निर्गुट सम्मेलन से जी-20 तक

निर्गुट सम्मेलन से जी-20 तक
X
विवेक शुक्ला

अब भारत आगामी 9-10 सितंबर को होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिये तैयार है। जी 20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के अलावा भारत के निमंत्रण पर बांग्लादेश, नाइजीरिया, मॉरीशस वगैरह देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भी सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे। इससे पहले इतना भव्य आयोजन 1983 में राजधानी दिल्ली में हुआ था। तब दिल्ली में 7-12 मार्च, 1983 को निर्गुट सम्मेलन का आयोजन हुआ था। उसमें दर्जनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष समेत 140 देशों के नुमाइंदों ने भाग लिया था। इसके अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और मौरिस मिटर्रैंड वगैरह के संदेश भी सरकार को मिले। तब कहा गया था कि इतना विशाल सम्मेलन कभी कहीं नहीं हुआ। उसमें क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो, पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक, फिलीस्तीन लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (पीएलओ) के नेता यासर अराफात भी पधारे थे। ये सब अशोक होटल में ठहरे थे। तब सुरक्षा कारणों के चलते कास्त्रो और अराफात के चेहरों से मिलते-जुलते तीन-तीन और व्यक्ति भी अशोक होटल और विज्ञान भवन में घूम रहे थे। यह सब इसलिए किया जा रहा था ताकि इन्हें किसी भी संभावित हमलों से बचाया जा सके। निर्गुट सम्मेलन का आयोजन विज्ञान भवन में हुआ था।

उस सम्मेलन के उन पलों को कौन भूल सकता है जब फ़िदेल कास्त्रो ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गले लगा लिया था। इस पर इंदिरा गांधी अवाक रह गई थीं। बहरहाल, अब जी-20 सम्मेलन के दौरान विज्ञान भवन कहीं नहीं है। तब भी नई दिल्ली को एक तरह से सील कर दिया गया था। पर तब बैंक, सरकारी दफ्तर और स्कूल-कॉलेज खुले रहे थे। निर्गुट सम्मेलन में भाग लेने के लिए आने वाले राष्ट्राध्यक्षों की कारों के काफिले एयरपोर्ट से शांतिपथ, तीन मूर्ति, साउथ एवेन्यू, विजय चौक, मदर टेरेसा क्रिसेंट, सरदार पटेल मार्ग, पंचशील मार्ग, सफदरजंग रोड और विज्ञान भवन के आसपास रहे थे। इस बार काफिले प्रगति मैदान तक जायेंगे क्योंकि वहां पर बने भारत मंडपम में ही जी-20 सम्मेलन का आयोजन होना है।

चूंकि जिया उल हक के लिये दिल्ली जाना पहचाना शहर था, इसलिये मौके का फायदा उठाकर वे एक दिन सेंट स्टीफंस कॉलेज में पहुंच गये थे। वे सेंट स्टीफंस कॉलेज में 1941 से 1945 तक पढ़े थे। सेंट स्टीफंस कॉलेज कैंपस में आते ही जिया भावुक हो गए थे। उन्हें देखने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी बिरादरी सेंट स्टीफंस कॉलेज के बाहर जमा हो गई थी। जिया उल हक ने कॉलेज में अपने मुखर्जी हॉस्टल के कमरे को देखा तो वे उसकी दिवारों को स्पर्श करने लगे। उनके चेहरे के भाव इस तरह के हो गये थे कि मानो वे उस दौर में चले गये हों जब वे इधर पढ़ते थे। वे प्रिंसिपल रूम में भी गये थे। उनके समय डेविड राजाराम सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिंसिपल थे। उन्हें सेंट स्टीफंस कॉलेज के इतिहास पुरुष प्रो. मोहम्मद अमीन और भारत के मशहूर धावक रहे प्रो. रंजीत भाटिया ने कॉलेज का चक्कर लगवाया। जिया ने अपने पुराने अध्यापकों के बारे में पूछा। वे कुछ पलों तक कॉलेज कैंटीन में नींबू पानी बेचने वाले वाले सुखिया से बड़ी आत्मीयता के साथ मिले। वे भी सुखिया के नींबू पानी के शैदाई थे। कहते हैं कि वे यहां से विदा होने से पहले सुखिया को एक लिफाफे में अपना पुराना कर्ज अदा करके गये थे। उस यादगार सम्मेलन के बाद निर्गुट आंदोलन के कई दिग्गज नेताओं जैसे मिस्र के जननेता गमाल आब्देल नासेर और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ ब्रॉज टीटो के नाम पर सड़कों के नाम रखे गये थे।

