सनातन विरोधी षड्यंत्र

सनातन विरोधी षड्यंत्र
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भूपेन्द्र भारतीय

स्टालिन जैसा तथाकथित मूर्ख नेता सनातन धर्म के समूल नाश की बात करने की हिम्मत कैसे कर लेता है ? इसका बहुत ही आसान व सीधा जवाब है कि सनातन धर्म के लोग जातियों व विचारधाराओं में राजनीतिक पंडितों के कारण बंटा हुआ है। उसका राजनीति ने आसानी से वर्गीकरण कर दिया है। छोटे से गाँव, बड़े नगरों में देखिए, हर जाति व वर्ग अपने-अपने भगवान के साथ शक्ति प्रदर्शन में लगी हुई है। एकजुट कहीं नहीं है। आज सनातन धर्म कहां संगठित व एक है यह चिंता व चिंतन का गंभीर विषय है। जातियों का वर्गीकरण नेताओं व अंग्रेजी ने अपनी अपनी दुकानें चलाने के लिए किया है। जाति जैसा वर्गीकरण सनातन धर्म में था ही नहीं। यह अंग्रेजों द्वारा प्रायोजित तरीके से सनातन धर्म समाज में जनगणना के माध्यम से घुसाया गया है। दुर्भाग्य है कि सनातन धर्म के लोग आजतक इस षड्यंत्र को समझने को तैयार नहीं है और इसका फायदा स्टालिन व उसके जैसे सनातन धर्म विरोधी लोग समय समय पर उठाते रहते हैं।

विगत 10-15 वर्षों से हर जाति अपनी ताकत दिखाने के लिए अपने अपने भगवान के साथ साल में दो एक बार शक्ति प्रदर्शन करती है। भारत के अधिकांश नगरों के थानों पर पुलिस के ऊपर इन जलसो व जुलूस को शांतिपूर्वक नगर मार्गों से निकालने का भारी दबाव रहता है। इस दौरान जातिगत लोग धर्म की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां तो सेंकते हंै ही लेकिन प्रशासन पर अधिकांश समय अनुचित दबाव भी बनाते हैं। भारत में पहले से ही पुलिस बल का आभाव है व ऊपर से कार्य की अधिकता अलग से। पुलिस नेताओं की सुरक्षा करें, जातिगत शक्ति प्रदर्शन को देखे, नक्सलियों से निपटे, चुनाव करवाये, भीड़ की हिंसा से निपटे या फिर स्टालिन जैसे नेताओं के बड़बोलेपन से निपटे?

सनातन धर्म जातियों व फिर इसके बाद राजनीतिक दलों में बंट (विभाजित) हो गया है। दिनों दिन सनातन धर्म का विभाजन व वर्गीकरण किया जा रहा है। वह कभी राजपूत में बंटता है तो कभी ब्राह्मण, वैश्य, शुद्र, दलित, बलाई, चमार, सैंधव, क्षत्रिय, यादव, धाकड़, पाटीदार, जाट, भूमिहार, कुर्मी, विश्वकर्मा आदि और फिर इन जातियों ने अपने अपने भगवान चुन लिये है। किसी के पास राम है तो किसी के पास कृष्ण, बलराम, विश्वकर्मा, शंकर, परशुराम, दुर्गा, गणेश जी आदि और फिर ये विभाजित सनातनी जातिगत वर्ग हर वर्ष अपनी अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए नगरों व बड़े शहरों में जुलूस निकालता है। आम जन के धन व समय की बर्बादी होती है। सनातन धर्म के लोगों की शायद इसी कमजोरी को ध्यान में रखकर स्टालिन जैसा मतांतरित इसाई सनातन धर्म के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है।

सरकारें ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती है क्योंकि उसे अपने वोटबैंक की चिंता रहती है। वह कभी नहीं चाहती है कि सनातन धर्म के लोग साल में एक बार ही संगठित होकर अपने इष्ट का जुलूस व जन्म जयंती या फिर पर्व का उत्सव मनाये। सरकारें ऐसा आदेश कभी नहीं निकालेगी, क्योंकि वह इन्हें बंटा हुआ ही रहना चाहती है, इससे उसकी सत्ता व राजनीति बनी रहती है।

राजनेता व राजनीति तो चाहती है कि सर्व हिन्दू सनातन धर्म समाज बंटा रहे, जिससे उसकी राजनीतिक दुकान चलती रहे। उसे राजनीति करने व भ्रष्टाचार में लिप्त रहने पर कोई छेड़छाड़ नहीं करें। सनातन धर्म समाज को समझना चाहिए कि उसका उपयोग नेता व पंथ के नाम पर राजनीति करने वाले कैसे कर लेते हैं।

क्या स्टालिन भारत में रह रहे अन्य पंथ, मजहब या फिर रिलिजन व विचारधारा के लोगों के लिए ऐसा बयान देने की हिम्मत कर सकता है? हम सब जानते हैं कि वह ऐसी हिम्मत नहीं कर सकता। क्योंकि वे लोग इतने जातियों व राजनीतिक वर्गों में नहीं बंटे है। वे सनातन धर्म से ज्यादा संगठित व एकजुट होकर रहते हंै। खासकर राजनीतिक चुनाव के समय ज्यादा। वे अपने मत व पंथ पर ऐसे बयान आने पर सीधे जान से मारने पर उतारू हो जाते हैं और सरकारें उस समय वोटबैंक के कारण मौन धारण कर लेती हैं। वहीं वे राजनीतिक रूप से भी संगठित है। इसलिए बहुसंख्यक के सामने इस देश में अल्पसंख्यक ताकतवर है। व स्टालिन जैसे नेता सनातन धर्म के खिलाफ ऐसे बयान देने की हिम्मत करता है। अब समय आ गया है कि इस मामले में हमारे संविधान में भी पंथ के नाम पर जो गैरजरूरी अधिकार दिया गया है उसमें उचित संशोधन हो तथा न्यायापालिका अपनी निष्पक्ष भूमिका का निर्वाह करें।

(लेखक स्तंभकार हैं)

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