हिंद - प्रशांत क्षेत्र में चीन पर नियंत्रण

हिंद - प्रशांत क्षेत्र में चीन पर नियंत्रण
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भारत, जापान, आस्ट्रेलिया के साथ अमेरिका को भी आंख दिखने वाला चीन ताइवान पर कब्जे की साजिश करने में लगा है।

  • लेखक - डॉ. नवीन कुमार मिश्र, (भू-राजनीति के जानकार)

विस्तारवादी नीति के तहत चीन हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में आर्थिक व भौगोलिक विस्तार कर विश्व में वर्चस्व कायम करना चाहता है। चीन के बढ़ते आक्रामक रवैये से गंभीर संकट पैदा हो रहे है और यह भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र बन गया है। इस पृष्ठभूमि में क्वॉड की सर्व-समावेशी भूमिका को विश्व के हित में प्रभावशाली रूप में देखा जा रहा है। हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र को स्वतंत्र, खुला और समावेशी बनाने के लिए और विश्व की चुनौतियों पर एक साथ काम करने के लिए 24 मई 2022 को टोक्यो में आयोजित क्वाड देशों के तीसरे शिखर सम्मेलन में राष्ट्रीय सुरक्षा तथा संप्रभुता की रक्षा के साथ वैश्विक भू-राजनीतिक व भू-आर्थिक परिस्थितियों के कारण लोकतांत्रिक व तानाशाही देशों के बीच शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए 13 देशों का एक आर्थिक मंच बनाया गया है जिसमें भारत, आस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका के साथ ब्रूनेई, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, थाईलैंड, दक्षिणी कोरिया, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया व वियतनाम शामिल है। इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक सहयोग के साथ एक बड़ा आर्थिक सहयोग संगठन की शुरुआत टोक्यो में हो चुकी है, जिससे करोना संकट काल के बाद व रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजे समस्याओं जैसे आपूर्ति शृंखला, महंगाई, डिजिटल धोखाधड़ी, स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ने की बात की गई है, जो विश्व की निर्भरता को चीन से कम भी करेगा। 13 देशों के बने संगठन आइपीईएफ (इंडो-पैसिफिक इकोनोमिक फ्रेमवर्क) में वैश्विक अर्थव्यवस्था की जीडीपी का 40 प्रतिशत हिस्सा है, जो भविष्य में एक महत्वपूर्ण नए आर्थिक मंच के रूप में उभरने की संभावनाओं से भरा है।

