बालिका शिक्षा : चिंताजनक आंकड़े

बालिका शिक्षा : चिंताजनक आंकड़े
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सीमा अग्रवाल

भारत के केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति 2023 रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े स्पष्ट तौर पर यह बताते हैं कि भारत के गांवों में अब बालिका शिक्षा को लेकर उत्साह बढ़ रहा है। सर्वेक्षण में यह दावा किया गया है कि आज भारत के 78 प्रतिशत ग्रामीण माता, पिता चाहते हैं कि उनकी बेटी ग्रेजुएशन या इससे आगे की पढ़ाई करे। जबकि 82 प्रतिशत अभिभावक अपने लड़कों को स्नातक या उससे आगे पढ़ाना चाहते हैं।

सर्वेक्षण में दिए ये आंकड़े भारत में बालिका शिक्षा को लेकर बदलते नजरिये को उजागर करते हैं। लेकिन देखा जाए तो आज भी देश की आधी आबादी को शिक्षित करने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की राह में तमाम चुनौतियां हैं। बच्चियों की पढ़ाई की राह इतनी आसान आज भी नहीं है। इसी सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि प्राथमिक स्तर पर पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों में तीन चौथाई बालिकाएं और एक चौथाई बालक हैं। जो साफ तौर पर जाहिर करता है कि प्राथमिक स्तर पर गर्ल्स ड्रॉपआउट का रेशियो लड़कों की तुलना में ज्यादा है। शिक्षा विशेषज्ञों की मानें तो आज भी भारत के कई गांव ऐसे हैं जहां हायर एजुकेशन के लिए स्कूल नहीं हैं। बच्चियों की पढ़ाई का स्तर क्या है इसे एक सर्वे रिपोर्ट से और समझा जा सकता है।

भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्तमान में भारत के करीब 6.57 प्रतिशत गांवों में ही वरिष्ठ माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं यानि हायर एजुकेशन के लिए स्कूल हैं। देश के केवल 11 प्रतिशत गांवों में ही 9वीं और 10वीं की पढ़ाई के लिए हाईस्कूल हैं।

यदि राज्यवार देखें तो आज भी देश के करीब 10 राज्य ऐसे हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक गांवों में कोई स्कूल नहीं है। गांवों में उच्च शैक्षिक संस्थानों की कमी के कारण माता, पिता बालिकाओं को बेसिक एजुकेशन के लिए स्कूलों में भर्ती ही नहीं करते। अगर एडमिशन करा भी दिया तो स्कूल दूर होने के कारण उसे प्राइमरी तक पढ़ाने के बाद घर बैठा लेते हैं। क्योंकि हाईस्कूल और इंटर की पढ़ाई उनके गांवों में उपलब्ध नहीं होती।

डवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा किए गए सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार गांवों के लगभग 37 प्रतिशत माता, पिता ने इस बात को माना है कि पारिवारिक कामों में हाथ बंटाने के कारण इनकी बेटियों को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है। साथ ही साथ 21.1 प्रतिशत अभिभावकों ने ये माना कि लड़की परिवार की घरेलू जिम्मेदारियों में अहम भूमिका निभाती है। मां के काम करने, बीमार रहने, छोटे भाई बहनों की देखभाल करने की जिम्मेदारी के कारण बेटियां अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं।

हायर एजुकेशन में लड़कियों के पंजीकरण का यह निम्न स्तर उन्हें रोजगार के अवसरों से दूर करता है। कई अध्ययनों के अनुसार भारत में 15-25 साल आयु वर्ग की युवा महिलाओं की बेरोजगारी दर 11.5 प्रतिशत है। जबकि समान आयु वर्ग के युवा पुरुषों के मामले में यह 9.8 प्रतिशत है। तमाम आंकड़े यह बताते हैं कि भारत में अभी भी लगभग 145 मिलियन महिलाएं हैं। जो पढ़ने या लिखने में असमर्थ हैं। यह हालात शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा गांवों में अधिक गंभीर है। इन तमाम कारणों से अलग कुछ कारण जैसे लैंगिक असमानता, सामाजिक बुराईयां, महिला सुरक्षा, पितृसत्तामकता भी हैं। ये वो कारण हैं जो बालिका शिक्षा की निम्न स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय के सर्वेक्षण में भी यह साफ हुआ है कि बच्चों की पोषण स्थिति और उनकी माताओं की शिक्षा के बीच सीधा संबंध है। ऐसे में भारत को साल 2024 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए बालिका शिक्षा पर जोर देना होगा। देश में स्वस्थ मानव पूंजी के निर्माण के लिए बालिका शिक्षा एक अतिमहत्वपूर्ण अवयव है। जिसे केवल सरकारी प्रयासों और जनभागीदारी से ही हासिल किया जा सकता है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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