प्रसंग : 6 दिसंबर - श्री रामजन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण का सपना
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प्रसंग : 6 दिसंबर : कारसेवक का प्रत्यक्ष अनुभूति वृतांत
स्वदेश वेबडेस्क .श्रीराम की जन्मस्थली पवित्र अयोध्यापुरी में मुगल अत्याचार का प्रतीक बाबरी ढांचा ढहाए जाने को अब 31 वर्ष गुजर चुके है। बाबरी ढांचे के ध्वसं के ठीक 31 वर्ष और 46 दिनों के बाद श्रीरामलला अपने भव्य मन्दिर में विराजित होंगे। इस क्षण की कल्पना मात्र से वे हजारों हजार लोग रोमांचित हो उठते है,जो 6 दिसम्बर 1992 के दिन अयोध्या में मौजूद थे और बाबरी ढांचे को ढहाने के लिए कारसेवा कर रहे थे।
अयोध्या में उस दिन मौजूद लाखों कारसेवकों और विश्वभर के करोड़ों रामभक्तों का सपना 22 जनवरी को पूरा होने जा रहा है। सदियों के संघर्ष और दशकों की प्रतीक्षा के बाद पूरे हो रहे इस स्वप्न को देखने के समय उस समय की सारी घटनाएं एक के बाद एक स्मृतियों में जीवन्त होने लगती है। कारसेवा के लिए देशभर से लाखों की संख्या में अयोध्या पंहुचे रामभक्त कारसेवकों के गगनभेदी जय श्री राम और मन्दिर यहीं बनाएंगे के नारे। अयोध्या के कारसेवक पुरम में स्व. अशोकजी सिंघल और अन्य वरिष्ठ नेताओं के औजस्वी उद्गार। अयोध्या की प्रत्येक दीवार पर बाबा सत्यनारायण मौर्य द्वारा बनाए गए श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन से सम्बन्धित चित्र। तत्कालीन सरकार और विश्व हिन्दू परिषद के बीच कारसेवा को लेकर चलता संघर्ष।
4 दिसम्बर 1992 को तत्कालीन सरकार ने न्यायालय में बाबरी ढांचे की सुरक्षा के लिए हरफनामा पेश किया था और सरकार और विहिप के बीच हुए वार्ता के बाद बीच का मार्ग यह निकाला गया था कि अयोध्या में मौजूद समस्त कारसेवक पवित्र सरयू नदी की एक एक मुट्ठी रेत लेकर आएंगे और जन्मभूमि स्थल पर सरयू की रेत डालकर प्रतीकात्मक कारसेवा करेंगे। लेकिन इस निर्णय से कोई भी संतुष्ट और सहमत नहीं था। ना तो कारसेवक और ना ही विहिप के नेता। एक मु_ी सरयू की रेती डालने की बात सुनकर कारसेवकों का आक्रोश चरम पर जा पंहुचा था।
6 दिसम्बर का दिन भी आ गया। गुस्से में भरे कारसेवकों के जत्थे जन्मभूमि स्थल की तरफ बढऩे लगे। हनुमान गढी से लेकर जन्मभूमि स्थल तक पांव धरने की जगह नहीं थी। कारसेवकों के जत्थे पर जत्थे आते जा रहे थे और प्रत्येक कारसेवक जन्मभूमि परिसर के पास पंहुचना चाहता था। जन्मभूमि परिसर के चारों ओर लोहे के मजबूत पाइप्स और एंगलों से जन्मभूमि परिसर को किले में परिवर्तित कर दिया गया था। लोहे के इस किले के चप्पे चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे। जन्मभूमि परिसर के चारों ओर आठ से बारह फीट उमची मजबूत लोहे की बैरिकेटिंग की गई थी। पुलिस और प्रशासन को उम्मीद थी कि कारसेवक प्रतीकात्मक कारसेवा करके लौट जाएंगे।
सुबह सात बजे से कारसेवकों के जत्थों का पंहुचने का क्रम शुरू हुआ। सुबह के साढ़े दस बजते-बजते जन्मभूमि परिसर कारसेवकों से खचाखच भर चुका था। परिसर की बैरिकेंटिंग के चारों ओर कारसेवकों की भारी भीड़ जमा हो चुकी थी। पूर्व उपप्रधानमंत्री और तत्कालीन वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और विहिप के अशोकजी सिंघल करीब पौने ग्यारह बजे जन्मभूमि परिसर पंहुचे और वहां का अवलोकन करके लौट गए।
उनके जाते ही सीता रसोई की तरफ मौजूद कारसेवकों के जत्थों ने लोहे की बैरिकेटिंग को उखाडऩे के लिए धक्के देना शुरु किए। कुछ कारसेवक बैरिकेटिंग पर चढ़ गए और देखते ही देखते बैरिकेटिंग उखाड़ दी गई। बैरिकेटिंग के उखड़ते ही हजारों कारसेवक बाबरी ढांचे की ओर दौड पड़े। ढांचे की सुरक्षा के लिए तैनात तमाम सुरक्षाकर्मी कारसेवकों का आक्रोश देख कर उन्हे रोकने की बजाय स्वयं वहां से हट गए। देखते ही देखते एक धक्का और दो बाबरी ढांचा तोड दो के नारों के बीच ढांचे को ढहाने के प्रयास शुरु हो गए, जिसके हाथ में जो आया, वह उसी से ढांचे को ढहाने की कोशिश करने लगा। बेरिकेंटिंग के लिए लगाए गए पाइप भी ढांचे को ढहाने के काम में आए।
