हिन्दू धर्म के शत्रुओं को समाप्त मान लेना मूढ़ता
कुछ बातें अच्छी तरह समझ लेनी आवश्यक हैं। क्योंकि अचानक लोगों ने हिंदुत्व के उत्साह में भारतीय सनातन शास्त्रों और आदर्शों की बात को न केवल उसके बीज रूप या सत्व रूप में अपितु व्यवहार रूपों में भी पूरी तरह लोक जीवन में व्यवहार करने का आग्रह शुरू कर दिया है और राजनीति से ऐसी अपेक्षा कर रहे हैं कि वह जो सनातन सांस्कृतिक चेतना का आदर्श है, उनका मर्मरूप में तो पालन करें ही, व्यवहार में बस उन्हीं को राष्ट्र में व्याप्त करें। शासन आध्यात्मिक भाव भूमि और सनातन तत्व तक ही सीमित रहे।
यूरो अमेरिकी राजनीति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो जो मूल्य और जो लक्ष्य फैला दिए हैं, उनकी ओर बिल्कुल ध्यान न दें क्योंकि वह भौतिकतावाद और नास्तिकतावाद की उपज है और उधर से हमें पूरी तरह मुंह फेर लेना चाहिए, यह कहा जाता है।
फल स्वरुप तीन ट्रिलियन या पांच ट्रिलियन या 9 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है, भौतिक विकास करना कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है, यह कहा जाने लगा है। यह कहने वाले लोग दो स्तरों पर विमूढ़ से दिखते हैं।
सर्वप्रथम स्तर तो यह है कि उन्हें यह याद ही नहीं है कि खुद को मुस्लिम कहने वाले लोगों द्वारा और स्वयं को चर्च से संचालित बताने वाले लोगों द्वारा भारत का जो चतुर्मुखी विनाश किया गया, उसके पूर्व तक तो भारत वैसा ही था, जैसा ये हिन्दुत्व के आग्रही बता रहे हैं। वैसा भारत अर्थात धर्ममय, आध्यात्मिक चेतना से सम्पन्न, सब प्रकार से सात्विकता को वरेण्य मानने वाला, पूर्णतया मर्यादित जीवन जीने वाला, माता-पिता गुरुजनों और समाज में सुंदर शील और आचरण का आग्रह रखने वाला, अपने-अपने वर्ण और आश्रम का धर्म पालन करने वाला, अपने-अपने स्वधर्म का पालन करने वाला, शास्त्रों और भारतीय इतिहास तथा साहित्य का, भारतीय लोक जीवन में प्रचलित अनेक विद्याओं और शिल्पों का, उसकी मान्यताओं का, कथाओं कहानियों कहावतें और मुहावरों का पूरी तरह जानकार और उसी में रचने रमने तथा जीवन जीने वाला एक विराट हिंदू समाज अस्तित्व में था। धर्म मय जीवन जी रहा था। जब इन दो प्रचण्ड तामसिक प्रवाहों ने एक-एक करके आक्रमण किया अर्थात भारतीयों के मस्तिष्क को प्रभावित किया और बहुत कुछ नष्ट कर दिया। इस्लाम के नाम से जो कुछ नष्ट किया गया वह पूरी तरह भारतीय हिंदुओं के वंशजों द्वारा जो मुसलमान बन गए थे, उनके द्वारा ही किया गया।
चर्च जरूर बाहर से आया। बाहर से आकर इस देश में कई जगह उसने काम शुरू किया। परंतु धीरे-धीरे कई भारतीयों को प्रभावित करके उसने सनातन जीवन, सनातन धर्म, सनातन विद्याओं, सनातन व्यवहार रूपों, सनातन कृषि शिल्प वाणिज्य व्यापार समाज व्यवस्था जीवन शैली उपासना आध्यात्मिक चेतना सभी को नष्ट किया। 11वीं 12वीं 14वीं 15वीं 16वीं शताब्दी में इस्लाम के अनुयाई भारत में जितने शक्तिशाली थे, 20वीं शताब्दी में उससे कई गुना अधिक शक्ति उन्होंने प्राप्त कर ली। धर्मभ्रष्ट्र या विमूढ हिंदुओं के सहयोग से उन्होंने शक्ति बढ़ाई और अपना एक अलग नेशन स्टेट प्राप्त कर लिया और बचे हुए भारत में भी उनकी शक्ति लगातार बढ़ाई गई है। कांग्रेस ने उनका बल लगातार बढ़ाया है। हिंदू समाज जो सनातन धर्म मय श्रेष्ठ जीवन जी रहा था, वह ज्यों का त्यों यदि साकार हो गया तो भी वह इन तामसिक प्रवाहों का मुकाबला कैसे करेगा? जाहिर है कि कुछ नई चीज करनी होगी। वह नई चीज क्या हो सकती है? यह विचार अत्यावश्यक है।
केवल भारत के सनातन शास्त्र की चर्चा करते हुए उसके वर्तमान में व्यवहार योग्य रूपों की चर्चा ना करना और वनवासियों में या अन्य समाजों में जो चेतना मूल रूप में अभी 20वीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ तक जीवन्त थीं और संपूर्ण हिंदू समाज का जो धर्म मय जीवन चारों ओर सुंदरता से लहरा रहा था, उसकी याद करके केवल उसको ही पुन: लाने का आग्रह करना और यह जो चर्च और अलगाववादी इस्लाम के (पहले से अधिक शक्तिशाली) समूह ,अनुयाई समूह निरंतर कार्यरत हैं, यह नहीं कि वे विलुप्त हो गए हैं या अस्तित्वहीन हो गए हैं जिन्होंने पहले के आज से कई गुना अधिक धर्म मय हिंदू समाज को इस तरह क्षत विक्षत किया, आघात पहुंचाया और आघात पहुंचा रहे हैं, उनके संदर्भ में क्या करना, क्या नहीं करना, यह चर्चा ना करके केवल आध्यात्मिक अथवा शास्त्र सम्मत सदाचार और शील की बात करना और यूरो अमेरिकी प्रतिस्पर्धा में जो भी भौतिक क्रियाशीलताएं राज्य के स्तर पर आवश्यक हैं उनकी आलोचना करना विमुड़ता है।
इसके अतिरिक्त यह तथ्य भुला देना है कि 19वीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ तक तो चर्च भारत में लगभग नगण्य था और आज बहुत शक्तिशाली है और इस्लाम को भी हिंदुओं ने ठीक से अपने नियंत्रण में ले लिया था परंतु तेल की खोज के बाद और अमेरिका द्वारा जानबूझकर कम्युनिज्म से मुकाबले के लिए इस्लामी उग्रवाद को बढ़ावा देने के बाद भारत के शासकों द्वारा भी उसे प्रश्नय दिया गया और वह आज पहले से अधिक शक्तिशाली है,तो इसकी चर्चा ना करना विमूढ़ता है।
हिंदू धर्म के, सनातन धर्म के जीवन और व्यवहार तथा आदर्श के शत्रु वे तत्व पूरी शक्ति से विद्यमान है और केवल इसलिए कि मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए हैं या भाजपा और संघ के लोग सत्ता में आ गए हैं, उनको हारा हुआ या दबा हुआ या कमजोर या शक्तिहीन मान लेना विमूढ़ता की पराकाष्ठा है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)