क्या संदेश निहित है मोदी के गो प्रेम के पीछे?

क्या संदेश निहित है मोदी के गो प्रेम के पीछे?
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प्रो. महेश चंद गुप्ता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मकर संक्रांति के दिन अपने निवास पर गायों का पूजन किया। जब आंध्रप्रदेश की पुंगनूर नस्ल की इन गायों को चारा खिलाते मोदी की खूबसूरत तस्वीरें मीडिया में आईं तो आम जन मानस ने उन्हें देर तक निहारा। इन तस्वीरों को देखकर गो-भक्त मंत्रमुग्ध हो गए। हिंदू संस्कृति में प्रत्येक शुभ दिन गो-पूजा करने का विधान है। हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति की भांति मोदी में गाय के प्रति आदर भाव स्वाभाविक तौर पर है। मकर संक्रांति पर मोदी ने जिस आदर भाव को व्यक्त किया है, वह गायों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए जन-जन की प्रेरणा का स्रोत बनेगा, यह आशा की जा रही है।

प्रधानमंत्री मोदी देश के ऐसे नेता हैं, जिनका अनुसरण उनके करोड़ों समर्थक करते हैं। मोदी जो कहते हैं, जो करते हैं वह उनके समर्थकों के लिए अनुकरणीय हो जाता है। संदेश देने की मोदी की अपनी खास शैली है। वह उचित अवसर पर कुछ ऐसा कर देते हैं, जिससे आम जन मानस प्रभावित होता है। मोदी की कार्य शैली देश के करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। यही वजह है कि मोदी की बदौलत विभिन्न जन जागरण और सामाजिक बदलाव के कार्य सहजता से सफल हो जाते हैं। स्वच्छ भारत, फिट इंडिया, वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत, सुगम्य भारत और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं। ये सब देश को प्रगति के पथ पर ले जाने वाले और सामाजिक परिवर्तन के कार्यक्रम हैं।

अब ताजा उदाहरण संक्रांति पर गायों की पूजा का है। सवाल उठता है कि संक्रांति पर पूजन के लिए मोदी ने आंध्रप्रदेश की पुंगनूर नस्ल की इन छोटे कद की गायों को ही क्यों चुना? क्या इसके पीछे मोदी की कोई संदेश देने की भावना निहित है? जी हां, बिल्कुल ऐसा ही है। मोदी ने इन गायों के पूजन के जरिए हर भारतीय को गो सेवा का संदेश दिया है। पुंगनूर गायों को इसलिए चुना गया है क्योंकि अत्यधिक पौष्टिक और औषधीय महत्व का दूध देने वाली ये गाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं और इस नस्ल को बचाने के लिए आंध्रप्रदेश में प्रयास किए जा रहे हैं। जाहिर है, मोदी ने न केवल विलुप्त हो रही इन गायों को बचाने की आवश्यकता प्रतिपादित की है बल्कि इसके साथ-साथ सभी नस्लोंं की गायों के संरक्षण एवं संवर्धन पर भी जोर दिया है। मोदी के गो संरक्षण के इस संदेश के पीछे ग्रामीण भारत को आगे ले जाने की भावना निहित है। भारत की आत्मा गांवों में बसती है और गाय के बिना ग्रामीण भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारतीय सनातन संस्कृति में गाय का अत्यंत महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण का गोसेवा भाव गायों के प्रति हमारे देश के पुरातन दृष्टिकोण को बताता है। श्रीमद् भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा ही है कि धेनुनामस्मि कामधेनु यानी मैं गायों में कामधेनु हूं। गाय का धार्मिक महत्व हैं, वहीं कई वैज्ञानिक शोधों में गाय का महत्व सिद्ध हो चुका है।

विभिन्न धर्मों और महापुरुषों ने भी गाय के महत्व को प्रतिपादित किया है। गोदान का महत्व सर्वविदित है। जिस गाय का जस हर धर्म ने गाया है और महापुरुषों ने जिस गाय की महिमा का बखान किया है, अगर उस गाय का पूजन पीएम मोदी कर रहे हैं तो निश्चय ही इसमें बड़ा संदेश निहित है। मोदी ने गाय के प्रति अपने श्रद्धा भाव और गोप्रेम को सदैव सार्वजनिक रखा है। काशी के एक कार्यक्रम में दो साल पहले वह यहां तक कह चुके हैं कि गाय कुछ लोगों के लिए गुनाह हो सकती है, लेकिन वह हमारे लिए माता है। दस साल से देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने पर भी गायों के प्रति मोदी का प्रेम एवं श्रद्धा भाव श्लाघा योग्य है। पीएम मोदी की इच्छा पर केन्द्र सरकार द्वारा 2014 से ही देसी गायों के संरक्षण और नस्ल सुधार के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन चलाया जा रहा है। इस मिशन के तहत गिर, साहीवाल, राठी, देवनी, थारपारकर जैसी देसी नस्लों के आनुवंशिक सुधार और पशुओं की संख्या में वृद्धि के लिए नस्ल सुधार कार्यक्रम चल रहे हैं। पीएम मोदी बता चुके हैं कि देश के आठ करोड़ परिवारों की आजीविका पशुधन से चलती है। इन्हीं आठ करोड़ परिवारों की मेहनत से आज भारत हर साल लगभग 8.5 लाख करोड़ रुपये का दूध उत्पादन करता है। भारत में जितना गेहूं और चावल का उत्पादन होता है, उसकी कीमत से भी कहीं ज्यादा इस दूध की कीमत है। इसलिए भारत के डेयरी क्षेत्र को मजबूत करना हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।

मोदी के गोप्रेम से हर देशवासी को प्रेरणा लेकर गोसेवा में जुटना चाहिए। जब-जब गाय के संरक्षण और संवर्धन की बात हो, तो इसे देश और समाजहित में मानना होगा। हमने पिछले कुछ दशकों में गाय की बहुत उपेक्षा की है और इसके दुष्परिणाम भी झेल रहे हैं। हमने गोबर को खाद के रूप में खेतों में डालना बंद करके रासायनिक खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल शुरू कर दिया। नतीजा, जहरीली आबोहवा और विषाक्त खाद्यान्न के रूप में सामने है। घर पर गाय पालना बंद कर दिया तो मिलावटी दूध-घी के कारण पनपीं शारीरिक व्याधियां हम झेल ही रहे हैं। अब भी वक्त है, हम संभल जाएं। गाय को फिर से अपना लें। इसमें हम सबका भला है।

(लेखक प्रख्यात शिक्षा विद् हैं)

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