चांद पर घर के सपने बेचते धरती के सौदागर
डॉ. सुब्रतो गुहा
राष्ट्रीय पहचान - विदेशी या स्वदेशी: भारत की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित जी-20 देशों के समागम में भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से जारी निमंत्रण पत्र में अंग्रेजी शब्दों में प्रेसिडेंट ऑफ भारत छपे होने के कारण मीडिया में संभावना व्यक्त की जा रही है कि शीघ्र ही भारत सरकार द्वारा औपचारिक रूप से देश का नाम ब्रिटिश शासकों द्वारा दिए नाम 'इंडियाÓ से बदलकर प्राचीन नाम भारत कर दिया जाएगा। जहां एक ओर सत्ताधारी हिन्दूवादी भारतीय जनता पार्टी के नेता इस संभावित कदम को विदेशी उपनिवेशवाद की मानसिकता से मुक्त होकर प्राचीन भारतीय सभ्यता की पहचान से जुड़ाव निरूपित कर इसका स्वागत कर रहे हैं, वहीं हिन्दू राष्ट्रवाद के विरोधी इसका विरोध कर रहे हैं। प्रमुख सेकुलर राजनेता और पश्चिम बंगाल राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बयान जारी किया - यह कदम देश के इतिहास को विकृत करने का एक जघन्य प्रयास है।
- द गार्जियन, लंदन, ब्रिटेन
(टिप्पणी - 26 जनवरी सन 1950 को अपनाए गए भारतीय संविधान की प्रथम पंक्ति है- 'इंडियाÓअर्थात भारत राज्यों का एक एकीकृत समूह होगा। स्पष्ट है कि देश का नाम भारत संविधान द्वारा भी स्वीकृत है। देश का सर्वोच्च पुरस्कार इंडिया रत्न नहीं, बल्कि भारत रत्न है, देश भक्त नागरिक इंडिया माता की जय नहीं बल्कि भारत माता की जय का नारा लगाते हैं, राष्ट्रगान की प्रथम पंक्ति रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखी - 'जन-गण-मन अधिनायक जय है, भारत भाग्य विधाताÓ स्पष्ट है, हम भारतवंशी भारत माता की संतान है तथा हमारा भाग्य विधाता भारत है, इंडिया नहीं। संस्कृत शब्द भारत का उल्लेख प्रथम वेद अर्थात् ऋग्वेद में मिलता है। वैसे सेकुलरवादी उदारवादी, प्रगतिवादी झंडाबरदारों को आशंका यह है कि देश का नाम केवल भारत घोषित होते ही देश की पहचान सनातन हिन्दू सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़ जाएगी तथा हिन्दू नर नारी पश्चिमी संस्कृति या सेकुलर संस्कृति के बंधनों से मुक्त होकर अपने पूर्वजों की सभ्यता संस्कृति पर गर्व का अनुभव करते हुए कालजयी राष्ट्रसंत स्वामी विवेकानंद के अमर नारे का उद्घोष करेंगे- 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।Ó यह सब सेकुलरवाद के लिए तो निश्चित ही खतरा है। विश्वास न हो, तो उदयनिधि स्टालिन, ए. राजा इत्यादि सेकुलर नेताओं से पूछ लीजिए।)
अमृतकाल में पुण्यभूमि भारत
भारतीय राजधानी नई दिल्ली में आयोजित जी-20 देशों के समागम में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तथा भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सुदृढ़ अमेरिका भारत संबंधों को रेखांकित किया। यह जी-20 समागम ऐसे समय आयोजित हो रहा है, जब विश्व की महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा चरम पर है। वैश्विक तनाव भी गहरा हो गया है। इस समागम में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग स्वयं उपस्थित नहीं हो पाए, परन्तु उन्होंने अपने प्रतिनिधि भेजे।
- द वाल स्ट्रीट जर्नल, न्यूयार्क, अमेरिका
(टिप्पणी- 15 अगस्त 2022 से 15 अगस्त 2047 तक तिथि अनुसार पुण्यभूमि भारत का अमृतकाल माना गया है। अमृतकाल में तीव्र उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हुए भारत निर्धन देश अथवा विकासशील देश की श्रेणी से बाहर आकर विश्व की पांचवी शक्तिशाली अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है तथा सैन्य महाशक्ति बनने की स्थिति में है। आयात घटा है, निर्यात बढ़ा है, परस्पर विरोधी देश रूस एवं अमेरिका दोनों से भारत के अति मधुर राजनयिक और आर्थिक संबंध है, राष्ट्रवासी इंडिया से भारत की ओर अग्रसर है, सनातन सभ्यता-संस्कृति के प्रति ग्लानि का नहीं, बल्कि गर्व का भाव संचालित हुआ है। भारत माता की संतानों को इंडिया माता की संतान समूल विनाश की धमकी दे रहे हैं, जब सल्तनतकालीन, मुगल कालीन, ब्रिटिश कालीन, विदेशी शासक सनातन को नहीं मिटा पाए, तो भला यह लोग कैसे मिटाएंगे, तुम्हारे जैसे लाखों आए, लाखों इस धरती नए खाए, रहा न नाम निशान बन्दे, मत कर तू अभिमान, झूठी तेरी शान।)
सपनों के सौदागर
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एक धनी व्यवसायी ओम सागर ने अपने पुत्र नमाया सागर के नाम पर चंद्रमा पर एक एकड़ भूमि खरीद ली। ओम सागर ने मीडिया को बताया कि चांद पर एक एकड़ भूमि खरीदने संबंधी सभी दस्तावेजी कार्य तथा राशि का भुगतान उन्होंने अमेरिका के न्यूयार्क शहर स्थित लुना सोसायटी इंटरनेशनल नामक कंपनी के साथ विधिवत सम्पन्न किया।
- द गल्फ न्यूज दुर्ब
(टिप्पणी- उपभोक्ता संस्कृति के आधुनिक युग में वर्तमान पीढ़ी गगनचुंबी भौतिक इच्छाओं एवं आकांक्षाओं से ग्रसित है। धरती पर एक बंगला बने न्यारा के सपने से आगे बढ़कर अब चंद्रमा पर जमीन लेकर आलीशान घर का निर्माण करना स्टेटस सिंबल या सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है। सपने बेचकर मालामाल होने की चाहत रखने वाली कंपनियां भी हैं। तभी तो अमेरिका में न्यूयार्क स्थित लुना सोसायटी इंटरनेशनल कंपनी ने अमेरिका एक अन्य देशों के हजारों सपने में खोए धनी ग्राहकों को चंद्रमा की सतह पर हजारों एकड़ जमीन करोड़ों डालर के एवज में बेच दी है। काश यह ग्राहक जानने का प्रयास करते कि चंद्रमा पर जमीन बेचने का ठेका इस कंपनी को किसने दिया?)
(लेखक अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक हैं)