पुरस्कारों में बरसों बाद हिन्दी सिनेमा का वर्चस्व
देश के सर्वाधिक महत्व के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह को मैं पिछले 41 बरसों से करीब से देख रहा हूँ। इन पर लगातार लिख रहा हूँ, रेडियो-टीवी के लिए कार्यक्रम कर रहा हूँ। सन 1982 से 2023 के इस दौर में कई समारोह बहुत यादगार भी रहे। साथ ही पुरस्कारों में कभी हिन्दी सिनेमा का वर्चस्व रहा तो कभी क्षेत्रीय सिनेमा का। बांग्ला, मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड और मलयालम की फिल्मों ने अपना परचम लहराकर कितनी ही बार दर्शाया कि भारत का क्षेत्रीय सिनेमा दमखम रखता है। इन पुरस्कारों में ऐसा भी हुआ जब हिन्दी और क्षेत्रीय सिनेमा दोनों ने संतुलन बनाकर अपनी-अपनी पहचान बनाई। हालांकि इस दौरान कुछ समारोह ऐसे भी हुए जिनकी चमक फीकी थी। लेकिन यदि मैं नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में कुछ दिन पूर्व आयोजित, 69 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह की बात करूँ तो इस समारोह की चमक तो तेज हुई ही साथ ही इस बार हिन्दी फिल्म उद्योग के लिए भी यह समारोह अविस्मरणीय बन गया।
भारत में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह की शुरुआत सन 1954 में हुई थी। तब इन पुरस्कारों का नाम 'राजकीय फिल्म पुरस्कारÓ था। पहला समारोह दो दिवसीय था जो 10 और 11 अक्तूबर 1954 को दिल्ली में आयोजित हुआ था। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने तब फिल्मों की तीन श्रेणियों में कुल 7 पुरस्कार दिये थे। लेकिन समय के साथ इस समारोह में काफी बदलाव होते चले गए। समारोह का नाम 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारÓ तो हुआ ही। साथ ही पुरस्कार के लिए नामित फिल्मों की श्रेणियाँ भी बढ़ती चली गईं। अब फीचर और गैर फीचर वर्ग में करीब कुल 50 श्रेणियाँ हो गयी हैं। वहाँ अब हर साल करीब करीब 100 व्यक्तियों को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने लगे हैं।
फाल्के सम्मान में महिला सशक्तिकरण: हाल ही में हुए 69 वें समारोह में हिन्दी सिनेमा के साथ दक्षिण सिनेमा के भी कई सितारों की मौजूदगी से समारोह रोशनी से चमक उठा। वहाँ इस बार इसमें कुछ बदलाव भी दिखे। यह दूसरा मौका था,जब फाल्के सम्मान लगातार दो महिलाओं को मिला। पिछली बार फाल्के सम्मान आशा पारेख को मिला था। इस बार यह सम्मान वहीदा रहमान को मिला।
यदि फाल्के समान के इतिहास को देखें तो इन पुरस्कारों की शुरुआत 1969 में हुई थी। तब पहला पुरस्कार दिग्गज अभिनेत्री देविका रानी को मिला था। लेकिन बाद में इस पुरस्कार पर धीरे-धीरे पुरुषों का कब्जा होता गया। इसकी मिसाल इससे ही मिलती है कि 1969 से 2019 तक के 51 बरसों में सिर्फ 6 महिलाओं को हो फाल्के सम्मान मिला। जबकि पिछले दो बरसों में ही दो महिलाओं और वह भी मूलत: हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्रियों को फाल्के सम्मान मिलना, महिला सशक्तिकरण के रूप में देखा जा रहा है। वहीदा, फाल्के सम्मान पाने वाली 53 वीं हस्ती हैं। साथ ही यह पुरस्कार पाने वाली देश की पहली मुस्लिम महिला भी हैं।
फाल्के पुरस्कार मिलने और अपनी वरिष्ठता और लोकप्रियता के चलते समारोह की सबसे बड़ी शान वहीदा रहमान थीं। एक दौर में वह देश की शिखर की नायिकाओं में शुमार थीं। अपनी गाइड, बीस साल बाद, प्यासा, काला बाजार, चौदहवीं का चाँद, तीसरी कसम, मुझे जीने दो, नील कमल, खामोशी, कभी कभी, त्रिशूल, रंग दे बसंती और दिल्ली-6 जैसी फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से वहीदा ने जो लोकप्रियता-प्रतिष्ठा पाई है वह किसी किसी को ही नसीब होती है। वहीदा रहमान के अलावा आलिया भट्ट, कृति सेनन, आर माधवन, पंकज त्रिपाठी, पल्लवी जोशी, श्रेया घोषाल, करण जोहर, अल्लु अर्जुन जैसे कई मशहूर कलाकार समारोह की चमक बने रहे। आलिया के साथ उनके पति और लोकप्रिय अभिनेता रणबीर कपूर भी थे। वहाँ फिल्म 'आरआरआरÓ से जुड़े कई व्यक्ति भी समारोह में थे। फिल्म 'आरआरआरÓ ने अपनी झोली में कुल 6 पुरस्कार समेट कर बाजी अपने नाम कर ली थी।
