अमृतकाल में नारी शक्ति का जागरण

अमृतकाल में नारी शक्ति का जागरण
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बृजनन्दन राजू

अमृतकाल में नये संसद भवन में प्रवेश करते ही महिलाओं को सक्षम बनाने के उद्देश्य से 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023Ó पारित कर भारत सरकार ने इतिहास रचने का काम किया है। निश्चित ही यह नये व विकसित भारत का प्रतिबिम्ब है। महिलाओं के लिए लोकसभा व विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण के विधेयक का सभी दलों ने एकजुट होकर समर्थन किया। महिलाओं के लिए यह गौरव का क्षण है। विधेयक के पक्ष में 454 और विपक्ष में मात्र दो वोट पड़े। यह भारतीय लोकतंत्र की महिलाओं के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है। महिला आरक्षण बिल के विरोध में एआईएमआईएम के असद्दुदीन ओवैसी व इम्तिआज जलीन ने ही विरोध किया। इस बिल के विरोध में आने से उनकी मानसिकता उजागर होती है। जबकि भारत के अन्य दलों ने जिस प्रकार महिला सशक्कतीकरण के मुद्दे पर दुनिया को एकजुटता का संदेश दिया है। इससे भारत का मस्तक ऊंचा हुआ है।

महिला आरक्षण बिल पिछले 27 वर्षों से लंबित था। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जनगणना और परिसीमन दोनों का काम शुरू हो जायेगा। इसके पूरा होने के बाद विधानसभा और लोकसभा के चुनाव महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के साथ होंगे।

सरकार इस विधेयक पर सुझावों को खुलेमन से स्वीकार करने को भी तैयार है। जरूरत पड़ने पर इसमें आवश्यक संशोधन भी किया जायेगा। स्वाधीनता के अमृतपर्व पर महलाओं को यह सुअवसर प्रदान करने के लिए राष्ट्र सेविका समिति, दुर्गा वाहिनी, वीरांगना वाहिनी ने भारत सरकार का अभिनंदन किया है। राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांतक्का ने भारत सरकार व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संसद व विधानसभाओं में महिलाओं को जो सुअवसर प्राप्त हो रहे हैं, यह महिलाओं के लिए गौरव का क्षण है। क्योंकि आज निश्चित ही महिलाओं के लिए आरक्षण की आवश्यकता है। जब से केन्द्र में मोदी की सरकार बनी है तब से महिलाओं के लिए अनेक योजनाएं बनाई गयी हैं। उन योजनाओं का लाभ महिलाओं मिल भी रहा है।

राष्ट्र की आधार शक्ति नारी है। प्राचीनकाल में भारत में महिलाओं की स्थिति अच्छी थी। नारी को उपनयन का अधिकार प्राप्त था। नारियां गुरूकुलों में जाती थीं और उन्हें वेदों की शिक्षा दी जाती थी। राजाओं के राज्याभिषेक के समय रानियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। धर्म व अध्यात्म के विषयों पर व पुरुषों से शास्तार्थ करती थीं। हमारे यहां महिला व पुरूष में भेद नहीं था। महिलाएं भी युद्ध कौशल में प्रवीण होती थीं और समरांगण में भी जाती थीं।

नारी शक्ति समाज को शुद्ध और प्रबुद्ध करने में सक्षम है। राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने समाज धारणा के लिए नारी की सुप्त शक्तियों को आधार रूप माना है। हम देखते हैं की प्रत्येक कार्य में शक्ति अंतरनिहीत होती है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था महिलाएं अपनी समस्याएं हल करने में खुद तो सक्षम हैं ही अतितु समाज की समस्याओं को हल करने में अपना योगदान दे सकती हैं।

संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरूजी भी कहते थे कि महिलाओं को केवल घर तक सीमित रखना ठीक नहीं है। श्रीगुरूजी स्त्रियों को शक्तिस्वरूपा मानते थे। वे कहते थे कि महिलाएं अपनी समस्याओं को सुलझाने में स्वयं सक्षम हैं।

महिलाओं को अपने घर की चहारदीवारी से बाहर के समाज में भी अपने मातृप्रेम की वर्षा करनी चाहिए। समाज की निर्धन बहनों की सेवा का दायित्व भी माताओं पर ही है।

बच्चों पर संस्कार डालने का काम माताओं का होता है। माता अपने बच्चों को वीरों के रूप में ढ़ाल सकती है। देश प्रेम व समाज सेवा की भावना भर सकती है। छत्रपति शिवाजी को शिवाजी बनाने में उनकी माता जीजाबाई का महान योगदान था।

राष्ट्रस्य सुदृढ़ा शक्ति समाजस्य च धारिणी।

भारते संस्कृते नारी,माता नारायणी सदा।।

अर्थात भारत में नारी शक्ति राष्ट्र को मजबूत करती है तथा समाज को धारण करती है और देवी मां की भांति सदा—सर्वदा उसका पालन पोषण एवं संस्कारित करती है।

आधी जनसंख्या महिलाओं की है। भारतीय महिलाएं विश्व में सर्वोच्च स्थान रखती हैं। हमारे इतिहास में केवल पुरूषों की गौरव गाथा का ही वर्णन नहीं है। भारतीय समाज में प्राचीनकाल से नारी का गौरवपूर्ण स्थान रहा है।

महिलाओं का उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और राष्ट्र निर्माण में बराबर की सहभागिता से एक आदर्श समाज तथा राष्ट्र का निर्माण संभव है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति वहां रहने वाले महिला व पुरूष के परिश्रम से होती है। स्त्री एक प्रेरक शक्ति है। यही परिवार समाज व राष्ट्र को चैतन्य बनाती है। बीच के कालखण्ड में हमने उन्हें दीनहीन बनाया। महिलाएं स्व संरक्षण करने में सक्षम बने यह आज की महती आवश्यकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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