तेरह वर्ष की आयु से चला गिरफ्तारी और रिहाई का सिलसिला
रमेश शर्मा
सुप्रसिद्ध साहित्यकार और क्राँतिकारी मन्मथनाथ गुप्त ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनकी गिरफ्तारियाँ तीनों कार्यों में हुई। क्राँति के प्रचार में, क्राँति में सहभागिता में और
क्रांतिकारी और साहित्यकार मन्मथनाथ जी गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को वाराणसी में हुआ था। उनका परिवार मूलत: बंगाल के हुगली जिले का रहने वाला था । उनके पितामह अयोध्या प्रसाद जी गुप्त का विवाह बनारस में हुआ और यह परिवार बनारस में रहने आ गया । मन्मथनाथ जी के पिता वीरेश्वर गुप्त का जन्म बनारस में ही हुआ लेकिन वे नेपाल के विराटनगर में शिक्षक हो गये । मन्मथनाथ जी की आरंभिक शिक्षा विराटनगर में ही हुई किन्तु बाद में किसी कारण से पिता नौकरी छोड़कर बनारस आ गये इसलिये मन्मथनाथ जी की आगे की शिक्षा वाराणसी में हुई । यह समय वाराणसी में स्वतंत्रता की जागृति का केन्द्र था । वाराणसी में तीनों प्रकार की गतिविधियाँ बहुत तेज थीं। क्राँतिकारी आँदोलन की भी, अहिंसक आँदोलन की भी और सामाजिक जागरण के लिये वैचारिक अभियान की भी । इन तीनों बातों का प्रभाव वनारस के पूरे सामाजिक जीवन पर पड़ा। यह परिवार भी अछूता न रह सका । पिता वीरेश्वर जी पंडित मदनमोहन मालवीय से जुड़ गये थे । जब मन्मथनाथ जी केवल तेरह वर्ष के थे तब 1921 में ब्रिटेन के युवराज के बहिष्कार का परचा बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए और तीन महीने की सजा हुई। जेल से छूटने पर उन्होंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और विशारद परीक्षा उत्तीर्ण की। यह चर्चा चारों ओर फैली कि एक तेरह वर्षीय किशोर बंदी बनाया गया अतएव जब वे विशारद की परीक्षा दे रहे थे तब उनसे क्रांतिकारियों ने संपर्क किया और मन्मथनाथ जी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गये । जब वे केवल सत्रह वर्ष के थे तब 1925 में काकोरी कांड में सहभागी बने। कॉकोरी में ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने के लिये बनी दस लोगों की टोली में वे भी सम्मिलित थे। गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला । कॉकोरी काँड में चार लोगों को फाँसी हुई थी लेकिन आयु कम होने कारण मन्मथनाथ जी को चौदह वर्ष का कारावास मिला । उन्होंने अपना पूरा जेल जीवन अध्ययन में लगाया । न केवल विभिन्न भारतीय भाषाएँ सीखीं अपितु भारतीय इतिहास का अध्ययन किया और विशेषकर वे विन्दु की किन गल्तियों के कारण भारत दासानुदास बना। मन्मथनाथ 1937 में रिहा हुये तो लेखन कार्य में लग गये। उनके लेखन का प्रमुख विषय जन जागरण ही होता। विदेशी शासकों के अत्याचार और उससे सामना करने के लिए साहस और संगठन का आव्हान होता था। अपने क्रान्तिकारी लेखन के चलते वे पुन: 1939 गिरफ्तार हुये जेल में डाल दिये गये। गिरफ्तारी और जेल की प्रताड़नाओं ने उन्हें और दृढ़ बनाया। उनका लेखन न रुका और उनकी गिरफ्तारियों और रिहाई का यह सिलसिला 1946 तक चला । यह तब ही रुका जब भारत के स्वतंत्र होने का निर्णय हो चुका था और स्वतंत्रता के लिये शर्तें तय की जाने लगीं।
अंग्रेजों द्वारा जब्त किया गया उनका साहित्य स्वतंत्रता के बाद ही मुक्त हो सका । उनकी प्रमुख रचनाओं में भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास, क्रान्तियुग के अनुभव चंद्रशेखर आज़ाद, विजय यात्रा, यतींद्रनाथ दास, कांग्रेस के सौ वर्ष,कथाकार प्रेमचंद प्रगतिवाद की रूपरेखा आदि प्रमुख ग्रंथ थे। उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला भाषा में साहित्य रचना की और उनके साहित्य में विधाओं की भी विविधता है। उनके प्रकाशित ग्रन्थों की संख्या 80 के आसपास है। स्वतंत्रता के बाद न केवल नये साहित्य की रचना की अपितु स्वतंत्रता के पूर्व लिखे गये ग्रंथों के संशोधित संस्करण भी निकाले जिसमें भारतीय क्राँतिकारी आँदोलन का इतिहास भी है। स्वतन्त्रता के बाद वे भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से भी जुड़े और योजना, बाल भारती और आजकल जैसी हिन्दी पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे। जीवन के अंतिम समय वे दिल्ली आ गये थे । नई दिल्ली के निजामुद्दीन ईस्ट में उन्होंने अपना निवास बनाया । यहीं पर 26 अक्टूबर 2000 को उन्होंने 92 वर्ष की आयु में देह त्यागी । वह दीपावली का दिन था । मानो उनके जीवन का दीप परम् ज्योति में विलीन हो गया ।