फिल्म 'आरआरआरÓ को जहां लोकप्रिय और स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने वाली सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला। जिसे फिल्मकार एसएस राजामौली लेने मंच पर पहुंचे तो सभागार तालियों से गूंज उठा। फिल्म 'बाहुबलीÓ के बाद से राजा मौली दक्षिण के साथ हिन्दी सिनेमा में भी अच्छे खासे लोकप्रिय हो गए हैं। वहाँ सर्वश्रेष्ठ संगीत (बैकग्राउंड स्कोर) के लिए यह पुरस्कार एमएम किरवानी को मिला। किरवानी ने फिल्म 'आरआरआरÓ के नाटू नाटू के लिए ऑस्कर अवार्ड भी स्वयं ग्रहण किया था। साथ ही सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का पुरस्कार भी काल भैरव को मिला और सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन, एक्शन और स्पेशल इफेक्ट के लिए भी 'आरआरआरÓ सफल रही। जबकि सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार श्रेया घोषाल को मिला।
फिल्म 'आरआरआरÓ के बाद फिल्म 'पुष्पाÓ भी एक ऐसी फिल्म थी जो दक्षिण के साथ हिन्दी में भी खूब चली। समारोह में 'पुष्पाÓ को भी दो पुरस्कार मिले। एक इसके नायक अल्लु अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का। दूसरा फिल्म के संगीत के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का देवी श्री प्रसाद को। इन दोनों की भी समारोह में अच्छी धूम रही। लेकिन दक्षिण के साथ हिन्दी सिनेमा की चमक भी देखते ही बनती थी।
हिन्दी सिनेमा का वर्चस्व
असल में पिछले 68 वें पुरस्कार समारोह में हिन्दी सिनेमा नेपथ्य में चला गया था। फीचर फिल्मों की विभिन्न 28 श्रेणियों में हिन्दी फिल्मों को मात्र 4 पुरस्कार मिले थे। उनमें से भी तीन पुरस्कार सिर्फ एक फिल्म 'तानाजीÓ की बदौलत मिले थे। यदि 'तानाजीÓ किसी कारण वश गत वर्ष प्रतियोगिता में नहीं होती तो हिन्दी सिनेमा के हिस्से सिर्फ एक ही पुरस्कार आता। लेकिन इस बार हिन्दी सिनेमा सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा। समारोह में दो फिल्मों 'गंगूबाई काठियावाड़ीÓ और 'सरदार ऊधमÓ ने तो पाँच-पाँच पुरस्कार जीतकर हिन्दी सिनेमा का गौरव बढ़ा दिया। उधर 'मिमीÓ और 'द कश्मीर फाइल्सÓ को भी दो- दो पुरस्कार मिले।
संजय लीला भंसाली की 'गंगूबाई काठियावाड़ीÓ को जहां सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए आलिया भट्ट को पुरस्कार मिला। वहाँ सर्वश्रेष्ठ पटकथा, सर्वश्रेष्ठ संवाद, सम्पादन और मेकअप के लिए 4 अन्य पुरस्कार मिले। ऐसे ही फिल्म 'सरदार ऊधमÓ को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का पुरस्कार तो मिला ही साथ ही छायांकन, ध्वनि आलेखन, प्रॉडक्शन डिजायन, वेशभूषा श्रेणी में भी सर्वश्रेष्ठ रहने के पुरस्कार मिले। समारोह में जिस एक ओर हिन्दी फिल्म की गूंज रही वह थी 'मिमीÓ। फिल्म 'मिमीÓ की नायिका कृति सेनन ने अपने इस फिल्म में किए गए शानदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार आलिया भट्ट के साथ साझा किया। वहीं सर्वश्रेष्ठ गायिका के लिए श्रेया घोषाल को यह पुरस्कार तेलुगू फिल्म के लिए मिला।
इन पुरस्कारों की बड़ी बात यह भी रही कि सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के साथ सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता और सहायक अभिनेत्री के दोनों सम्मान हिन्दी सिनेमा को मिले। पंकज त्रिपाठी को 'मिमीÓ के लिए और पल्लवी जोशी को 'द कश्मीर फ़ाइल्सÓ के लिए। सहायक अभिनेता का पुरस्कार तो हिन्दी सिनेमा को 7 साल बाद मिला है।उधर वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का स्वर्ण कमल भी कई बरस बाद हिन्दी फिल्म 'रॉकेट्रीÓ की झोली में आया है। साथ ही राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म का नर्गिस दत्त पुरस्कार तो 11 साल बाद 'द कश्मीर फ़ाइल्सÓ से, हिन्दी सिनेमा को मिला है। जबकि सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का पुरस्कार गुजराती फिल्म 'Óलास्ट फिल्म शोÓ के लिए बाल कलाकार भाविन रबाड़ी को मिला। बड़ी बात यह है कि भाविन की यह पहली फिल्म है। जो ऑस्कर समारोह के लिए भी गयी। अपनी पहली ही फिल्म से भाविन ने सभी का दिल जीत लिया है।
फिल्म समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर की विनम्रता भी सभी का दिल मोहती रही। उधर सितारों की वेशभूषा भी सभी का आकर्षण बनती रही। वहीदा रहमान, कृति सेनन और आलिया तीनों ही सफेद रंग की वेशभूषा में थीं। जब ये तीनों साथ रहे तो इनके वस्त्रों की छटा बेहद खूबसूरत लग रही थी। राष्ट्रपति के साथ इन महिला शक्तियों ने जब अपने चित्र खिंचवाए तो भी इनकी वेषभूषा अलग ही चमक रही ही। इनके साथ गायिका श्रेया घोषाल लाल रंग की साड़ी में सादगी और सौंदर्यता का संगम बनी थीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक हैं)