निष्प्राण होते खालिस्तानी आंदोलन को हवा देता कनाडा
पाकिस्तानी- खालिस्तानी गठजोड़:
खालिस्तानी आतंकवाद मुद्दे पर भारत-कनाडा विवाद के तारतम्य में यह स्मरण रखने की आवश्यकता है कि विगत वर्षों में खालिस्तानी आतंकियों द्वारा भारत के विघटन का खतरा काफी कम हो गया है। खालिस्तानी आंदोलन का शोर विदेशों में बसे अप्रवासी भारतीयों में ही अधिक है, भारत में शोर कम हो गया है। उन्नीस सौ अस्सी के दशक का खालिस्तानी आंदोलन अब भारत के पंजाब में ही कमजोर पड़ गया है, इसलिए खालिस्तानी आतंकी हिंसा से भारत टूटने की गाथा अब काल्पनिक है। विचित्र बात यह है कि पंजाब को स्वतंत्र देश खालिस्तान बनाने का आंदोलन अधिकांशत: विदेशों में ही चल रहा है, विदेशों में बसे सिखों द्वारा। इस सप्ताह भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कनाडा सरकार से कनाडा में बसे छब्बीस खालिस्तानी आतंकियों को भारत भेजने की मांग की है, यह कहते हुए कि इनसे भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरा है। वास्तव में भारत सरकार के ऐसे बयान 2024 के आगामी संसदीय चुनाव में खालिस्तानी मुददे को अपने पक्ष में भुनाने का ही प्रयास है।
- द न्यूयार्क टाईम्स, अमेरिका
(टिप्पणी- चलिए, नहीं चाहते हुए भी कट्टर भारत विरोधी न्यूयार्क टाईम्स को यह मानने हेतु बाध्य होना पड़ा है कि भारत सरकार के प्रभावशाली कदमों से भारत के पंजाब प्रांत एवं समूचे भारत में खालिस्तानी आंदोलन वेंटिंलेटर पर है, अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। उन्नीस सौ अस्सी एवं नब्बे के दशकों में पाकिस्तान प्रायोजित खालिस्तानी आंतकवादी अभियान चरम पर था, जिसने हजारों निर्दोष भारतीय नागरिकों को नेताओं तथा सुरक्षाकर्मियों की बलि ली। 1984 में जनरल सिंह मिन्डरावाले की सुरक्षाबलों के हाथों मौत के बाद उन्हें शहीद का दर्जा देकर खालिस्तानी आतंक को उग्र स्वरूप देने के सभी प्रयास कालांतर में निष्फल हो गए है। पाकिस्तानी-खालिस्तानी गठजोड़ का एक ज्वलंत प्रमाण यह है कि खालिस्तानी नेता अपने सपनों का आजाद खालिस्तान भारत के ही पंजाब प्रांत में देखना चाहते हैं, पाकिस्तान के कब्जे वाले पंजाब प्रांत में नहीं, जबकि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म सन चौदह सौ उनसत्तर में ननकाना साहिब में हुआ था, जो आज पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है।)
कभी मुखर-कभी मौन:
कनाडा के कट्टर खालिस्तानी नेता गुरपतवन्त सिंह पन्नू ने सोशल मीडिया एवं इंटरनेट पर एक वीडियो जारी कर कनाडा में बसे हुए लाखों हिन्दू कनाडाई निवासियों को चार दिनों में कनाडा खाली कर चले जाने की धमकी दी है, अन्यथा उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इस धमकी भरे वीडियो पर कनाडा की मीडिया और समाज में बवाल मचने के बाद कनाडा के जनसुरक्षा मंत्री डेमिनिक ली ब्लान्क ने एक बयान जारी किया कि कनाडा में बसे हिन्दू समुदाय को डरने की आवश्यकता नहीं है और कनाडा में उनके जान माल की सुरक्षा होगी। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ऐसे नफरती वीडियो की निंदा करती है।
- द इन्डीपेन्डेन्ट, लंदन, ब्रिटेन
(टिप्पणी- कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो की लिबरल पार्टी कनाडा संसद में एक सौ अठावन सीटों के साथ अल्पमत में है तथा खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के पच्चीस सदस्यों के समर्थन से ही सरकार चला पा रहे हैं। इसलिए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो एक प्रकार से खालिस्तानियों के रहमों करम पर जी रहे हैं और कनाडा के समस्त हिन्दुओं के विनाश की धमकी के बाद प्रधानमंत्री ट्रुडो ने बयान स्वयं देने की हिम्मत नहीं की और अपने कनिष्ठ मंत्री डोमिनिक ली ब्लान्क से एक सामान्य बयान जारी करवाया, जिसमें सिख फार जस्टिस संगठन या इसके खालिस्तानी आतंकी नेता गुरपतवन्त सिंह पन्नू के विरुद्ध निंदा का एक शब्द भी नहीं है। कनाडा सरकार का यह बयान भी मजबूरी में जारी किया गया, क्योंकि कनाडा के मुख्य विपक्षी दल कन्जरवेटिव पार्टी के सर्वोच्च नेता पियरे पोयलिवरे ने मीडिया में खुलकर कनाडा में बसे हिन्दुओं का पक्ष यह कहते हुए लिया कि कनाडा की प्रगति में हिन्दुओं का अमूल्य योगदान है तथा हिन्दुओं पर हमला सहन नहीं करेंगे। जस्टिन ट्रुडो की असहाय स्थिति पर संवेदना प्रकट करे या आक्रोशित हो, यही यक्ष प्रश्न है।)
अस्सी को तोड़ो- बीस को जोड़ो :
भारत में नवगठित छब्बीस दलों के इंडिया गठबंधन ने भारत में जातीय जनगणना की मांग प्रमुखता से उठाई है तथा इसके लिए संघर्ष एवं आंदोलन की भी चेतावनी दी है। उन्नीस सौ नब्बे के मंडल आयोग आंदोलन के समय के समान इस समय भी जातीय जनगणना से भारत में जातीय संघर्ष जातीय जनगणना से निर्मित हो सकता है, इसलिए सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सरकार असहज है तथा जातीय जनगणना हेतु इच्छुक नहीं है। भारतीय समाज में जातीय विद्वेष संघर्ष भारतीय जनता पार्टी की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठित हिन्दू समाज द्वारा सुदृढ़ हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना के भी विरुद्ध है, इसलिए जातीय जनगणना करवाने हेतु भारतीय जनता पार्टी सरकार तैयार नहीं है।
- गल्फ निऊज, दुबई
(टिप्पणी- सन 1931 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा करवाई गई जनगणना में अंतिम बार जातिगत आंकड़े प्रकाशित किए गए थे, परन्तु स्वतंत्रता के बाद 1951 से प्रत्येक दस वर्ष में करवाए जनगणना में किसी भी सरकार ने जातिगत आंकड़े जारी नहीं किए। तो फिर अब जातिगत जनगणना की मांग क्यों? स्पष्ट है सनातन हिन्दू धर्म की बढ़ती शक्ति से चिंतित जिहादी वामपंथी सेकुल तत्वों का अभियान बीस प्रतिशत अल्पसंख्यक वोटबैंक एकत्रित रखो, अस्सी प्रतिशत हिन्दू वोट जातियों में तोड़ो और कुर्सी का सपना साकार करो।)
(लेखक अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक हैं)