युवा नेतृत्व की दशा-दिशा गढ़ता आधी सदी का अनुपम प्रयोग
आजादी के आन्दोलन और संघर्ष के बाद स्वतंत्र भारत में बापू ने युवाओं की विशिष्ट संपदा के माध्यम से भारत को विकास की नई दिशा देने का सपना संजोया। इस सपने के मूल में था कि यदि राष्ट्र के विद्यार्थियों की अथाह शक्ति, राष्ट्र निर्माण में लगकर सामाजिक क्रांति की अग्रदूत बने, तो प्रगति की गति अलग होगी। बापू के इस स्वप्न को साकार रूप देने का बीड़ा भारत सरकार ने उठाया। अनेक शिक्षाविद और प्रबुद्ध जनों के मन्थन से एक अभिनव योजना, सामाजिक क्रांति की जननी बनकर सामने आई और जिसका नाम कहलाया राष्ट्रीय सेवा योजना यानी एनएसएस। इसका मूल उद्देश्य है सामुदायिक विकास के लिए स्वैच्छिक आधार पर उच्च शिक्षा से जुडे युवाओं में सामाजिक सरोकार का भाव जागृत करके उन्हें जनकल्याणकारी गतिविधियों में संलग्न करना।
वर्ष 1948 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की अध्यक्षता में गठित प्रथम शिक्षा आयोग से इस योजना पर बातचीत शुरू हुई। 1964-66 में बने कोठारी आयोग की सिफारिशों से इसने मूर्त रूप लिया और 24 सितम्बर 1969 को अखिल भारतीय स्तर पर लागू की गई। महज 37 विश्वविद्यालय के अंतर्गत 40000 स्वयंसेवकों से शुरू हुई यह योजना आज 40 लाख से अधिक स्वयंसवकों का परिवार बन अपने 55वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। नवाचारों के प्रणेता होने के साथ साथ एनएसएस स्वयंसेवकों में आठों प्रहर गतिशील होने का प्राकट्य यथार्थ रूप में दृष्टिगोचर होता है।
वर्तमान में केन्द्र स्तर पर युवा कार्यक्रम विभाग एवं राज्य स्तर पर, उच्च शिक्षा विभाग एनएसएस का संचालन एवं विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध है। एक ओर 'स्वयं सजे वसुंधरा सँवार देंÓ का गान करते हुए ये स्वयंसेवक दान के महत्व को रेखांकित कर रहे हैं जिसमें रक्तदान, अन्नदान, वस्त्रदान प्रमुख हैं। वहीं दूसरी ओर गांव और शहरी बस्तियों में जाकर प्रौढ़ शिक्षा, खुले में शौच मुक्त पंचायत, पर्यावरण संरक्षण, मतदाता जागरूकता, वित्तीय साक्षरता, बाल अधिकार और बाल संरक्षण, एड्स, सिकल सेल एनीमिया, टीबी और कैंसर जैसे असाध्य रोगों की रोकथाम के लिए भी एनएसएस के प्रयास किसी से छिपे नही हैं। कोविड काल का प्रतिकूल समय इस बात का गवाह है कि जब लोग चहार दिवारी में कैद था, उस समय एनएसएस स्वयंसेवक राहगीरों को भोजन वितरण कर जागरूक करने का काम कर रहे थे।
समाज कार्य के क्षेत्र में देश के अग्रणी संस्थान टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई (टिस) द्वारा एनएसएस पर किये गए एक शोध का निष्कर्ष बताता है कि एनएसएस द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य नेक इरादे और प्रगतिशील विचारों से प्रेरित रहा है। युवाओं के क्षेत्र में अनुपम प्रयोगों में से एनएसएस प्रमुख है क्योंकि जिस तरह से योजना के माध्यम से मूल्य अभिविन्यास, व्यक्तित्व विकास, कला और नेतृत्व कौशल का विकास होता है, वह किसी अन्य माध्यम से सम्भव नहीं है।
