हिंदी दिवस और युवा पीढ़ी
हिन्दी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है, जो हमें हिंदी भाषा के महत्व की याद दिलाता है। संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया, इसीलिए भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि आज की युवा पीढ़ी हिंदी दिवस और हिंदी भाषा को कैसे देखती है? आज के डिजिटल युग में, जब अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं का प्रचलन बढ़ रहा है, हिंदी भाषा की स्थिति और उसकी महत्व को समझना जरूरी है। आज के युवा के लिए हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है, बल्कि यह उनकी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। फिर भी, कई युवा हिंदी को उनके पेशेवर जीवन में सीमित मानते हैं और इसे उनके व्यक्तिगत जीवन से अलग रखते हैं। हालांकि, युवा पीढ़ी हिंदी भाषा को डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रमोट करने में सक्रिय भूमिका निभा रही है। सोशल मीडिया पर हिंदी में लिखे गए ब्लॉग्स, कविता और कहानियाँ युवा पीढ़ी के इस नए उत्साह को दर्शाते हैं।
हिंदी दिवस के अवसर पर, हमें इसे सिर्फ एक दिवस के रूप में मनाने की बजाय, युवा पीढ़ी को हिंदी के महत्व को समझाने का प्रयास करना चाहिए। हिंदी भाषा को आधुनिक जीवन में एक नई दिशा और आकार देने का जिम्मा आज की युवा पीढ़ी के कंधों पर है। आज की युवा पीढ़ी को हिंदी दिवस के माध्यम से हिंदी भाषा के महत्व को फिर से अहसास करवाने की जरूरत है। हमें युवाओं को प्रोत्साहित करना है ताकि वे हिंदी भाषा को उनके जीवन के हर क्षेत्र में शामिल कर सके।
आज के युवक को समझना होगा कि हिंदी भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुकी है। हम उस समय को नहीं भूल सकते जब 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 32वें सत्र के दौरान भारतीय राजनीतिक जगत के महानायक और तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सयुंक्त राष्ट्र में अपना पहला सम्बोधन हिंदी में दिया। उस समय, उन्होंने भारत की अक्षम्य इच्छाओं की दहलीज पार करते हुए, हिंदी भाषा की शक्ति और सामर्थ्य को संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर प्रकट किया। इस कदम ने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दिलाई और इसका स्वागत भी सर्वत्र किया गया। इससे हिंदी भाषा की वैश्विक महत्व की पहचान हुई। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी भाषा का महत्व निरंतर बढ़ रहा है। 2019 में मनाया गया विश्व हिंदी दिवस भी भारत के लिए एक यादगार पल बन गया। इस दिवस को और भी विशेष बना दिया गया जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिंदी प्रेमियों के लिए हिंदी में एक नई न्यूज़ वेबसाइट का शुभारंभ किया। इस पहल से हिंदी भाषा ने एक नई मान्यता प्राप्त की, जिससे इसे एक अद्वितीय सम्मान मिला। हिंदी अब सिर्फ भारतीय भाषा नहीं रही, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अपनी पहचान बना रही है। बॉलीवुड ने भी हिंदी भाषा को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया। हिंदी फिल्में अब न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में देखी जाती हैं, और उनमें उपयुक्त हिंदी भाषा के माध्यम से भारतीय संस्कृति का प्रसार होता है। हिंदी दिवस हमें एक मौका प्रदान करता है अपनी भाषा और सांस्कृतिक मूल्यों को मनाने और पुनरावलोकन करने का। यह उन युवाओं को प्रेरित करने का समय है जो अक्सर ग्लोबलाइजेशन और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आकर अपनी मूल सांस्कृतिक पहचान से दूर हो जाते हैं। आज के समय में जब अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाएँ हमारे जीवन के कई क्षेत्रों में प्रमुखता प्राप्त कर रही हैं, हिंदी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपनी मातृभाषा का सम्मान करना चाहिए और उसे जीवंत रखने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। हिंदी भाषा ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिंदी कवियों और लेखकों के कार्यों ने लोगों में देशभक्ति और स्वतंत्रता की भावना को उत्तेजित किया। हिंदी भाषा में लिखे गए काव्य, कहानियाँ, उपन्यास, नाटक आदि ने लोगों को सत्याग्रह, असहमति और स्वतंत्रता की मूल भावनाओं के प्रति जागरूक किया। इसी तरह, हिंदी साहित्य में जैसे कि तुलसीदास के 'रामचरितमानस, प्रेमचंद की कहानियाँ, महादेवी वर्मा की कविताएँ आदि ने हमारी सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट किया और हमें अपनी मूल पहचान के प्रति गर्वित किया। हिंदी भाषा न केवल भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि यह हमें जोड़ने वाली एक मजबूत डोर भी है।
हिंदी दिवस के इस विशेष दिन पर हमें इसे और भी अधिक संवारने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हिंदी के साथ हमारा संबंध न केवल शब्दों तक ही सीमित रहे, बल्कि यह हमारे दिल और आत्मा से भी जुड़ जाए। हिंदी को हमें आने वाली पीढ़ी और आज के युवा के मन की भाषा बनाना होगा। हिंदी हमारे मन, आत्मा और हमारी संस्कृति की अद्वितीय भाषा है। हमें इस भाषा के प्रति अपनी समर्थन और प्रेम को दोहराना चाहिए और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संकल्प लेना चाहिए।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)