भारत, जापान, आस्ट्रेलिया के साथ अमेरिका को भी आंख दिखने वाला चीन ताइवान पर कब्जे की साजिश करने में लगा है। डेट-ट्रैप से श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर कब्जा कर सैन्य बेस बना चुका है। ग्वादर पोर्ट पर कब्जे के कारण बलूचों के विरोध व हमलों से चीन को वापस लौटने की नौबत आ गयी है। चीन द्वारा बांग्लादेश को क्वाड से दूर रहने की धमकी के बाद भी चटगांव पोर्ट के प्रयोग की अनुमति व मालदीव में उसकी साजिश को भारत नाकाम करने में सफल रहा है, और म्यांमार में उसकी गतिविधियों पर भी नजर बनाए हुए है। दक्षिणी चीन सागर में चीन की गतिविधियों ने भय व अस्थिरता का माहौल खड़ा कर दिया है, जिससे आए दिन विवाद गहराता जा रहा है और युद्ध की परिस्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। अभी हाल में ही अपने विस्तारवादी नीति के तहत पैसेफिक क्षेत्र में सोलोमन आइलैंड पर सैन्य करार आस्ट्रेलिया को परेशान करने वाला है, जिसका असर वहां के चुनाव पर भी रहा। चीन की नजर अब किरिबाती और वानुआतु पर है, जो अमेरिका को चिंतित करने वाला है, क्योंकि किरिबाती आइलैंड अमेरिका के हवाई राज्य से सिर्फ तीन हजार किमी दूरी पर है, जहां अमेरिकी सेना की इंडो-पैसेफिक कमांड का हेडक्वार्टर है। वानुआतु के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे को अपग्रेड करने के समझौते पर हस्ताक्षर भी किया है, जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका का एक बड़ा सैन्य बेस था। अमेरिका के वर्ष 2017 में ट्रांस-पैसीफि‍क पार्टनरशिप (टीपीपी) से अलग हो जाने के बाद चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण असंतुलन की स्थिति बन गयी। चीन टीपीपी के साथ आरसीईपी (रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप) का भी सदस्य हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में आर्थिक संबंध बनाए हैं। अब वह सीपीटीपीपी (कंप्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिवे एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक) में शामिल होना चाहता है, जिसमें 11 देश है और टीपीपी का नया संस्करण है। चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को चोट करने के लिए सीपीटीपीपी व आरसीईपी से अलग आइपीईएफ को 21वीं शदी की आर्थिक व्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है। आईपीईएफ में 13 देश है, जिसमें से 11 आरसीईपी के सदस्य, जबकि आसियान के दस सदस्य आरसीईपी में है और सात सीपीटीपीपी के सदस्य है जबकि चीन इन दोनों (आरसीईपी व सीपीटीपीपी) में शामिल है। क्वाड के उद्देश्यों को लेकर गंभीरता दिखाते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश आइपीईएफ के तहत चीन के कर्ज-जाल में फंसे देशों को उबारने की रणनीति के साथ पाँच वर्षों में ढांचागत विकास के लिए 50 अरब डालर की घोषणा की गयी, तथा यूरोपीय देशों के साथ सहयोग बढ़ाने, पूर्वी व दक्षिणी चीन सागर में यूएन के कानून को सुनिश्चित करने, आतंकवाद, सेमीकंडक्टर के निर्माण, गैर-कानूनी तरीके से मछली मारने पर रोक, कोविड-19, जलवायु, तकनीक, साइबर, स्पेस की बात की गयी। इसके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण चीन की गतिविधियों पर सैटलाइट आधारित समुद्र की निगरानी पर सहमति बनी।

आइपीईएफ सम्मेलन के दौरान ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने स्कैप (एशिया-प्रशांत आर्थिक व सामाजिक आयोग) की वर्चुअल बैठक कर विरोध जताया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को चीन के बसाव व फलने-फूलने की जगह बताया, जो किसी भी स्थिति में अपने विस्तारवादी मंसूबों को नाकाम होने नहीं देना चाहता। आईपीईएफ से तिलमिलाए चीन ने इसे आर्थिक नाटो कहते हुए उसके वर्चस्व को नुकसान पहुंचाने वाला बताया और अपनी हताशा में क्वाड शिखर सम्मेलन के दौरान पूर्वी एशिया में चीन व रूस के लड़ाकू विमान गश्त लगा भी रहे थे। इससे पूर्व चीन क्वाड को एशियन नाटो कह चुका है, हालांकि क्वाड का मकसद सैन्य संगठन बनाना नहीं है बल्कि लोकतांत्रिक विचारों को बढ़ावा देने वाले देशों को स्वतंत्र व समावेशी हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध व एकजुट करना है। भारत व रूस एक दूसरे के परम्परागत दोस्त है जबकि चीन की विस्तारवादी चुनौतियों के लिए अमेरिका का साथ भी जरूरी है। बदलते भू-राजनीतिक परिस्थितियों व अंतर्राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के बीच भारत के लिए नये और पुराने दोस्तों में संतुलन बनाये रखना आवश्यक है, जिसका असर क्वाड सम्मेलन में भी बखूबी देखने को मिला है।

आईपीईएफ के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व में आर्थिक वृद्धि की नई धुरी के रूप में उभरने वाला है, जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में शदियों से भारत के व्यापारिक गतिविधियों के केंद्र रहे हैं। जहां आज हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व व्यापार की 75 प्रतिशत वस्तुओं गमन का मार्ग निर्धारित करता है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में 38 देश है जिनका विश्व जीडीपी में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी है तथा विश्व की आधे से अधिक 4.3 अरब जनसंख्या रहती है, जो एक ठोस विकल्प के रूप में चीन के निरन्तर बढ़ते विस्तारवादी उद्देश्यों को संतुलन ही नहीं बल्कि नियंतित भी करेगा।

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