चीनी परमाणु अलर्ट और जेलेन्स्की का आर्थिक संकट
विभिन्न क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों के बाद, विश्व राजनीति इस सप्ताह सामान्य स्थिति में लौट आई। घटनाओं के लिहाज से यह सप्ताह स्थिर रहा। हालाँकि, चीन से आ रहे परमाणु अलर्ट ने वैश्विक शांति के लिए नई चुनौती उत्पन्न कर दी है। अमेरिकी विदेश मंत्री का यह बयान कि अमेरिका ने क्वाड के माध्यम से भारत के साथ अपनी साझेदारी को गहरा किया है, दोनों देशों के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय रूप से काम करने के नए अवसर खोजता और खोलता दिखता है। हालाँकि ये बहुपक्षीय मंच विश्व राजनीति में सकारात्मकता जोड़ते हैं, लेकिन यूरोपीय संघ द्वारा यूक्रेन को बिना किसी विस्तार के भेजी गई वित्तीय सहायता की अंतिम किस्त ने ज़ेलेंस्की की चिंताओं को बढ़ा दिया है। अब युद्ध में फंसे ज़ेलेंस्की को यूरोपीय संघ और अमेरिका से आर्थिक झटकों का सामना करना पड़ रहा है। पर क्या वे स्वयं इस स्थिति के उत्तरदायी नहीं हैं?
ज़ेलेन्स्की के लिए बढ़ती आर्थिक चुनौतियां
एक वर्ष से अधिक समय हो गया है जब रूस और यूक्रेन एक ऐसा युद्ध लड़ रहे हैं जिसमें पूरा पश्चिम (अमेरिका के नेतृत्व में नाटो) शामिल है। पुतिन और ज़ेलेंस्की के बीच युद्ध से ज़्यादा यह युद्ध अमेरिका और पुतिन के नेतृत्व वाले नाटो के बीच चल रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस साल रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विश्व को किन समस्याओं से रूबरू होना पड़ा। हजारों नागरिकों की मौत और सैन्य हताहत, लोगों का विस्थापन, खाद्य संकट, ऊर्जा संकट, आर्थिक मुद्दे, व्यापक पर्यावरणीय क्षति, वैश्विक मामलों में लॉबी राजनीति की तीव्रता और आगे लिस्ट बड़ी लम्बी है। ज़ेलेंस्की को अब तक इस युद्ध के दुष्परिणाम और कीमत का एहसास हो गया होगा। वह युद्ध न रोकने पर क्यों अड़े हुए हैं यह एक प्रासंगिक प्रश्न बना हुआ है। यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को अपने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण, आवश्यक सेवाओं को बनाए रखने और वेतन के भुगतान करने में मदद करने के लिए पूरे वर्ष में 1.5 बिलियन यूरो भेजे। इस सप्ताह, यूरोपीय संघ ने यूक्रेन की युद्ध से प्रभावित अर्थव्यवस्था को जीवित रखने में मदद के लिए यूक्रेन को इस सहायता पैकेज की अंतिम किस्त भेजी। इस सहायता को बढ़ाने के लिए, यूरोपीय आयोग ने यूक्रेन को 50 बिलियन यूरो की अतिरिक्त वित्तीय सहायता देने की योजना का प्रस्ताव रखा। 14 और 15 दिसंबर को, यूरोपीय परिषद ने रूस-यूक्रेन युद्ध, विस्तार और सुधार, सुरक्षा और रक्षा, प्रवास, यूरोपीय संघ-तुर्की संबंधों आदि पर चर्चा करने के लिए ब्रुसेल्स में एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया। हालाँकि सदस्य देशों के अन्य सभी नेताओं ने यूक्रेन की योजना को मंजूरी दे दी, हंगरी ने अपना वीटो लगा कर इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनने से रोक दिया। हाल ही में अमेरिका द्वारा यूक्रेन को अतिरिक्त आर्थिक सहायता प्रदान करने से पीछे हटने के बाद यह निर्णय ज़ेलेंस्की के लिए एक बड़ा झटका है। यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण घड़ी है कि वे समझें कि युद्ध दान के पैसों पर नहीं लड़े जाते। 'होना या न होनाÓ ज़ेलेंस्की के लिए सवाल होना चाहिए और मुझे उम्मीद है कि वह नए साल में युद्ध को समाप्त करने के लिए राजनयिक वार्ता के दरवाजे खोलेंगे।
क्वाड के जरिए भारत-अमेरिका संबंध और गहरे हुए
