आधा सच झूठ से ज्यादा खतरनाक

आधा सच झूठ से ज्यादा खतरनाक
वीरेंद्र सिंह परिहार

राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया के शुरू होते ही देश के सभी विरोधी दल और अपने को सेकुलर कहने वाले बुद्धिजीवियों ने यह कहना शुरू कर दिया था की मंदिर तो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से बन रहा है, के पीछे उनका कहने का आशय यह है की राम मंदिर निर्माण के पीछे संघ भाजपा विश्व हिंदू परिषद एवं अन्य हिंदूवादी शक्तियों का कोई योगदान नहीं है। तकनीकी तौर से ऊपरी तौर से देखने से यह बात सच मालूम पड़ती है कि राम मंदिर का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के चलते हुआ है, लेकिन यह एक ऐसा सच है जो झूठ से भी ज्यादा खतरनाक है।

गौर करने की बात यह है कि यदि वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार ना आई होती, तो क्या राम मंदिर का निर्माण संभव होता? इतना ही नहीं वर्ष 2017 में योगी सरकार उत्तर प्रदेश में नई होती तो भी इतनी आसानी से राम मंदिर का निर्माण और भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा इतना आसानी से क्या संभव था? जिसका उत्तर प्रत्येक समझदार व्यक्ति और राम भक्त का यही होगा कि यदि ऐसा ना होता, तो राम जन्मभूमि पर राम मंदिर अब भी एक सपना ही होता।

लोगों की याददाश्त में अच्छी तरह होगा,की जो लोग राम मंदिर निर्माण के पीछे न्यायालय को श्रेय देने की बात कर रहे हैं उनका स्वत: का रवैया राम मंदिर निर्माण को लेकर क्या था? उन्होंने जन्मभूमि में राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरी ताकत से अवरोध पैदा किया। राम मंदिर निर्माण को लेकर संघर्ष करने वाली शक्तियों को इन तत्वों ने पूरी ताकत से सांप्रदायिक और अलगाववादी और घोर मुस्लिम विरोधी घोषित कर दिया था। बराबर यह कहा गया कि प्रमाण दो कि राम यहीं पैदा हुए थे। ऐसे-ऐसे कुतर्क भी किए गए कि लोगों को मंदिर की नहीं रोटी की जरूरत है। इसीलिए राम मंदिर की जगह अस्पताल यूनिवर्सिटी से लेकर शौचालय तक बनाने की बातें कही गई। सर्वोच्च न्यायालय में यूपीए सरकार ने हलफनामा तक दिया की राम समेत रामायण के सभी पत्र काल्पनिक हैं। यहां तक कहां गया कि इसके चलते देश में गृह युद्ध का खतरा है।

लोगों की याददाश्त में यह भी अच्छी तरह से होगा की 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने के बाद भाजपा की उत्तर प्रदेश समेत तीन सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया था। इतना ही नहीं वहां पर फिर से बाबरी मस्जिद बनाने की बातें की जा रही थीं। राम मंदिर निर्माण रोकने के लिए जाने माने वकील कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में यहां तक कहा था कि राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय को 2019 के चुनाव के बाद फैसला देना चाहिए।

इसके पीछे दो निहित अर्थ थे। पहले तो यह कि किसी तरह से राम मंदिर निर्माण को टाला जाए, जैसा कि पूर्व में तरह-तरह के प्रयासों से टाला जाता रहा। दूसरी महत्वपूर्ण सोच जो इसके पीछे थी कि कहीं इसका फायदा भाजपा को लोकसभा के चुनाव में मिल जाए। जबकि भाजपा एवं हिंदुत्ववादी शक्तियों के लिए राम मंदिर आस्था और राष्ट्र के गौरव से जुड़ा प्रश्न था। असलियत में राम मंदिर निर्माण का विरोध करने के पीछे कांग्रेस पार्टी एवं दूसरी तथा कथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का आशय मात्र मुस्लिम वोट बैंक को बचाए रखने के था। उनको ऐसा लगता था कि हिंदू तो जाति-पात में विभाजित है, मुसलमान तो थोक में वोट देते हैं, इसलिए वोट राजनीति की दृष्टि से राम मंदिर निर्माण का विरोध करना ज्यादा सही कदम होगा।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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