहे वो रक्षा क्षेत्र हो या विज्ञान क्षेत्र। मिशन मार्स से लेकर मून मिशन तक हर जगह भारत ने एक अमिट छाप छोड़ी है। इतना ही नहीं, भारत की मदद से दूसरे देशों के सैटेलाइट भी अंतरिक्ष में लॉन्च किए जा रहे हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को आज एक महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। भारत एक साथ 100 से अधिक सैटेलाइट लॉन्च कर पहले ही रिकॉर्ड बना चुका है। दूसरे देशों की सेटेलाइट छोड़ने से भारत की आय बढ़ रही है, भारत का व्यापार बढ़ रहा है। भारत इस क्षेत्र में जितना आगे बढ़ेगा, उतनी ही उसकी आय बढ़ेगी। पूरी दुनिया में भारत की तकनीकि कला विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और इंजीयर की मांग बढ़ेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)