भारत राजनयिक संबंधों की शक्ति को समझता है। भारतीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय आशा और विकास को दर्शाता है। भारत न केवल अमेरिका के साथ द्विपक्षीय रूप से जुड़ा हुआ है; यह क्वाड जैसे बहुपक्षीय प्लेटफार्मों के माध्यम से अपनी भागीदारी और जुड़ाव को भी मजबूत कर रहा है। इस हफ्ते अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका ने क्वाड के जरिए भारत के साथ अपनी साझेदारी को और गहरा किया है। उन्होंने आगे कहा कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की साझेदारी कभी इतनी मजबूत नहीं रही। दरअसल, भारत और अमेरिका ने न केवल एक उपयोगी रणनीतिक साझेदारी की अपनी यात्रा में नए मील के पत्थर हासिल किए, बल्कि दोनों देशों ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की तटस्थता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए दक्षिण कोरिया और जापान जैसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों को भी शामिल किया। अमेरिका लड़ाकू जेट इंजन और सशस्त्र ड्रोन बनाने के लिए भारत के साथ प्रौद्योगिकी साझा करेगा, जो दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी में एक महत्वपूर्ण संकेत है। दोनों देश पहले से ही 2016 में हस्ताक्षरित लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट और 2020 में हस्ताक्षरित बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट के तहत प्रौद्योगिकी और अन्य वास्तविक समय की संवेदनशील जानकारी साझा करने के लिए काम कर रहे हैं। ये समझौते दोनों देशों के बीच परिष्कृत सैन्य प्रौद्योगिकी, रसद और भू-स्थानिक मानचित्रों को साझा करने में सक्षम बनाते हैं। क्वाड ने इस साझेदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसे बहुपक्षीय स्तर तक बढ़ाया है। क्षेत्र में चीन के बढ़ते आक्रामक व्यवहार ने देशों और विभिन्न प्लेटफार्मों को सतर्क कर दिया है, और नये द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय रक्षा सहयोग समझौते देखने को मिल सकते हैं।
चीन से परमाणु अलर्ट
जहां हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश क्षेत्र में किसी भी आधिपत्य के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं, वहीं चीन अपनी परमाणु क्षमताओं को बढ़ाने में लगा हुआ है। इस सप्ताह, समाचार रिपोर्टों से पता चला है कि चीन परमाणु परीक्षण करने के लिए एक गुप्त आधार का पुनर्निर्माण कर रहा है। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि चीन ने हाल ही में सुदूर रेगिस्तान में एक गहरी ऊर्ध्वाधर शाफ्ट खोदी है, जहां उसने लगभग 60 साल पहले अपने पहले परमाणु बम का परीक्षण किया था। विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि चीन ने अत्यधिक परिष्कृत और नई पीढ़ी के परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं और वह उनका परीक्षण करने के लिए पूरी तरह तैयार है। इससे वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए नया ख़तरा पैदा हो गया है। युद्ध केवल विनाश लाते हैं। ये तो हर कोई जानता है। लेकिन फिर युद्ध क्यों? बातचीत और कूटनीति से सबसे गंभीर और जटिल मामलों को भी हल किया जा सकता है। भारत ने संवाद और कूटनीति के कई सफल प्रयोग वैश्विक राजनीति में करके भी दिखाए हैं। हमें युद्ध की आवश्यकता नहीं है, हमें और अधिक संवाद की जरूरत है। नेताओं को इसका एहसास कब होगा, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
(लेखिका जेएनयू नई दिल्ली में प्राध्यापक हैं)