अनंत रूपिणी मां सारदा मणि

अनंत रूपिणी मां सारदा मणि
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डॉ. कल्पना भार्गव

अग्रहण्य कृष्णा सप्तमी श्री रामकृष्ण देव की लीला सहचरी श्री मां सारदा मणि के आविर्भाव की तिथि जहां श्रीरामकृष्ण देव ने सामान्य जीवन जीते हुए तत्कालीन बंगाली समाज में और अपनी सहज सरल शिक्षाओं से स्वामी विवेकानंद जैसे मूर्धन्य शिष्य को देकर संसार में भारत के वैदान्तिक दर्शन को जागृत किया वहीं अपनी सह धर्मिणी श्री मां सारदा के कृत्तित्व एवं व्यक्तित्व से तत्कालीन भारतीय नारी समाज में नारी शिक्षा को बढ़ावा दिया। अनेक सामाजिक कुरूपताओं को बढ़ने से रोका।

श्री मां ने स्वयं कहा ठाकुर जी रामकृष्ण देव का जगत के प्रत्येक व्यक्ति पर मातृत्व भाव था उसी मातृत्व भाव को जगत में विकास के लिए मुझे इस बार रख गये। अपने मातृत्व भाव को उन्होंने हिंदू-मुस्लिम, सिख, ईसाई, विदेशी, गरीब, दुखी सब के लिए अव्याहत भाव से प्रसारित किया था। इसलिए वे कहती थीं मेरा बच्चा यदि कीचड़, धूल लगा लेता है अर्थात बुराइयों में पड़ जाता है तो मुझे उसे धूल झाड़कर गोद में लेना होगा। अर्थात उसके दुर्व्यसनों को दूर कर उसे सदाचारी बनाना होगा। इसलिए यदि श्री रामकृष्ण देव को कल्पतरु कहा जाता है तो श्री मां सारदा चिरकालीन कल्पतरु हैं।

श्री मां सारदा कहती थीं पाप से घृणा करो पापी से नहीं। यह था उनके जीवन से सीखने योग्य सबसे बड़ा आदर्श। वे दुनिया की सब संतानों की मां हैं किसी सीमा में बंधी हुई नहीं। अमजद जैसे उनका बेटा है, शरद भी वैसा ही है, विसेज बुल, मिस नेमलाउड एलीजाबेथ नोबुल (निवेदिता) इन सबके साथ एक थाली में प्रसन्नता पूर्वक भोजन करते हुए वे उनकी आध्यात्मिक जननी बनी थी। इसीलिए उन्हें लोक माता भी कहा गया।

वे निर्भया, साहसी थी कहती थी भय क्या है। सर्वदा जानना कि ठाकुर हमारे पीछे है। मां के रहते कैसा भय? वे भविष्य दृष्टा भी थीं। दिव्य दृष्टि से उन्होंने देखा कि स्वामी विवेकानंद के माध्यम से जगत में श्रीरामकृष्ण विचारधारा प्रचारित होगी अत: उन्होंने स्वामी जी को विदेश यात्रा के लिए अनुप्राणित किया था। इसलिए महापुुरुष महाराज ने कहा था ये जो मंदिर में मां है और जो नहबत खाने में मां है दोनों अभिन्न हैं। इसलिए उन्हें अनंत रूपिणी, अनंत गुणमयी, अनंत नाम्नी दुर्गे मां। वे अपने भक्तों को आश्वस्त करते हुए कहती थीं - जो यहां आए हैं वे मेरी संतानें हैं, उनकी मुक्ति निर्धारित है। विधाता की शक्ति नहीं कि मेरे बच्चों को रसातल में फेंक सके। मुझ पर भार देकर निश्चिंत रहो और सर्वदा जानों कि तुम्हारे पीछे एक व्यक्ति है जो समय आने पर तुम सबको उस नित्यधाम में ले जाएंगे।

उन अनंत स्वरूपिणी भक्त-वत्सला श्री मां को शत्-शत् नमन।


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