भारतीय नागरिकों के बीच कम होती आय की असमानता

भारतीय नागरिकों के बीच कम होती आय की असमानता
प्रहलाद सबनानी

भारत के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से भारत के आर्थिक क्षेत्र में ्य आकार का विकास हो रहा है। आर्थिक दृष्टि से ्य आकार के विकास से आश्य यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में गरीब अधिक गरीब हो रहा है और अमीर और अधिक अमीर हो रहा है। हालांकि हाल ही के समय में भारत में आय, बचत, उपभोग एवं खर्च आदि के सम्बंध में इस प्रकार की नीतियां बनाई जाती रही हैं कि देश के गरीब वर्ग को अधिकतम लाभ मिले। इसके लिए कई विशेष योजनाएं, जैसे, गरीब अन्न कल्याण योजना, उज्जवला योजना, आयुषमान भारत योजना, आवास योजना एवं प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना आदि चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत सब्सिडी आदि की राशि लाभार्थियों के खातों में सीधे ही हस्तांतरित कर दी जाती है। इससे गरीब वर्ग के लाभार्थियों को सहायता की राशि 100 प्रतिशत तक मिल जाती है और इसमें भ्रष्टाचार की सम्भावना लगभग शून्य हो जाती है।

भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग द्वारा भारत के आयकर विभाग द्वारा जारी किए गए आयकर विवरणियों सम्बंधी आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करते हुए यह बताया है कि भारत में नागरिकों के बीच आय की असमानता कम हो रही है। देश में वित्तीय वर्ष 2014 में व्यक्तिगत आयकर रिटर्न फाइल करने वाली कुल संख्या में 36.3 प्रतिशत संख्या निम्न आय वर्ग की श्रेणी के नागरिकों की थी, और यह वर्ग अब वित्तीय वर्ष 2021 में मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में आ गया है तथा इस बीच इस वर्ग की आय 21.1 प्रतिशत बढ़ी है। इस कारण के चलते 3.5 लाख रुपए वार्षिक आय वाले नागरिकों की संख्या वित्तीय वर्ष 2014 में 31.8 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2021 में 15.8 प्रतिशत रह गई है। इसी प्रकार, सबसे अधिक आयकर अदा करने वाले 2.5 प्रतिशत नागरिकों का कुल आय में योगदान 2.81 प्रतिशत से घटाकर 2.28 प्रतिशत हो गया है। अत: देश में मध्यम आय वर्ग के नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आय कर दाखिल करने वाले नागरिकों की प्रति व्यक्ति औसत आय वित्तीय वर्ष 2014 में 3.1 लाख रुपए से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2021 में 11.6 लाख रुपए हो गई है और वित्तीय वर्ष 2022 में यह 12.5 से 13 लाख रुपए के बीच रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

भारत के आर्थिक विकास में भारतीय महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ रही है। कुल श्रमिक तंत्र में महिलाओं की संख्या 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई है। महिलाएं आज कृषि के क्षेत्र में भी अपना योगदान लगातार बढ़ाती जा रही हैं। आयकर विवरणियां फाइल करने में भी महिलाओं की संख्या अब 15 प्रतिशत हो गई है। भारत में लगातार तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते आज भारत में दोपहिया वाहनों की तुलना में चार पहिया वाहनों के बिक्री में अधिक वृद्धि दर हासिल हो रही है। वित्तीय वर्ष 2019 में 2.12 करोड़ दोपहिया वाहनो बिक्री हुई थी, जबकि उस वर्ष कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद में केवल 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी और मानसून में भी लगभग 14 प्रतिशत की कमी रही थी। वर्तमान वित्तीय वर्ष में दोपहिया वाहनों की बिक्री 1.8 करोड़ की रही है। इसके पीछे मुख्य कारण यह बताया जा रहा है कि एक तो मध्यम वर्ग अपने लिए मकानों की खरीद अधिक मात्रा में कर रहा है और दूसरे मध्यम वर्ग आज दोपहिया वाहनों के स्थान पर चार पहिया वाहन खरीदने की ओर आकर्षित हुआ है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में नागरिकों का उक्त व्यवहार यदि आगे आने वाले समय में भी जारी रहता है तो एक अनुमान के अनुसार, अगले दशक की समाप्ति पर 50 प्रतिशत उत्पादों का उपभोग (लगभग 16 लाख करोड़ रुपए) गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों में से 90 प्रतिशत नागरिको द्वारा किया जाने लगेगा। आज गरीब वर्ग को केंद्र सरकार द्वारा बहुत बड़े स्तर पर मुफ्त अनाज, मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं एवं मकान आदि उपलब्ध कराए जा रहे हैं (अभी तक 4 करोड़ परिवारों को रहने के लिए मकान उपलब्ध कराए जा चुके हैं), जिसके कारण इस वर्ग की 8.2 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त उपभोग कर सकने की क्षमता बढ़ी है।

(लेखक बैंक के सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक हैं)

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