बोतल में बंद आप की ईमानदारी

बोतल में बंद आप की ईमानदारी
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प्रदीप औदिच्य

ईमानदारी की दुकान का एक मात्र साइन बोर्ड दिल्ली की आप के पास है। अब उस दुकान में रखे गए कुछ पुतलों से ईमानदारी का मेकअप झड़ रहा है। ईमानदारी पहले देश भर में फैली हुई थी। लेकिन उसके लाइसेंस देने का काम किसी भी राजनीतिक दल के पास नहीं थे। अब दिल्ली के अन्ना आंदोलन से बायो प्रोडक्ट के रूप में निकली राजनीति ने ईमानदारी का प्रमाण पत्र देने का ठेका अवैध रुप से हथिया लिया।

अब वह देश भर के अफसर, नेताओं को ईमानदार होने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं। ईमानदार के प्रमाण पत्र उन्होंने बड़ी मात्रा में छाप रखे हंै, जिसको चाहते हंै उसको दे देते हैं।

पहले तो उन्होंने अपने ही लोगों को बिना किसी प्रमाण के ईमानदार घोषित कर लिया।

हर अदालत, जांच एजेंसी से कह दिया आप लोग चिंता मत करो, हमने हमारी जांच कर ली। हम बहुत ईमानदार हैं। अधिक प्रमाण पत्र छापने के लिए उन्हें पैसे की जरूरत पड़ी। पैसा तो उनके पास था ही नहीं, सोचने लगे कहां से लाएं? इसी चिंता में आप नेताओं ने दारू पीने की सोची। दारू पीते-पीते ध्यान आया कि हम इसी दारू को दिल्ली से जल्दी खत्म करेंगे। यही बेईमानी सिखाती है, इसलिए दारू से ही पैसे निकालेंगे।

हम सड़क बनाने, स्कूल बिल्डिंग बनाने में समझौता नहीं करेंगे, दारू सामाजिक बुराई है। इसको खत्म करने इसी से अधिक पैसा कमाए और ईमानदारी के प्रमाण पत्र बांटे।

दारू दिल्ली में बिकी, इतनी बिकी कि एक के साथ एक फ्री हो गई। गली-गली दारू की दुकानें थी, वहीं थी मोहल्ला क्लिनिक। खाली मोहल्ला क्लिनिक में बैठो और एक बोतल के साथ एक फ्री पाओ। फ्री वाली बोतल दोस्तों में बांटो पुण्य कमाओ।

पुण्य कमाने के लिए ही सरकार ने दारू योजना में गोल-माल किया। जब दारू बेचकर ठेकदार रुपए कमा सकता है। तब उसी ठेकेदार से अपना हिस्सा लेना कोई घोटाला नहीं है।

दारू पीने के लिए दो तीन लोग एक साथ बैठते हैं इसी तरीके से दारू की कमाई भी दो तीन नेता बांट लें।

बोतल में कभी जिन्न बंद रहता था, अब आप के नेता बंद हो रहे हैं। कुल जमा दस बड़े नेताओं में से तीन जेल में हैं, ताश खेलने के लिए एक की और जरूरत है, वह भी जल्दी जेल में जाएंगे।

जेल में जेल संभालने वाले पहले गए। फिर स्कूल बनाने वाले, इसके बाद टिकिट बेचने वाले।

जेल में इतने आप नेता हंै, मानो वह जेल ना होकर पार्टी का दफ्तर हो।

ईमानदारी बाहर खड़ी है। ईमानदारी की क्रीम चेहरे पर लगाने वाले जेल के अंदर हैं।

पिछले कई सालों में ईमानदारी का नाम इतनी बार लिया गया कि उसको आने वाली हिचकियां भी बंद हो गई। ईमानदारी की कसम खाई हम पैसा नहीं लेंगे... उन्होंने सीधे नहीं लिया, उन्होंने कंपनी में भागीदारी की।

उन्होंने कहा हमें बड़ा घर नहीं चाहिए। उन्होंने घर नहीं लिया... बड़ा बंगला लिया।

इसलिए उनकी अपनी निजी ईमानदारी बेहद ईमानदार है, जिस तरह उन्होंने खुद की पार्टी बनाई। उस तरह ही अपने प्रत्येक नेता की खुद की बनाई ईमानदारी है।

वह जब चाहते हंै उसे अलमारी में रख देते हंै, जब जरूरत पड़ती है तब उसे निकालकर झाड़ पोंछ कर सबके सामने पेश कर देते हैं।

जांच एजेंसी को इतना समझना चाहिए कि दारू खराब चीज है, खराब चीज से पैसा कमाना बुरा नहीं है।

झूठ बोलना भी बुरा नहीं है, क्योंकि बुराई को छिपाने के लिए बोला गया झूठ, झूठ नहीं होता।

दिल्ली सरकार चलाने में कुछ ऊंच नीच हो गई तो कह देंगे... देखो जी जब दारू पी कर गाड़ी चलाने में गाड़ी इधर-उधर बहकती है। इसी तरह अगर दारू की कमाई से नेता इधर-उधर बहक गए तो हमारी कोई गलती नहीं है।

कहते है कि वोटर एक बोतल में बिक जाता है, ये सही भी है। गांव क्या नगर क्षेत्र में भी वोटर शराब की बोतल देख कर वोट देता है, पर यहां तो पूरी की पूरी सरकार ही बोतल में बिक गई। आम आदमी पार्टी ने अपनी ईमानदारी को दुकान से हटा कर बोतल में बंद कर दिया है, जब जरूरी होगी तब निकालते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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