हताश विपक्ष की घटिया मानसिकता

हताश विपक्ष की घटिया मानसिकता
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बालभास्कर मिश्र

संसद का शीतकालीन सत्र शुरू है लेकिन सदन के भीतर का पारा चढ़ा हुआ है। संसदीय लोकतंत्र की विशेषता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल की पारस्परिक जवाबदेही की प्रणाली और एक अत्यंत महत्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया में प्रकट होती है।

संसदीय विपक्ष लोकतंत्र के वास्तविक सार के संरक्षण और लोगों की आकांक्षाओं व अपेक्षाओं के प्रकटीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किंतु, वर्तमान में भारत का संसदीय विपक्ष न केवल खंडित है, बल्कि अव्यवस्थित या घटिया मानसिकता का शिकार भी नज़र आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ही हमारे पास कोई विपक्षी दल है, जिसके पास भारत के उत्थान में अपना योगदान दे सकने की सकारात्मक सोच हो। पिछले कुछ दिनों से संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने जो रवैया अपनाया है उससे अब यह साफ हो गया है कि जनाधार खो चुके विपक्ष के पास अब हंगामे के अलावा कुछ शेष नहीं बचा है। विपक्ष संसद सुरक्षा चूक के मामले में जो तूल दे रहा उसके पीछे कोई सकारात्मक विर्मश नहीं है। विपक्ष को केवल और केवल सरकार का विरोधी करना है जिसके लिए वह कितना भी नीचे जा सकते हैं। तथाकथित अभी हाल ही में बना इंडी गठबंधन अपनी सारी हदें पार करता दिख रहा है। संसद में विपक्षी दलों ने पिछले कुछ दिनों से जिस प्रकार हंगामा कर नंगा नाच किया जिसके चलते संसद में माननीय लोक सभा अध्यक्ष एवं राज्य सभा में उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को मजबूरी में कठोर निर्णय लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। संसद की कार्यवाही में बाधा डालने के आरोप में अब तक 140 सांसदों को सस्पेंड किया गया है। मंगलवार को विपक्ष के सांसदों ने जो घटिया से घटिया मानसिकता उजागर की वह बहुत ही शर्मनाक है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सामने जो हंगामा काटा उसके लिए उनके द्वारा लिया गया निर्णय सर्वथा उचित है। इस दौरान विपक्ष ने जो संसद के अन्दर किया वह किया सदन के बाहर जो किया इसके लिए इन्हें जनता कभी माफ नहीं करेगी। जनता इस लिए चुनती है कि सांसद हमारे देश, समाज के उन्नयन के लिए योजना बनाने में मदद करेंगे लेकिन अब विपक्ष भारत के उत्थान में नहीं पतन में लगा हुआ है। इस संग्राम में केवल सदनों के भीतर ही अभूतपूर्व घटनाक्रम नहीं हुए, बल्कि उसके बाहर जो कुछ हुआ वह पहले देखा सुना नही गया। संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर शोर शराबे और अमर्यादित व्यवहार के कारण विपक्षी दल अब और दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। इसका विरोध करने के क्रम में विपक्षी सांसदों ने जो आचरण किया वह और भी अचंभित करने वाला था। संसद के प्रवेश द्वार पर तृणमूल कांग्रेस सदस्य कल्याण बनर्जी ने राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ का बेहूदा मजाक बनाकर मिमिक्री की और वहां बैठे खड़े दूसरे सदस्य ताली बजाते हंसते दिखे यही नहीं अपने को वरिष्ठ नेता कहने वाले राहुल गांधी उस पूरे बेहूदा घटनाक्रम का वीडियो बना रहे थे। इनका इस प्रकार का आचरण लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार करने वाला है। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में विपक्ष का इस प्रकार का आचरण शायद पहली बार दिख रहा है जो बहुत दुखद है।

भारतीय लोकतंत्र का अपना एक वैशिष्ट है, लोकतंत्र के मन्दिर संसद में लोकतंत्र की सफलता इस बात से निर्धारित की जाती है कि वहां विचार-विमर्श और वार्ता को कितना प्रोत्साहन दिया जा रहा है। संसद की कार्यवाही में अवरोध का समाधान संसद को और अधिक सशक्त बनाए जाने में निहित है। महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिये एक मंच के रूप में संसद की भूमिका निभाई जाती है। नोक-झोंक, रोक-टोक, आकस्मिक व्यवधान, व्यंग्य-विनोद, हाजिर जवाबी और तर्क चातुर्य ऐसी विधाएं हैं, जो संसद की कार्यवाही को जीवंत बनाती हैं। ये मौलिक बहस का सृजन और साथ ही सांसदों की तत्क्षण स्फूर्त बोलने की क्षमता का निर्माण करती हैं। यह तभी संभव है, जब संसद निर्धारित अवधि पर चले, पर्याप्त बैठकें हों, वैचारिक उदारता हो और सबसे बड़ी बात है कि सदन सुचारू रूप से चले।

दोनों सदनों में विपक्षी सदस्यों की ओर से यह हंगामा उस समय किया जा रहा है, जब लोकसभा अध्यक्ष की ओर से संसद की सुरक्षा में सेंध के मामले पर उच्चस्तरीय कमेटी के गठन सहित उच्चस्तरीय जांच कराए जाने की जानकारी दी जा चुकी है। इस पर राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी के मिमिक्री वाले वीडियो को लेकर सदन में नाराजगी जताई। उन्होंने सदन में कहा कि एक सांसद ने टीवी पर गिरावट की हद पार कर दी। उन्होंने कहा कि हद होती है, चैनल के सामने सदन की मर्यादा को तार-तार किया गया है। भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे। भारत की जनता अब सब समझ रही है। इनकी हताशा अब यह दर्शाती है कि विपक्ष के पास अब कुछ नही बचा है। भगवान इन्हे सद्बुद्धि दे।

(लेखक स्तंभकार हैं)

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