वर्तमान में उज्जैन में भाजपा के नेता पूर्व पार्षद शिवेन्द्र तिवारी के हाथों में भी पाइप आ गया,जिसकी मदद से वे ढाचे की बाहरी दीवार ढहाने की कोशिश कर रहे थे। इन पंक्तियों के लेखक ने अपने कैमरे से उसी समय उनका फोटो भी लिया था। मंदसौर में दैनिक गुरु एक्सप्रेस के संपादक आशुतोष नवाल भी अपने साथियों के साथ ढांचे के भीतर मौजूद थे। रतलाम के तेजसिंह हाडा,अनिल मेहता, संजय पंवार आदि ढांचे के गुंबद पर चढक़र उसे गिराने की कोशिशों में लगे थे। रतलाम के तत्कालीन बजरंग दल संयोजक निर्मल कटारिया, अशोक ललवानी, कमलेश पाण्डेय आदि भी ढांचे के भीतर मौजूद थे। कारसेवा का यह क्रम शाम तक चलता रहा।
ढांचे का पहला गुंबद दोपहर करीब साढे बारह बजे ढहा दिया गया। इन पंक्तियों के लेखक के हाथों में उस वक्त कैमरा मौजूद था और यह संभवत: विश्व का अकेला कैमरा था,जो कारसेवा के दौरान ढांचे के भीतर मौजूद था, क्योंकि वैसे तो उस समय अयोध्या में दुनियाभर के पत्रकार मौजूद थे, लेकिन कारसेवा के समय उन्हे जन्मभूमि स्थल से करीब एक किमी दूर रखा गया था। और कारसेवा शुरु होने के बाद कारसेवकों ने किसी भी पत्रकार को वहां पंहुचने नहीं दिया। कारसेवा के यह फोटो ग्राफ्स इन पंक्तियों के लेखक ने कारसेवा के 25 वर्ष पूर्ण होने पर अपनी पुस्तक में प्रकाशित भी किए है। कारसेवा के इन चित्रों में कारसेवको का जूनून स्पष्ट देखा जा सकता है।
अयोध्या के आन्दोलन में मालवांचल के हजारों रामभक्तों का योगदान रहा है। अयोध्या में हुई अंतिम कारसेवा से पहले की दो कारसेवाओं में भी रतलाम मन्दसौर उज्जैन इत्यादि जिलों से हजारों कारसेवक अयोध्या पंहुचे थे। आखरी कारसेवा जिसमें ढांचे को ढहा दिया गया, उस कारसेवा में भी इन क्षेत्रों से हजारों कारसेवक अयोध्या पंहुचे थे। रतलाम से इस कारसेवा में विहिप के तत्कालीन संगठन मंत्री दर्शन शर्मा, बजरंग दल संयोजक निर्मल कटारिया,विनय कोटिया,कमलेश पाण्डेय,अनिल व्यास, ग्रामीण क्षेत्रों से स्व. जगदीश पाटीदार, दशरथ पाटीदार, समेत करीब ग्यारह सौ कारसेवक अयोध्या पंहुचे थे।
उधर मन्दसौर से भी लगभग एक हजार कारसेवक अयोध्या पंहुचे थे। इनमें स्व.ओमप्रकाश पुरोहित,गोपालकृष्ण पाटिल,वर्तमान में दैनिक गुरु एक्सप्रेस के संपादक आशुतोष नवाल,नीमच विधायक दिलीप सिंह परिहार,केबिनेट मंत्री जगदीश देवडा,भाजपा नेता स्व.प्रहलाद बंदवार,राधेश्याम पाटीदार,सुनील जैन महाबली,नितिन शिन्दे,भरत शिन्दे,सुनील जैन महाबली इत्यादि लोग प्रमुख रुप से शामिल थे।
उज्जैन से भी हजारों कारसेवक पंहुचे थे। विशेष रुप से भाजपा नेता शिवेन्द्र तिवारी,सासंद अनिल फिरोजिया,पूर्व विधा.क शिवा कोटवानी,पूर्व विधा.क स्व.उदयसिंह पाण्डया,महामण्डलेश्वर स्वामी शांतिस्वरुपानन्द जी इत्यादि विशेष रुप से पंहुचे थे। अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कलाकार बाबा सत्यनारायण मौर्य ने पूरी अयोध्या को अपने चित्रों से रंह दिया था। कारसेवक पुरम में बनाए गए मंच के संचालन की जिम्मेदारी भी बाबा मौर्य ने ही सम्हाली थी। इतना ही नहीं ढांचे के ध्वसं के बाद बनाए गए अस्थाई मन्दिर को ढंकने के लिए जिस केसरिया कपडे का उपयोग किया गया था,वह भी बाबा मौर्य ने उपलब्ध कराया था।
तुषार कोठारी
(लेखक कारसेवा में स्वयं शामिल थे, स्वयंसेवक है एवं वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ ई-खबर टुडे पोर्टल चलाते हैं)