चीन है कि मानता ही नहीं
नीरज कुमार दुबे
अभी पिछले सप्ताह ही ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अनौपचारिक वार्ता के दौरान उन्हें खरी खरी सुनाते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि दोनों देशों के संबंध तभी सुधर सकते हैं जब एलएसी का सम्मान किया जाये।
लेकिन चीन है कि मानता नहीं। कभी वह भारत, ताइवान तथा दूसरे देशों के हिस्सों को अपने मानचित्र में दर्शाता है तो कभी दूसरे देशों के क्षेत्रों का नामकरण कर देता है। विस्तारवादी चीन चूंकि अब अपनी सीमा से बाहर एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं कर पा रहा है तो शायद वह ऐसी ही हरकतों से अपने को तसल्ली देता है। लेकिन उसका यह रुख दर्शाता है कि चीन की असली मंशा क्या है और समय आने तथा मौका मिलने पर चीन क्या कर सकता है। इसलिए चीन से वार्ताओं के कितने भी दौर हो जायें, उससे कितना भी हाथ मिला लिया जाये, शांति के साथ रहने के कितने ही संयुक्त बयान जारी हो जायें, इस सबके बावजूद चीन पर तनिक भी भरोसा करना बहुत बड़ी भूल होगी।
हम आपको याद दिला दें कि अभी पिछले सप्ताह ही ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अनौपचारिक वार्ता के दौरान उन्हें खरी-खरी सुनाते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि दोनों देशों के संबंध तभी सुधर सकते हैं जब एलएसी का सम्मान किया जाये। लेकिन ड्रैगन कहां मानता है। अब उसने नई हरकत के तहत आधिकारिक तौर पर अपने 'मानक मानचित्रÓ के 2023 संस्करण को जारी किया है जिसमें अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन क्षेत्र, ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर पर उसके दावों सहित अन्य विवादित क्षेत्रों को शामिल किया गया है। चीन के सरकारी समाचारपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, ''चीन के मानक मानचित्र का 2023 संस्करण आधिकारिक तौर पर सोमवार को जारी किया गया और प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के स्वामित्व वाली मानक मानचित्र सेवा की वेबसाइट पर इसे जारी किया गया।ÓÓ ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि यह मानचित्र चीन और दुनिया के विभिन्न देशों की राष्ट्रीय सीमाओं की रेखांकन विधि के आधार पर संकलित किया गया है।Ó
हम आपको याद दिला दें कि इसी साल अप्रैल में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के लिए 11 स्थानों के नाम अपने हिसाब से रख दिये थे जिसका भारत ने विरोध किया था। चीन इस क्षेत्र को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताकर इस पर अपना दावा करता है। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के लिए 11 स्थानों के मानकीकृत नाम जारी किए थे जिसे वह स्टेट काउंसिल, चीन की कैबिनेट द्वारा जारी भौगोलिक नामों पर नियमों के अनुसार तिब्बत का दक्षिणी भाग ज़ंगनान बताता है। चीन की सरकार द्वारा संचालित 'ग्लोबल टाइम्सÓ ने अपनी एक खबर में कहा था कि मंत्रालय ने 11 स्थानों के आधिकारिक नाम जारी किए हैं जिनमें दो भूमि क्षेत्रों, दो आवासीय क्षेत्रों, पांच पर्वत चोटियों और दो नदियों सहित उनके सटीक निर्देशांक भी दिए गए हैं। इसके अलावा, स्थानों के नाम और उनके अधीनस्थ प्रशासनिक जिलों की श्रेणी सूचीबद्ध की गई थी। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने भारत की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजिंग में संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि 'जंगनानÓ चीनी क्षेत्र का हिस्सा है।
हम आपको बता दें कि अरुणाचल में छह स्थानों के मानकीकृत नामों की पहली सूची 2017 में जारी की गई थी और 15 स्थानों की दूसरी सूची 2021 में जारी की गई थी। चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों का पुन: नामकरण ऐसे समय में किया गया था, जब पूर्वी लद्दाख में मई 2020 में दोनों देशों के बीच शुरू गतिरोध अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति अभी भी काफी गंभीर बनी हुई है, जो कई स्थानों पर दोनों देशों की सीमा पर सैनिकों की काफी करीब तैनाती के कारण भी है। बहरहाल, चीन द्वारा जारी किये जाने वाले मानचित्रों और नामकरणों पर भारत का यही कहना रहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है और 'गढ़ेÓ गए नाम रखने से यह हकीकत बदल नहीं जायेगी।
(लेखक प्रभा साक्षी के संपादक हैं)