बहरहाल जी-20 सम्मेलन का आयोजन उस समय हो रहा है जब भारत संसार की आर्थिक महाशक्ति बन चुका है। 1983 और 2023 का भारत एकदम अलग है। कुछ समय पहले भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अब संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की ही अर्थव्यवस्था आज के दिन भारत से बड़ी है। हमारी प्रगति की रफ़्तार को देखकर यह कहा जा सकता है कि हम जल्दी ही जापान और जर्मनी को भी मात दे देंगे। हम दुनिया की आई टी सेक्टर की सबसे बड़ी ताकत हैं।

भारत को पिछले साल 1 दिसंबर को जी-20 की अध्यक्षता मिली थी। भारत को जैसे ही जी-20 की अध्यक्षता मिली, तब ही से देशभर में बैठकों और छोटे सम्मेलनों के दौर शुरू गए। ये बैठकें राजधानी दिल्ली के अलावा देश के अन्य प्रमुख शहरों और पर्यटन स्थलों पर हुईं। इनमें करीब 200 बैठकें हुईं जिनमें जी-20 देशों के नुमाइंदों ने भाग लिया। भारत की जी-20 की अध्यक्षता कई मायनों में ऐतिहासिक रही है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत ने महज बैठकों का संचालन कर इतिश्री नहीं की है, बल्कि उसने बैठकों से इतर अन्य कई गतिविधियों पर भी जोर दिया। जी-20 जैसा महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन का भारत में होना देश के लिए गौरव की बात है। यहाँ पर लगातार सम्मेलन से जुड़ी बैठकें होती रहीं। आने वाले अतिथियों का सबने स्वागत किया। वे जब अपने मुल्कों में वापस गये तो वे भारत के अघोषित ब्रांड एंबेसेडर के रूप में भारत के पर्यटन स्थलों का स्वत: प्रचार करने लगे। माना जा सकता है कि जी 20 मंच का अध्यक्ष रहने के चलते भारत के पर्यटन क्षेत्र को तगड़ा लाभ होगा। यहां विदेशी सैलानियों की तादाद खासी बढ़ जायेगी।

वैसे तो भारत के पर्यटन क्षेत्र के सामने दुनिया का कोई भी देश खड़ा नहीं होता। हमारे यहां पर नदियां, पहाड़, समुद्री तट, धार्मिक स्थान वगैरह की कोई कमी नहीं है। हमारे समाज, संस्कृति और खान-पान की विविधता अतुल्नीय है। हमारे सामने जी-20 की बदौलत एक अनुपम अवसर आया जिसका हमने लाभ भी उठाया है। भारत ने विश्व स्तर पर अपनी प्राचीन और समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए जी-20 की मेजबानी को बेहतरीन तरीके से भुनाया है। सारा साल जी-20 देशों के प्रतिनिधि बैठकों के लिए भारत के अलग-अलग हिस्सों का दौरा करते रहे, उन्हें स्थानीय व्यंजन परोसे जाते रहे। अतिथि देवो भव: की भावना से ओत-प्रोत भारत की मेहमान नवाजी हमेशा के लिए विदेशी मेहमानों के दिल में बस गई है।

ऐसे कई मौके आए, जब भारतीय और विदेशी मीडिया ने जी-20 प्रतिनिधियों से उनका अनुभव जानने का प्रयास किया है तो उनका स्पष्ट शब्दों में यही जवाब रहा है कि उन्होंने भारत जैसी मेहमाननवाजी कहीं नहीं देखी। कुल मिलाकर भारत ने अपनी मेजबानी को ऐतिहासिक बनाने का कोई भी मौका नहीं गंवाया है। निश्चित रूप से जी 20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन से सारे संसार में भारत की इमेज और सुधरेगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

Next Story