राष्ट्रीयता को समर्पित, क्रांति और ओज के कवि थे श्री कृष्ण सरल
शिवकुमार शर्मा
स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानी वीरों- वीरांगनाओं का यश गान करने वाले क्रांति और ओज के यशस्वी कवि श्री कृष्ण 'सरलÓ जी की आज पुण्यतिथि है। उन्होंने अपनी लेखनी स्वदेशाभिमान और स्वाभिमान के लिए स्थापित बलिदानी परंपराओं का गुणगान और स्मरण करने के लिए ही समर्पित कर दी। क्रांति के स्वर ही उनकी कविताएं हैं या यह कहें कि उनकी कविताओं में क्रांति का स्वर मुखरित है। सबसे अधिक महाकाव्य और क्रांतिकारी साहित्य का लेखन सरल जी ने किया। 'भारत गौरवÓ, राष्ट्रकवि, क्रांति कवि, अभिनव- भूषण, श्रेष्ठ कला- आचार्य, क्रांति रत्न और 'मानव-रत्नÓ आदि अलंकरणों से विभूषित सरल जी ने कठिन परिस्थितियों में भी साहित्य सृजन को अनवरत रखकर रचना धर्मिता के विश्व कीर्तिमान स्थापित किये हैं। उन्होंने पंद्रह महाकाव्य, आठ उपन्यास चार खंड- काव्य ,४५ काव्यखंडों का सृजन किया तथा ३१ काव्य संकलन सहित १२४ ग्रंथ लिखे। लेखन कार्य की प्रमाणिकता और वास्तविक तथ्यों की खोज के लिए अपने खर्चे पर दस बार विदेश यात्राएं की , खर्च की पूर्ति के लिए घर के गहने तक बेचने पड़े। उनका कहना था कि 'प्रकाशक लोग पुस्तकें बेचकर जायदाद बनाते हैं मैंने जायदाद बेचकर पुस्तकें बनायी हैंÓ वह स्वयं को शहीदों का चारण कहते थे। उन्होंने यह भाव व्यक्त भी किए थे कि- 'नहीं महाकवि और न कवि ही लोगों द्वारा कहलाऊं।
सरल शहीदों का चारण था कह कर याद किया जाऊं।।Ó
उन्होंने अपनी कविता में राष्ट्र धर्म और दायित्व को परिभाषित किया है-मैं अमर शहीदों का चारण,उनके यश गया करता हूं,/जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है, मैं उसे चुकाया करता हूं। उन्होंने क्रांतिवीर शहीदों के चरित्र-चारण को ही अपने लेखन का विषय नियत किया था। इस कार्य को समाज और देशवासियों का दायित्व भी मानते थे-
कर्तव्य राष्ट्र का होता आया यह पावन, अपने शहीद वीरों का वह जयगान करें/ सम्मान देश को दिया जिन्होंने जीवन दे,उनकी यादों का राष्ट्र सदा सम्मान करें। पं. बनारसी दास चतुर्वेदी जी ने कहा- 'भारतीय शहीदों का समुचित श्राद्ध श्री सरल ने किया हैÓ
सरल जी के पूर्वज जमींदार थे, अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए उन्होंने बलिदान दिया था। श्री कृष्ण सरल का जन्म १ जनवरी १९१९ ई को मध्य प्रदेश के गुना जिले के अंतर्गत अशोकनगर में सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में श्री भगवती प्रसाद एवं श्रीमती यमुना देवी के यहां हुआ था।उनके खून में क्रांति के अंश मौजूद थे। उनके बचपन की एक घटना इसका प्रमाण है। जब क्रांतिकारी शिवराम हरि अराजगुरु को अंग्रेज सरकार गिरफ्तार कर लाहौर ले जा रही थी ,उसी समय अशोकनगर स्टेशन पर जमा भीड़ में विरोध करने का साहस बाल मंडली के बीच से श्री कृष्ण सरल ने ही दिखाया था उन्होंने विरोध स्वरूप गोरे सैनिक की कनपटी में पत्थर दे मारा। भागे,पकड़े गये, मार भी खाई। वे शासकीय शिक्षा महाविद्यालय उज्जैन में प्राध्यापक पद पर सेवारत रहे। पद त्याग के बाद जीवन पर्यंत क्रांतिकारी साहित्य सृजन में निमग्न रहे। स्वतंत्रता सेनानी पं.परमानंद कहते थे सरल जीवित शहीद हैं। उनकी साहित्य साधना तपस्या कोटि की है सरल जी ने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के जीवन पर महाकाव्य लिखा। उनके आग्रह पर सरदार भगतसिंह की पूज्य माताजी श्रीमती विद्यावती देवी उज्जैन पधारीं थीं। सरल जी की कविताएं राष्ट्रीयता को अभिव्यक्त करने वाले अमर स्वरं से अनुगूंजित हैं। स्वर दृष्टव्य हैं-होंगे वे कोई और किनारों पर बैठें, मैं होड़ लगाया करता हूं मझ- धारों से/ होंगे वे कोई और मनायें जन्म दिवस मेरा तो नाता रहा मरण त्यौहारों से। उनके अब दान के लिए राष्ट्र चिर ऋणी रहेगा। आराधक अमर शहीदों के,वे क्रांति काव्य के गायक थे/शत शत नमन सरल जी को,वाणी के सच्चे पायक थे।उनकी पुण्यतिथि पर कोटिश: वंदन।
(लेखक महिला एवं बाल विकास विभाग में संयुक्त संचालक है)