ईद के दिन शंकर पंडित के धर्मान्तरण को क्या समझा जाए ?
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इस्लाम एक ऐसी विचारधारा है जो हर हाल में हर किसी को अपने में लाना चाहती है, फिर उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े, यदि कोई प्यार से आ जाए तो बहुत ही अच्छा है, नहीं तो जिहाद जारी रहेगा। आज यह जो संकट है, वह पूरी दुनिया के लिए बड़ा है, जिसे सभी को गहराई से समझना होगा। वस्तुत: ईद के दिन घटी घटना ने एक बार फिर से सन्न कर दिया है, आश्चर्य यह है कि ऐसी घटनाएं उस देश में घट रही हैं जो धर्मनिरपेक्ष है। हाल की घटना झारखंड के भागलपुर में सनोखर जलाहा गांव के निवासी मोहम्मद खुर्शीद मंसूरी से जुड़ी है जिसने डकैता गांव के 45 वर्षीय शंकर पंडित को ईद के दिन नमाज पढ़ाकर धर्मांतरित करने का प्रयास किया। धर्म परिवर्तन करने के बाद खुर्शीद अंसारी ने शंकर पंडित का नाम सलीम मंसूरी रख दिया। सोचने में बार-बार यही आ रहा है कि वह क्या मनोदशा और विवशता होगी जिसमें शंकर को फंसजाना पड़ा होगा? यह सोचने भर से लगता है कि भारत में धर्मान्तरण का कुचक्र कितना गहरा है।
शंकर पंडित से पूछे जाने पर उन्होंने अपनी आर्थिक विवशता एवं लगातार के सम्मोहन के बारे में बताया, कहा कि वे करीब डेढ़ साल से उसकी दुकान में काम कर रहे थे। हर रोज उनकी बातों ने धीरे-धीरे उनके मन में जहर घोलने का काम किया, फिर मस्जिद में ले जाकर नमाज पढ़वाई गई और इस तरह से मुझे मुस्लिम बनने को मजबूर किया गया। जब इस घटना की जानकारी शंकर पंडित की पत्नी रूपाली देवी एवं पुत्र जीतू पंडित को हुई तो वह दोनों ही डकैता ग्राम प्रधान नीलमणि मुर्मू के पास पहुंचे और उनसे अपनी आपबीती सुनाते हुए सहायता की गुहार लगाई।
वस्तुत: विषय यहां धर्म बदलने का नहीं है। भारतीय संविधान अपनी स्वेच्छा से धर्म को मानने और पांथिक बदलाव की इजाजत देता है, किंतु इसमें गौर करने की बात है कि यह इच्छा व्यक्ति की अंतरआत्मा की होनी चाहिए, वह भयवश, परिस्थितियों से विवश किया गया नहीं होना चाहिए। संविधान ऐसा किए जाने वालों को दोषी मानकर सजा का प्रावधान करता है। भारत में आज बहुसंख्यक हिन्दू समाज ने अपने यहां के अल्पसंख्यकों को कई विशेष अधिकार दिए हैं। चाहता तो भारत भी अपने लिए पाकिस्तान वाला धर्मिक रास्ता चुन लेता, क्योंकि संविधान निर्माण करनेवाले विद्वानों में 95 प्रतिशत से भी अधिक बहुसंख्यक हिन्दू ही थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। अब लगता है कि कहीं कोई चूक हो गई है ? कारण स्पष्ट है भारत का बहुसंख्यक हिन्दू आज भी अपनी संस्कृति, अस्मिता, धर्म और बहू-बेटियों की इज्जत बचाता ही नजर आ रहा है।
यह इतिहास का सच है कि भारत विभाजन के बाद कई हिन्दू पाकिस्तान में रह गए थे, यह सोचकर भी दंगे की इस आंधी के गुजर जाने के बाद अब जीवन में शांति आ जाएगी, किंतु आज (पाकिस्तान-बांग्लादेश) के सच को दुनिया जान रही है । पाकिस्तान में 1947 से ही अल्पसंख्यक हिन्दू और सिखों का उत्पीड़न जारी है। वहां इनकी नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर उनसे जबरन इस्लाम कबूल करवाकर मुस्लिम युवकों के साथ निकाह आम बात है। बंटवारे के बाद यहां कुल जनसंख्या 23 फीसदी गैर मुस्लिम थी अब यह चार प्रतिशत रह गई है। हिन्दू आवादी 14 फीसदी थी वह आज 1.6 फीसदी है । कुछ आंकड़ों में यह भी मिलता है कि बंटवारे से पहले पाकिस्तान में 24 फीसदी हिंदू रहते थे, जिनकी संख्या अब महज एक फीसदी हो गई है।
अब बांग्लादेश की स्थिति का आंकलन करें। पाकिस्तान का जबरन हिस्सा बन गए बंगालियों ने जब विरोध किया तो इसे कुचलने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी । पाकिस्तान की सत्ता में बैठे लोगों की पहली प्रतिक्रिया उन्हें 'भारतीय एजेंट' कहने के रूप में सामने आई और उन्होंने चुन-चुनकर हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया। लाखों बंगालियों की मौत हुई। हजारों बंगाली औरतों का बलात्कार हुआ। एक गैरसरकारी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30 लाख से ज्यादा हिन्दुओं का युद्ध की आड़ में कत्ल कर दिया गया। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ नौ महीने तक चले बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हिन्दुओं पर अत्याचार, बलात्कार और नरसंहार की कई कहानियां आज भी आपकी आंखों को नम कर देती हैं। 1947 गुजरने के 24 साल के भीतर ही यह दूसरा क्रूर विभाजन था जिसमें हिन्दुओं को ही योजना से टार्गेट किया गया था। उसके बाद से आज तक बांग्लादेश में हिन्दुओं पर जिस तरह से अत्याचार जारी है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब यहां एक भी हिन्दू नहीं बचे।
