आधी आबादी के सशक्तिकरण पर जोर
बजट में महिलाओं का खास ध्यान इसलिए रखा गया है, क्योंकि केंद्रीय वित मंत्री सीतारमण खुद एक महिला हैं, जो उनकी जरूरतें और समस्याओं से सीधे वाकिफ हैं। आजकल महिलाओं से एक नई नवेली समस्या जुड़ गई है जिसे उन्होंने पकड़ा है। कहते हैं कि 'आधी आबादीÓ स्वस्थ्य रहेगी, तभी उनमें सशक्तिकरण की लौ जलाई जा सकेगी। दरअसल, बीते कुछ वर्षों से कामकाजी महिलाएं एक ऐसी बीमारी से घिरती जा रही हैं जिसका नाम भी कहने-सुनने में डरावना सा लगता है। बीमारी का नाम है 'सर्वाइकल कैंसरÓ? जो बड़ी उम्र की महिलाओं के अलावा कम उम्र की बच्चियों में भी तेजी से फैल रहा है। बीमारी को थामने के लिए वित्तमंत्री ने मौजूदा 'आम बजट 2024-25Ó में धन एक हिस्सा उस बीमारी पर खर्च करने का ऐलान किया है। सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन को टीके में परिवर्तित किया जा रहा, जो शुरूआती चरणों में 9 वर्ष से 14 साल की बच्चियों को लगाया जाएगा। ये टीका अभियान कुछ दिनों में समूचे देश में छेड़ा जाएगा। बच्चियों के बाद महिलाओं को भी शामिल किया जाएगा।
सर्वाइकल टीके के अलावा वित्त मंत्री ने आधी आबादी के लिए बजट में और भी कई योजनाओं की घोषणाएं की हैं। महिलाओं को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए 83 लाख स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 9 करोड़ महिलाओं में से तीन करोड़ महिलाओं को 'लखपति दीदीÓ बनाने का भी लक्ष्य तय किया है। आंकड़ा अभीतक एक लाख महिलाओं का पूरा हो चुका है। इस दफे महिला एवं बाल विकास का बजट पिछले वर्ष के मुकाबले और बढ़ाया गया है। मौजूदा बजट की एक अच्छी बात ये रही, कि इस अंतरिम बजट में किसी तरह की लोकलुभावन घोषणाओं से सरकार ने परहेज रखा। 2024-25 का पूर्ण बजट इंसानी जरूरतों पर केंद्रित रखा गया। देश की महिलाएं इस बात को मान रही है कि उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन मील का पत्थर साबित हांगी।
केंद्र सरकार चाहती है देश जब आजादी के 100 वर्ष पूरे करें, यानी वर्ष 2047 में प्रवेश हो, तब हिंदुस्तान लक्ष्य के मुताबिक पूरी तरह से विकसित हो जाएं। उस विकसिता में आधी आबादी की भागीदारी भी किसी से कमतर न हो। सर्व-समावेशी विकास में महिलाएं भी सभी के साथ कदमताल मिलाती हुई दिखें। कुछ ऐसी योजनाएं हैं जो वूमेन की बेहतरी के लिए अच्छी साबित हो रही हैं, जिनमें उज्ज्वला योजना, फ्री-सिलाई मशीन योजना, फ्री आटा-चक्की योजना, मातृत्व वंदना योजना, सखी वन स्टॉप सेंटर योजना, और प्रधानमंत्री समर्थ योजना को और धार दी जाएगी। बजट में विपत्तिग्रस्त पीड़ित, कठिन परिस्थितियों में निवास कर रही महिलाओं के आर्थिक-सामाजिक उन्नयन हेतु स्थायी प्रशिक्षण प्रदान करने पर भी जोर दिया गया है। महिलाएं अपने बूते काबिल बने इसलिए प्रत्येक वर्ष उनके बजट में इजाफा किया जा रहा है। बीते तीन वर्षों के बजट देखें, 2021-22 में 85,712.56 करोड, 2022-23 में 92,736.5 करोड़ रुपए और 2023-24 में 93840.59 रूपए आवंटित हुए थे, वहीं मौजूदा बजट में भी बढ़ोतरी की गई है।
आंगनबाड़ी योजना केंद्र की सबसे सफल योजनाओं में गिनी जाती है। इसलिए मौजूदा बजट से आवंटित धन से आंगनवाड़ी केंद्रों को अपग्रेड करने का खाका तैयार हुआ है। सभी केंद्रों में पोषण 2.0 को लागू किया जाएगा और टीकाकरण अभियान में तेजी लाई जाएगी। इसके अलावा देशभर की आंगनवाड़ी कर्मियों और आशा कार्यकर्ताओं को अब 'आयुष्मान भारत योजनाÓ में शामिल करने का भी ऐलान वित्तमंत्री ने कर दिया है। इससे आंगनबाड़ी वर्करों को सीधे तौर पर उनको स्वास्थ्य लाभ मिलेगा। हालांकि, आंगनवाड़ी वर्करों को उम्मीद थी कि इस बार उनके वेतनमान में बढ़ोतरी की जाएगी, क्योंकि वह न्यूनतम वेतन से कहीं कम वेतन में काम करती हैं। साथ ही उन्हें पूर्ण सरकारी कर्मचारी का दर्जा भी प्राप्त नहीं है जिसकी मांग वो लंबे समय से कर रही हैं। लेकिन बजट में इस बार भी उनकी इन दोनों महत्वपूर्ण मांगों को नकारा गया। इस ओर ध्यान देने की जरूरत थी।
बजट-2024 में महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा में लोन बजट आवंटन को भी बढ़ाया गया है। क्योंकि इस नियम को पिछले वर्ष लागू किया था जिसके परिणाम बेहतर रहे। आंकड़ों के मुताबिक उच्च शिक्षा में महिलाओं के एडमिशन लेने की संख्या में 28 फीसदी तक उछाल देखने को मिला। साथ ही 'विज्ञान-प्रौद्योगिकीÓ जैसे विषयों में छात्राओं के दाखिला लेने में रिकॉर्ड 43 प्रतिशत तेजी आई। इस अभियान में होने वाले व्यय में अब और वृद्वि की गई है। वहीं, खेती-किसानी से जुड़ी महिलाओं को कृषि उपकरणों को लेने में सब्सिडी देने का भी ऐलान हुआ है। नौकरीपेशा महिलाओं के अलावा आम महिलाएं आत्मनिर्भर बनें, स्वसंसेवी संस्थाएं संचालित करें, मुद्रा लोन लेकर अपने ग्रामीण महिलाएं रोजगार धंधे चालू कर सकें, इन सभी बातों को ध्यान में रखकर मौजूदा बजट में वित मंत्री ने ज्यादा फोकस रखा। देश इस बात से वाकिफ है कि आधी आबादी का योगदान बढ़ती तरक्की में कम नहीं है। महिलाएं सभी क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)