जी-20 सम्मेलन और शिव-शक्ति
दिल्ली में होने जा रहा जी-20 सम्मेलन इस बार सनातन संस्कृति की छाया में होगा। इसी भाव को दृष्टिगत रखते हुए शिखर सम्मेलन स्थल पर भगवान शिव की 28 फीट ऊंची 'नटराजÓ प्रतिमा को प्रतीक रूप में स्थापित किया गया है। इस प्रतिमा में शिव के तीन प्रतीक-रूप परिलक्षित हैं। ये उनकी सृजन यानी कल्याण और संहार अर्थात विनाश की ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक हैं। अष्टधातु की यह प्रतिमा प्रगति मैदान में 'भारत मंडपमÓ के द्वार पर लगाई गई है। इस प्रतिमा की आत्मा में सार्वभौमिक स्तर पर सर्व-कल्याण का संदेश अंतर्निहित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी शाश्वत दर्शन से भारतीय संस्कृति के दो सनातन शब्द लेकर 'वसुधैव कुटुंबकम्Ó के विचार को सम्मेलन शुरू होने के पूर्व प्रचारित करते हुए कहा है कि 'पूरी दुनिया एक परिवार है। यह ऐसा सर्वव्यापी और सर्वकालिक दृष्टिकोण है, जो हमें एक सार्वभौमिक परिवार के रूप में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक ऐसा परिवार जिसमें सीमा, भाषा और विचारधारा का कोई बंधन नहीं है। जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान यह विचार मानव केंद्रित प्रगति के आवाहन के रूप में प्रकट हुआ है। हम एक धरती के रूप में मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आ रहे हैं। जिससे सब एक-दूसरे के सहयोगी बने रहें और समान एवं उज्ज्वल भविष्य के लिए एक साथ आगे बढ़ते रहें। विश्व कल्याण का यह विचार आज तक किसी अन्य देश के राष्ट्र प्रमुख ने नहीं दिया। क्योंकि ये देश असामनता के संदर्भ में ही अपने पूंजीवादी, बाजारवादी और उपभोक्तावादी अजेंडे को आगे बढ़ाते रहे हैं।
भगवान शिव का विश्व के केंद्र बिंदु पर तांडव नृत्य करना ही इस तथ्य का ठोस प्रतीक है कि नटराज-प्रतिमा का संबंध प्रकृति और उसके भूगोल से है। शिव ने यह नृत्य केरल के चिदंबरम् नामक स्थल पर किया था। इस स्थान को विश्व का केंद्र बिंदु माना जाता है। इस क्षेत्र में शिव के पांच मंदिर हैं, जो पंच तत्वों के प्रतीक हैं। यहीं पल्लव व चोल राजाओं द्वारा निर्मित यह विशाल मंदिर है। यह आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें शैव व वैष्णव दोनों ही मतों के देवता प्रतिष्ठित हैं। शाश्वत आनंद का यह नृत्य कुछ और नहीं अहंकार त्याग कर सहज रूप में जीवन जीने का संदेश है, जो ऋषियों के तप-अनुष्ठान से भिन्न मार्ग है। कलात्मक ढंग से जीने का सत्य-चित्त आनंद अर्थात सच्चिदानंद के साथ जीना ही श्रेष्कर है। इन सब को शिव के वशीभूत देखा ऋषि ईश्वर को ही सत्य मानते हुए शिव के समक्ष समर्पण कर देते हैं।
अब नटराज मूर्ति में प्रकृति के रूप को देखते हैं। मूर्ति में शिव की उलझी हुई खुली जटाएं, नेत्रों में आक्रोश और दानव की पीठ पर सधे हुए नृत्य के प्रकटीकरण की मुद्रा को शिव के तांडव नृत्य के रूप में देखा जाता है। परंतु जब इसी मुद्रा को मूर्त रूप दिया जाता है, तब यह नटराज की मुद्रा में नृत्य कहलाता है। भारतीय मूर्तिकला का एक समृद्ध इतिहास रहा है और इस इतिहास की परंपरा में सबसे महत्वपूर्ण नटराज की मूर्ति को ही माना जाता है। नटराज की महिमा भारत से लेकर चीन, जापान और यूरोपीय देशों में भी है। बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा मान्यता दिए जाने से बौद्ध-बहुल देशों में भी मूर्ति का महत्व प्रचलन में है।
नटराज प्रतिमा के वृत्ताकार घेरे में चारों तरफ अलंकृत अग्नि व मछली जैसे चिन्ह प्रस्तुत हैं। ये निशान पृथ्वी पर जीवन और विनाश को प्रदर्शित करने के प्रतीक हैं। नटराज के ऊपर अर्धचंद्र व जटाओं में गंगा, ब्रह्मांड व पृथ्वी की सृजन का बयान करते हैं। नटराज के दाहिने हाथ में डमरू अभय मुद्रा का प्रदर्शन है। यह विश्व में घटित होने वाले घटनाचक्रों का भी प्रतीक है। यहां एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य है कि जब शिव नटराज की मुद्रा में होते है, तब उनके हाथ में त्रिशूल नहीं होता है। बाईं भुजा में आधृत अग्नि शिव के रौद्र रूप के साथ, जीवन की आवश्यकता की प्रतीक है। अर्थात अग्नि के जीवन से जुड़े महत्व को प्रगट करती है। आमतौर से नटराज की मूर्ति को एक बालक पर खड़े होकर नृत्य करते दिखाया गया है, यह बालक के रूप में अपस्मरा नामक दानव का वध है। दरअसल, शिव की खुली जटाएं, नेत्रों से झलकता आवेग, बालक की पीठ पर सधे हुए एक पैर से नृत्य का संयोजन और स्थिर मुद्रा भाव, वैसे तो तांडव नृत्य है, लेकिन जब इसी मुद्रा को मूर्त रूप दिया जाता है तो ये कहलाते हैं, नटराज! नटराज का शाब्दिक अर्थ है, 'नृत्य करते देवताÓ या 'देवता का नृत्यÓ। पत्थर पर उत्कीर्ण ये कलाकृतियां प्राचीनतम रूप में अजंता और एलोरा की गुफाओं में मिलती है।
मूर्ति के इस स्वरूप वर्णन से स्पष्ट होता है कि शिव की यह नटराज प्रतिमा एक तरह से प्रकृति का अव्यक्त रूप भी है। अर्थात अव्यक्त प्रकृति से महत्व और महत्व से अहंकार उत्पन्न होता है। इस अहंकार तत्व के अधिष्ठाता शिव है। अवतारवाद की सभी कथाओं में विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्मा तथा ब्रह्मा के क्रोध से रुद्र अर्थात शिव की उत्पत्ति का वर्णन है। त्रिदेवों के इस प्रादुर्भाव के क्रम में विष्णु प्रथम, ब्रह्मा द्वितीय और महेश यानी शिव तृतीय स्थान पर अपने-अपने जन्म की वरिष्ठता के अनुसार हैं। अतएव त्रिदेव की कल्पना में ब्रह्मा सृष्टि की रचना, विष्णु सृष्टि के पालन और शिव संहार अर्थात प्रलय करने करने वाले देवता माने गए हैं। अतएव विश्व कल्याण के लिए आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रतीक स्वरूप शिव के नटराज रूप की प्रतिमा प्रासंगिक है।
(लेखक वरिष्ठ कथाकार एवं पत्रकार हैं)