हनुमान जयंती: युवाओं के लिए आत्म-जागरण का अवसर...

आचार्य ललितमुनि: भारतीय लोक संस्कृति एवं साहित्य में हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं, जिनका व्यक्तित्व, भक्ति, बल, बुद्धि और समर्पण का अनुपम संगम है। लोक संस्कृति में हनुमान जी इतने व्यापक हैं कि प्राचीन काल से स्वास्थ्य के प्रति सजग हर युवा हनुमान जी को अपना आदर्श मानता है और अखाड़ों में उनकी प्रतिमा को नमन करके ही अभ्यास प्रारंभ किया जाता है।
लोक संस्कृति में व्यक्ति को कोई भी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक समस्या होती है तो वह हनुमान जी की ही शरण में जाता है और उनसे कुशलता की प्रार्थना करता है और कठिनाईयों से जुझने का बल पाता है ।
वर्तमान काल में हम देखते है। कि युवाओं को शैक्षणिक दबाव, करियर की अनिश्चितता, सामाजिक अपेक्षाएं, और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी आदि अनेक समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में हनुमान जी का चरित्र एक प्रकाश स्तंभ की तरह कार्य करता है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी मार्गदर्शन प्रदान करता है।
हनुमान जी का चरित्र बहुआयामी है। उनके गुणों में बल और बुद्धि का संतुलन, भक्ति और समर्पण की गहराई, कर्तव्य के प्रति निष्ठा, और साहस की अदम्य भावना शामिल है। रामचरितमानस में हनुमान जी को श्रीराम का परम भक्त और सेवक के रूप में चित्रित किया गया है, जिनका जीवन चरित्र युवाओं को यह सिखाता है कि कैसे वे अपने जीवन में गुणों को अपनाकर कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
"अतुलितबलधामं हेमशैलाभ देहं, दनुजवनक्रशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥"
यह श्लोक हनुमान जी के बल और बुद्धि के संयोजन को उजागर करता है। आज के युवाओं के लिए यह प्रेरणा है कि वे अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को पहचानें और उनका सही उपयोग करें। आधुनिक युग में सफलता के लिए केवल शारीरिक शक्ति पर्याप्त नहीं है; बौद्धिक कुशाग्रता भी उतनी ही आवश्यक है। हनुमान जी का यह गुण युवाओं को सिखाता है कि वे अपनी शक्तियों पर विश्वास करें और उन्हें सकारात्मक दिशा में उपयोग करें।
"जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥"
यह चौपाई हनुमान जी की भक्ति और समर्पण की भावना को दर्शाती है। जामवंत के शब्दों ने उनकी शक्ति को जागृत किया, लेकिन उनका असली बल श्रीराम के प्रति उनकी अटूट भक्ति से आया। युवाओं के लिए यह संदेश है कि अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पण और विश्वास उन्हें असंभव कार्यों को भी संभव बनाने में मदद कर सकता है। हनुमान जी का यह गुण युवाओं को निराशा से उबरने और अपने उद्देश्य पर केंद्रित रहने की प्रेरणा देता है।
"हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनामु।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्रामु॥"
हनुमान जी की यह कर्तव्यनिष्ठा युवाओं को अपने दायित्वों के प्रति समर्पित रहने का संदेश देती है। आज के युग में, सोशल मीडिया और अन्य ध्यान भटकाने वाली चीजें युवाओं को उनके मुख्य लक्ष्यों से भटका सकते हैं। हनुमान जी का यह व्यवहार सिखाता है कि कर्तव्य को प्राथमिकता देनी चाहिए और उसे पूरा करने तक रुकना नहीं चाहिए। यह गुण युवाओं को समय प्रबंधन और अनुशासन की महत्ता समझाता है।
"जाता पवनसुत देवन्ह देखा। जानन काजु कीन्ह छलु ऐका॥"
हनुमान जी की यह अनुकूलनशीलता और बुद्धि युवाओं को परिस्थितियों के अनुसार ढलने की प्रेरणा देती है। आज का युग तेजी से बदल रहा है, और युवाओं को नई तकनीकों, कार्य पद्धतियों, और सामाजिक परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है। हनुमान जी का यह गुण सिखाता है कि रचनात्मक सोच और लचीलापन किसी भी चुनौती को अवसर में बदल सकता है।
"निशाचरी एक सिंधु महुं रहई। करि माया नभु के खग गहई॥"
हनुमान जी का यह साहस युवाओं को डर और असुरक्षा से लड़ने की प्रेरणा देता है। युवा अक्सर नई शुरुआत, चाहे वह नौकरी हो, उद्यमिता हो, या कोई नया क्षेत्र आदि में असफलता या अस्वीकृति से डरते हैं। हनुमान जी का यह गुण उन्हें सिखाता है कि साहस के साथ आगे बढ़ें और चुनौतियों का डटकर सामना करें। उसे असफलताओं से नहीं डरना चाहिए, बल्कि हनुमान जी की तरह निर्भय होकर प्रयास करना चाहिए।
हनुमान जी केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि युवाओं के लिए जीवन पथ प्रदर्शक हैं। उनका चरित्र संयम, सेवा, शक्ति, भक्ति, विवेक और आत्मबल का एक आदर्श संगम है। रामचरितमानस की चौपाइयाँ इन गुणों को अत्यंत सरलता और गहराई से हमारे समक्ष रखती हैं। यदि आज का युवा हनुमान जी की शिक्षाओं को आत्मसात कर ले, तो वह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर सफल हो सकता है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी प्रेरणा बन सकता है। इसलिए, हनुमान जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि युवाओं के लिए आत्म-जागरण का अवसर है।