जी 20: भारत के इतिहास में एक स्वर्ण रेखा
दिल्ली 9 सितंबर जी 20 का सफल आयोजन भारत के इतिहास में एक स्वर्ण-रेख की तरह अंकित हो गया। भारत ने जो कुछ सोचा था, इस आयोजन के बाद शायद उससे ज्यादा हासिल हुआ। पूरे एक साल तक देश के 60 अलग-अलग स्थानों पर और कुछ स्थानों पर एक से ज्यादा बार अलग-अलग विषयों पर जी-20 की 200 बैठकें होना कोई आसान काम नहीं था। कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश यानि दोनों सीमान्त प्रदेशों में जी-20 के कार्यक्रम होना बहुत बड़ी बात है। अरुणाचल प्रदेश में, जिसे चीन अपना बताता है, में कार्यक्रम होना चीन के गाल पर जोरदार तमाचा है। जहाँ तक कश्मीर की बात है, इसे लेकर दुनिया भर में न जाने कितना दुष्प्रचार किया गया, मुस्लिम देशों में कश्मीर को लेकर भारत की छवि खराब करने की कोशिश की गयी, लेकिन उसी कश्मीर में जी-20 के प्रतिनिधि जब कार्यक्रम के लिए पहुंचे तो झूठ के वितंडावाद का पर्दाफाश हो गया। ये प्रतिनिधि डल झील गए, शिकारों में भी घूमे। इससे एक संदेश दुनिया को गया कि कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश दोनों हमारे ही हैं। इन 200 कार्यक्रमों में से नागपुर में हुए एक कार्यक्रम में मैं भी गया था, सब कुछ इतना व्यवस्थित, योजनाबद्ध ढंग से हुआ, इतने विषयों पर चर्चा हुई जो कि इससे पहले के 17 जी-20 शिखर सम्मेलनों में कभी नहीं हुई।
इतने विषयों पर गहन चर्चा के बाद उन पर सभी सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को सहमत करना, वो भी यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे भीषण युद्ध में बेहद कठिन काम था। हमें रूस को भी नाराज नहीं करना, क्योंकि वह हमारा ऐसा मित्र है जिसने हमेशा साथ दिया है और यूक्रेन के प्रति सबकी सहानुभूति है, दोनों स्थितियों को ध्यान में रखते हुए ऐसा मध्य मार्ग निकालना, जिस पर सबकी सहमति बन पाए, यह हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर, केन्द्रीय मंत्री हरदीप पुरी और अमिताभ कांत जैसे उनके सहयोगियों कि सूझबूझ और परफेक्ट होमवर्क का नतीजा है। जो काम 8 सितंबर तक असम्भव - सा लगता था, उस पर 9 सितंबर को शिखर सम्मलेन के पहले सत्र में सबकी सहमति मिल जाये और नई दिल्ली घोषणा पत्र जारी हो जाये, यह कोई मामूली बात नहीं। यह भी देखिये कि रूस के विदेश मंत्री, सर्गेई लावरोव ने अलग से प्रेस कांफ्रेंस करके इस घोषणापत्र पर अपना सकारात्मक पक्ष सबके सामने रखा। यह सब चीन के प्रधानमंत्री की उपस्थिति में हुआ और अमरीका के राष्ट्रपति तो मोदी जी के जितने करीब रहे, उससे निश्चित रूप से भारत की धमक बढ़ी। मोदी जी ने भी कहीं कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, दुनिया को भारत के शानदार अतीत और वर्तमान के दर्शन करा दिए। इतने थोड़े से समय में नालंदा विशवविद्यालय से लेकर कोणार्क चक्र और महात्मा गाँधी के साबरमती आश्रम तक, पौराणिक, आध्यात्मिक भव्यता से लेकर वैज्ञानिक विरासत और उन्नत तकनीक का अहसास मेहमानों को कराया। इस सबसे भारत के बारे में सदियों से फैलाये गए इस भ्रम का निराकरण हो गया कि भारत सपेरों और चरवाहों का देश है।
दूसरी उल्लेखनीय बात रही 55 अफ्रीकी देशों के संगठन को जी-20 का सदस्य बनाना। अब जी-20 के सदस्य देशों कि संख्या 21 हो गयी। दरअसल यह कोशिश कुछ अमीर देशों के संगठन जी। से शुरू हुई थी जो अब जी-21 तक पहुँच गयी है। अफ्रीकी देशों में ज्यादातर गरीब, चीन के कर्ज के बोझ तले दबे देश हैं, जी-20 की सदस्यता मिलने के बाद इन्होंने राहत की सांस ली। वहां विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियन डेवलपमेंट बैंक आदि के सदस्य सभी मौजूद थे, अब उम्मीद है कि इन अफ्रीकी देशों की पहुँच भी वैश्विक संथाओं तक होगी। अप्रत्यक्ष रूप से जी-20 से यह सन्देश भी गया कि वैश्विक संस्थाओं को अपना रवैया बदलना होगा अगर वे नहीं बदलेंगी तो अप्रासंगिक हो जाएँगी, समाप्त हो जाएँगी। जी-20 के सफल आयोजन के बाद दुनिया को यह अहसास हो गया है कि अब भारत नेतृत्व करने की स्थिति में आ गया है।
जी-20 के आयोजन की जहाँ विदेशी प्रतिनिधियों ने सराहना की, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस आयोजन को देश का मान बढ़ने वाला बताया। प्रधानमंत्री ने जिस गर्मजोशी से विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों, नीतीश कुमार, सुखविंदर सिंह सुख्खू, सोरेन, स्टॅलिन का परिचय जो बाईडेन से करवाया, वह भी सबने देखा। यह सबको साथ लेकर चलने का उत्तम उदहारण था। प्रधानमंत्री की क्षमताओं की सोच और क्षमता यहीं तक सीमित नहीं रही, शिखर सम्मलेन के समापन के बाद बिना थके, बिना रुके शाम को वे फिर भारत मंडपम पहुंचे और उन सभी हस्तशिल्पकारों, मीडिया कर्मियों और छोटे बड़े सभी कर्मचारियों से मिले। इस पूरे आयोजन की सफलता के बारे में यह भी कहा गया कि इसमें रणनीति और योजना ठीक उसी तरह से बनाई गई थी जैसे कि किसी मिलिट्री ऑपरेशन में प्रिसिजन प्लानिंग। 140 करोड़ के देश ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर नेतृत्व कुशल, संकल्पवान, ईमानदार और प्रतिबद्ध व्यक्ति के हाथों में हो तो हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं और प्रधानमंत्री मोदी ने नेतृत्व से भी आगे बढ़कर काम किया है। संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा का यह एक अद्भुत उदहारण है।
(लेखक महाराजा अग्रसेन यूनिवर्सिटी चांसलर हैं)