वास्तव में जब विद्यार्थी/युवा धरातल पर कार्य करता है, समुदाय की समस्याओं से अवगत होता है तब उसकी संवेदनाएं विकसित होती हैं और वे एक युवा को नेतृत्वकर्ता के रूप में गढ़ती है। इस प्रकार अपनी विशिष्ट आभा से वह स्वयंसेवक एक श्रेष्ठ मानव, सक्रिय नागरिक और निष्ठावान व्यक्तित्व बनकर समाज और देश की संपत्ति बनता है। आधी सदी की यात्रा में एनएसएस ने ऐसी अनेक विभूतियां राष्ट्र को सौंपी है। सिनेमा जगत का विख्यात नाम आशुतोष राणा हो या मीडिया जगत का सितारा दीपक चौरासिया, राजनीतिक क्षेत्र में कप्तान सिंह सोलंकी, नरेन्द्र सिंह तोमर, सुमेर सिंह सोलंकी और मीनाक्षी नटराजन आदि सभी एनएसएस की कर्मभूमि के विजयी योद्धा हैं।
इस योजना ने स्वैच्छिक स्वयंसेवा के क्षेत्र में विश्व भर का ध्यान आकर्षित किया है और समयानुसार अपनी उपलब्धियों से अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं। भारत सरकार भी रासेयो कर्मियों के सेवा कार्यों को मान्यता प्रदान करते हुए राष्ट्रीय सेवा योजना पुरस्कार से सम्मानित करती है। यही नहीं एनएसएस स्वयंसेवक राजपथ दिल्ली की गणतंत्र दिवस परेड में एकमात्र गैर-सैन्य दस्ते के रूप में अपनी कदमताल से स्वयं से पहले आप के परोपकारी भाव से समूचे विश्व को परिचित कराता है। विदेशी धरा पर युवा राजदूत बनकर जाने का सुअवसर भी युवाओं को एनएसएस से मिलता है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एनएसएस की महत्ता को समझते हुए वर्ष 2015 में इसे इलेक्टिव पाठ्यक्रम के तौर पर शामिल किया। गर्व की बात यह है कि मध्यप्रदेश ने इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाते हुए इसे शुरू भी कर दिया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में संचालित मुख्यमंत्री युवा इंटर्नशिप कार्यक्रम में एनएसएस के सर्वाधिक स्वयंसेवक (लगभग 60 प्रतिशत) चयनित हुए हैं जो जन-जन तक जाकर शासन की विभिन्न योजनाओं को पहुँचाने हेतु सारथी की भूमिका में हैं।
54 वर्ष की यात्रा की सफलता के पश्चात आज इस योजना की चुनातियों पर नजर डालना भी आवश्यक है। आधुनिकता के इस काल में जहाँ प्रदर्शन ही श्रेष्ठता का मानक है, वहाँ एनएसएस जैसी योजनाएं अपने बुनियादी उद्देश्य से भटकती प्रतीत होती हैं। एनएसएस कक्षागत न होकर मैदानी कार्यक्रम है जो स्वयंसेवक को समुदाय को समझने का अवसर देता है और समाज उत्थान हेतु कार्य करने को प्रेरित करता है, लेकिन आज कुछ अधिकारी कमरे में बैठ कर युवाओं को फोटोग्राफी और प्रदर्शन तक सीमित करने को प्रेरित कर रहे है। आज जरूरत इस बात की है कि योजना के बुनियादी भाव को प्रभावित न करते हुए इसके संरचनात्मक और कार्यात्मक पहलुओं पर सुधार कर योजना का नियंत्रण सक्षम और प्रतिबद्ध हाथों में दिया जाए। एनएसएस के 55वें वर्ष में प्रवेश में एक नए उत्साह, नई उमंग के साथ हम ऐसी आशा कर सकते हैं कि ऊर्जावान, साहसी, आत्मविश्वासी और क्षमतावान युवा निकट भविष्य में उदीयमान भारत को समृद्धता के शिखर तक अवश्य पहुचायेंगे।
(लेखक मुक्त इकाई, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के रासेयो के कार्यक्रम अधिकारी हैं)