सामान्य कार्यकर्ताओं को नेतृत्व की कमान
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा की विजय पताका फहर चुकी है। जहां राजस्थान और छत्तीसगढ़ इन दोनों राज्यों में भाजपा ने कांग्रेस को पराजित कर सत्ता में अपनी वापसी की है। वहीं मध्यप्रदेश में 163 विधानसभा सीट के साथ ऐतिहासिक एवं प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा की सरकार में पुन: वापसी हुई है। इन तीनों राज्यों में भाजपा द्वारा संगठनात्मक स्तर पर नेतृत्व को लेकर किए गए आमूलचूल परिवर्तनों ने एक बार फिर से सबको सोचने के लिए विवश कर दिया है। मीडिया और चर्चाओं में आगे चलने वाले चेहरों के स्थान पर ऐसे तीन चेहरे चुनकर आए जो सम्भावित दौड़ में नहीं माने जा रहे थे।
मध्यप्रदेश में जहाँ डॉ.मोहन यादव को मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया वहीं छ.ग. एवं राजस्थान में क्रमश: विष्णुदेव साय और भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री की कमान दी गई। नेतृत्व को लेकर हुए इन निर्णयों ने राजनीतिक विश्लेषकों सहित लगभग सभी को चौंकाने का काम किया है । किन्तु यदि भाजपा की संगठनात्मक संरचना को देखा जाए तो नेतृत्व को लेकर भाजपा में यह अनुशासन जनसंघ के समय से ही ढला हुआ है।
पं. दीनदयाल उपाध्याय स्वस्थ राजनीतिक दल के लिए जो पांच प्रमुख आधारभूत सिद्धांत बताए थे — दर्शन , नेता, नीति, कार्यकर्ता और कार्यक्रम ; उसी अनुरूप भाजपा अपने कुशल संगठनात्मक प्रबंधन को प्रस्तुत करती है।
म.प्र. , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में नेतृत्व को लेकर हुए निर्णयों के बाद भाजपा की उस कथनी पर एक बार फिर मुहर लग गई है जिसे भाजपा 'पार्टी विथ डिफरेंस Ó कहती है । इस आधार पर भाजपा वर्तमान राजनीति में आदर्श प्रस्तुत करती है कि - उसके लिए विचार निष्ठा और कार्यकर्ता सर्वोपरि होता है । इसी कारण से भाजपा में सामान्य कार्यकर्ता भी सर्वोच्च दायित्वों/ पदों पर पहुंच सकता है। विष्णुदेव साय, डॉ.मोहन यादव और भजन लाल शर्मा - ये तीनों वे लोग थे जो संगठन में वर्षों से वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ काम करते आ रहे थे। इन्हें जब जो दायित्व भाजपा और संगठन ने दिए। ये उसमें खरे उतरे। इसी का सुफल है कि इन्हें मुख्यमंत्री के रूप में चुनकर तीनों प्रदेशों की कमान दी गई। भाजपा ने इससे यह भी संदेश देने का काम किया है कि - नई नेतृत्व परम्परा, संगठन सर्वोपरि, समन्वय , पूर्ण वैचारिक निष्ठा के साथ नए नेतृत्व के साथ भाजपा सरकारें काम करेंगी।
इन नेतृत्व परिवर्तनों के चलते जनता में यह भी विश्वास बढ़ता चला जा रहा है कि - जाति और विभाजन की राजनीति करने वाले इंडी गठबंधन और कांग्रेस ये सभी केवल तुष्टिकरण की ही बात करते हैं। जबकि भाजपा जाति- समाज इत्यादि के विभाजन की राजनीति को नकारकर - समरसता के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग और समुदाय का प्रतिनिधित्व वर्षों से सुनिश्चित करती आ रही है ।
कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों में जहां वंशवाद, जातिवाद अपने चरम पर देखने को मिलता है। साथ ही कोई भी बड़े पद उस परिवार के लिए ही रिजर्व रहते हैं। कांग्रेस यानी गांधी खानदान, सपा यानि अखिलेश यादव, आरजेडी यानि - लालू यादव परिवार, जेडीयू यानि - नीतीश कुमार , बसपा यानि मायावती, एनसीपी यानि - शरद पवार। तृणमूल कांग्रेस यानि - ममता बनर्जी, डीएमके यानि - स्टालिन। आम आदमी पार्टी यानि - अरविन्द केजरीवाल ।इसी तरह अन्य राजनीतिक दलों की यही स्थिति है। इन राजनीतिक दलों में सत्ता और संगठन इन्हीं के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। इन दलों का सामान्य कार्यकर्ता सपने में भी नहीं सोच पाता है कि — वह सत्ता या दल के किसी शीर्ष पद पर पहुंच पाएगा।
किन्तु इन सबके बीच भाजपा में अलग ढंग की राजनीति देखने को मिलती है। जोकि जनसंघ के समय से चली आ रही है ?। वर्तमान में ही देखें तो केन्द्र और राज्यों की सत्ता और संगठन में शीर्ष पर बैठे हुए - चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा हों, गृहमंत्री अमित शाह सहित केन्द्रीय कैबिनेट में जो लोग हैं। वे न तो किसी राजनीतिक परिवार से सम्बन्ध रखने वाले हैं और न ही किसी राजनेता के पुत्र या पुत्री होने के कारण वहां तक पहुंचे हैं। इसी प्रकार भाजपा शासित राज्यों में भी मुख्यमंत्री, कैबिनेट और भाजपा संगठन में भी यही विधान देखने को मिलता है । अपनी इसी संगठनात्मक पद्धति के अन्तर्गत राष्ट्रीयता के साथ अन्त्योदय को लेकर चलने वाली भाजपा समाज के मध्य अपना महत्वपूर्ण स्थान बना पाई है। इसके साथ ही हिन्दुत्व को लेकर भाजपा स्पष्ट मुखर नीति और भारत के सांस्कृतिक उन्मेष के प्रति प्रतिबद्धता ने उसे अन्य राजनीतिक दलों से कहीं और आगे ले आकर खड़ा कर दिया है।
( लेखक साहित्यकार, स्तंभकार एवं पत्रकार हैं)