फेक से डीपफेक तक

फेक से डीपफेक तक
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नागेश्वर सोनकेशरी

डीपफेक की चर्चा हर जगह है क्योंकि फिल्म एनीमल की अभिनेत्री रश्मिका मन्दाना के डीपफेक से बनाए वीडियो के बाद देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी खुद के इसी तरह से बनाए वीडियो की चर्चा की है। आर्टीफिशियल इन्टेलीजेंस की मदद से इन कंटेंट को इस तरह से तैयार किया जाता है, जिससे देखने में बिल्कुल असली लगते हैं । कहते हैं कि 2026 तक इंटरनेट के नब्बे प्रतिशत कंटेंट इसी तरह के हो सकते हैं ।

हमारी वास्तविक दुनिया के समानांतर बनी आभासी दुनिया अब वास्तविक दुनिया की तरह ही हमारे जीवन और समाज को प्रभावित कर रही है । हमारे जीवन की छोटी-बड़ी हर चीज के लिए हम इन्टरनेट पर निर्भर होते चले जा रहे हैं। मोबाइल में उपलब्ध एप्लिकेशनों के सहारे जीवन आसान तो हुआ है । ये एप्लिकेशन हमारे महत्वपूर्ण कामों मसलन स्वास्थ्य, हमारी नींद, कदमताल, ऊर्जा, धड़कनों और ऐसी कई अनगिनत बातों से अवगत कराती रहती हैं। इससे आगे बढ़ कर आई नई तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने तो कमाल ही कर दिया है । एआई जनित रोबोट से लेकर चैटजीपीटी तथा गूगल जीबोर्ड ने तो आम लोगों की तरह बातचीत और चैटिंग से लेकर हर तरह का जवाब देना शुरू कर दिया है । अमेजन की इलैक्सा से लेकर एप्पल की सिरी ने घर के स्विच ऑन करने से लेकर बिल पेमेंट तथा रिमोट तक की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है।

अब इसी कृत्रिमता की चादर ओढ़ कर हम अपने मन को समझाने के बहाने खोजने लगे हैं। फिल्टर और दिखावे से सजी हमारी आभासी दुनिया में हम अपने आप को इस तरह से प्रदर्शित करते हैं कि जीवन में सब कुछ बहुत शानदार और ख़ुशनुमा चल रहा है। फेसबुक में चमाचम ड्रेस से सजे मुस्कुराते चेहरे हर कहीं देखने को मिल जाते हैं । इन्हें देख कर लगता है कि भारत का हैप्पीनेस इंडेक्स झूठ बोलता है। यह दिखावा भी एक तरह का फुलफेक ही है ।

तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग ने हमारी सहायता करने से अधिक हमारी मौलिकता,खूबियों,कमियों,के साथ हमारे मन , मस्तिष्क तक को बुरे तरीक़े से प्रभावित किया है। इस अदृश्य अतिक्रमण के प्रभाव से युवाओं में वो धैर्य तथा विवेक नहीं रहा है। अब समय आ गया है कि हम तकनीक के संतुलित उपयोग से फेक, डीपफेक तथा बाहरी जंजालों से मुक्ति पाकर मन में आत्मशांति तथा आनंद का अनुभव करें ।

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