इस हकीकत को बयां अमेरिका में रहने वाले बांग्लादेशी मूल के प्रोफेसर अली रियाज अपनी पुस्तक गाड विलिंग: द पालिटिक्स आफ इस्लामिज्म इन बांग्लादेश में यह लिखते हुए किया है कि बीते 25 साल में करीब 53 लाख हिंदू वहां से पलायन कर चुके हैं। बांग्लादेश में जमात ए इस्लामी जैसे कुछ दल हैं जो देश को पाकिस्तान की राह पर ले जाना चाहते हैं। यहां हर रोज हिंदू महिलाओं और बच्चों के लापता होने की घटनाएं घट रही हैं । अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान भी बड़ी संख्या में जिहादी मुसलमानों ने हिन्दुओं को निशाना बनाया। कुल मिलाकर बांग्लादेश में अधिकांश मुसलमानों का एक ही काम दिखता है हिन्दू जनंसख्या को पूरी तरह से समाप्त करने की रणनीति को बनाए रखा जाए।
यहां इन दोनों देशों की तुलना में भारत को देखिए, जो बहुसंख्यक हिन्दुओं का देश है। देश में धर्मांतरण का कुचक्र बिना कानून के डर के चल रहा है। लव जिहाद की तमाम भुक्तभोगियों की दारुण कर देनेवाली कथाएं हैं, जो हर रोज नई हैं । इन दो देशों के बीच कायदे से तो बहुसंख्यक हिन्दुओं के भारत में भी मुसलमानों के साथ वही भेद होना चाहिए था जो पाकिस्तान या बांग्लादेश मे हो रहा है, यहां भी धर्मान्तरण की घटनाएं घटती लेकिन सिर्फ अल्पसंख्यक समाज के साथ ही, किंतु ऐसा नहीं है, क्योंकि बहुसंख्यक हिन्दू समाज इस बात में विश्वास करता है कि सिर्फ एक ही ईश्वर सत्य नहीं, सबके अपने अनुभव हैं। आप किसी भी मार्ग से जाएं, वे सभी उस विराट के लिए ही जाते हैं, जिसकी ईश्वरीय कल्पना सभी करते हैं।
हिन्दू कभी लाउडस्पीकर पर पूजा करने के पूर्व मुस्लिमों की नमाज की तरह नहीं चिल्लाता कि सिर्फ अल्लाह ही सबसे बड़ा है। वस्तुत: इन दो विचारधाराओं के बीच सोच का यही वो अंतर है जो एक ओर हिंसा फैला रहा है तो दूसरी ओर दुखी को भी गले लगाने के लिए प्रेरित करता है बिना इस शर्त के कि तेरा मजहब कौन सा है ।
आज भारत में स्थिति इतनी खराब होती जा रही है कि बहुसंख्यक समाज के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है, जिसका पता उसे अपने को बनाए रखने के लिए कानूनों का सहारा लेने से लगता है। लव-जिहाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, इसके खतरों को लेकर केरल हाई कोर्ट भी आगाह कर चुका है, उसने कहा भी है कि झूठी मोहब्बत के जाल में फंसाकर धर्मांतरण का खेल वर्षों से संगठित रूप से चल रहा है। स्वयं पुलिस रिकॉर्ड में प्रेम-जाल से जुड़े हजारों धर्मांतरण के केस हैं। इस्लामिक संगठन पीएफआइ की छात्र शाखा 'कैंपस फ्रंट' जैसे तमाम संगठन इसमें संलग्न हैं । इस संदर्भ में 'व्हाई वी लेफ्ट इस्लाम' नामक पुस्तक में भी लव-जिहाद के संगठित अभियान का वर्णन आप स्वयं पढ़ सकते हैं। लव जिहाद की तरह ही शंकर पंडित के धर्मान्तरण जैसे मामले भी देश भर से सुनने में आए दिन आते हैं।
वस्तुत: आज ये सभी मामले यही बता रहे हैं कि या तो धर्म के आधार पर भारत का विभाजन गलत था या फिर इस समस्या की जड़ में कुछ ऐसा है जो दिखाई नहीं दे रहा। किसी भी चुनी हुई सरकार का यह नैतिक दायित्व है कि वह हर हाल में अपने नागरिकों की रक्षा करे। आज भारत के हर राज्य में शंकर पंडित जैसे विवश लोग नजर आ रहे हैं । इनकी मजबूरी का कोई फायदा ना उठाए यह सुनिश्चित करना राज्य सरकारों का काम है। केंद्र की मोदी सरकार से भी अपेक्षा है कि वह एक देश, एक निशान और एक संविधान की तर्ज पर समान आचार संहिता को लागू करने में अब देर ना करे । सभी के लिए सैनिक शिक्षा अनिवार्य हो और जनसंख्या नियंत्रण कानून जल्द लाए, देखा जाए तो इतना करते ही कई समस्याओं का समाधान अपने आप ही निकल आएगा, अन्यथा हमें शंकर पंडित के धर्मान्तरण और लवजिहाद पर बार-बार दुख ही जताना है।
लेखक फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्य एवं पत्रकार हैं ।