नागपुर से संघ विरोध की कांग्रेस की रणनीति कितनी उचित

नागपुर से संघ विरोध की कांग्रेस की रणनीति कितनी उचित
अवधेश कुमार

कांग्रेस पार्टी ने 139 वें स्थापना दिवस पर नागपुर में रैली का आयोजन कर अपनी दृष्टि से विचारधारा के विरुद्ध प्रचंड युद्ध का संदेश देने की कोशिश की। नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है, इसलिए बताने की आवश्यकता नहीं कि स्थापना दिवस की रैली के लिए उस स्थान का चयन क्यों किया गया। राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि भाजपा की सत्ता के जरिए आरएसएस देश को गुलामी की ओर ले जा रहा है। भाजपा से कांग्रेस का विरोध राजनीतिक नहीं वैचारिक है और इस आंदोलन में आम आदमी को साथ देना होगा। आरएसएस और भाजपा के लोग संविधान के खिलाफ थे, वे संविधान विरोधी है। सालों तक जिन्होंने तिरंगे को सलाम नहीं किया वह अब देशभक्ति की बात करने लगे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि नागपुर में दो विचारधाराए हैं। एक डॉक्टर बीआर अंबेडकर की जो प्रगतिशील है और दूसरी आरएसएस की जो देश को नष्ट कर रही है। कई नेताओं के बयान भी इसी लाइन पर थे जो स्वाभाविक था। जब नागपुर में 'हैं तैयार हमÓ के नाम से रैली होगी तो भाषण का स्वर स्वाभाविक ही ऐसा ही होगा। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में वर्तमान कांग्रेस लगातार यह प्रदर्शित कर रही है कि वह आरएसएस और उसकी विचारधारा के विरुद्ध लड़ाई लड़ रही है, क्योंकि उसके अनुसार यह लोकतंत्र के साथ मजहबी विविधता तथा सांस्कृतिक एकता के विरोधी हैं। राहुल गांधी ने कहा भी कि भाजपा की विचारधारा राजा - महाराजाओं की विचारधारा है जो किसी की नहीं सुनते और जहां ऊपर से आदेश आता है तो हर किसी को उसका पालन करना होता है। ये लोग देश को गुलामी के युग में वापस ले जाना चाहते हैं। इस तरह संदेश यही था कि कांग्रेस अपने स्थापना दिवस पर संघ को उसके गढ़ में चुनौती देने आई है। प्रश्न है कि इसके मायने क्या हैं?

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस न्याय यात्रा शुरू कर रही है जो उसकी भारत जोड़ो यात्रा का भाग है। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी इसी तरह का वक्तव्य और भाषण देते थे। एक बार आरएसएस के खाकी निकर वाले पुराने गणवेश में आग लगाते हुए चित्र को ट्वीट भी किया गया था। राहुल गांधी के वर्तमान सलाहकार और उनकी देश-विदेश की यात्राओं तथा कार्यक्रमों के रणनीतिकार भी लगातार यही संदेश दे रहे हैं कि देश में संघ और भाजपा की विचारधारा के विरुद्ध संघर्ष चल रहा है जिसकी अगुवाई कांग्रेस कर रही है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन्हीं लोगों के सुझाव पर नागपुर में रैली का आयोजन किया गया होगा। कांग्रेस के सारे वक्तव्य बता रहे हैं कि वह मानती है कि लोकसभा चुनाव 2024 को वैचारिक युद्ध घोषित कर भाजपा को हरा सकती है। क्या ऐसा संभव है? क्या राहुल गांधी, खरगे या कांग्रेस के नेताओं ने जो कुछ कहा उन्हें संघ और भाजपा के विरुद्ध वैचारिक संघर्ष माना जाए? क्या इसके लिए नागपुर में ही रैली किया जाना आवश्यक था? किसी भी संगठन को दूसरे संगठनों से असहमत होने, मतभेद रखने और विरोध करने का अधिकार है। इसके लिए भी उस संगठन को गहराई से समझना आवश्यक है। राहुल गांधी के रणनीतिकारों ने अगर मान लिया है कि संघ के विरोध में ही उनका राजनीतिक पुनउर्द्भव निहित है तो उसके लिए भी ग्राउंड वर्क और उसके अनुरूप रणनीति जरूरी है। राहुल गांधी सहित कांग्रेस के नेताओं के भाषणों व वक्तव्यों से साफ है कि वो सुनी-सुनाई और बनी-बनाई धारणाओं के आधार पर ही स्वयं को संघ परिवार से वैचारिक युद्ध का योद्धा साबित करने पर तूले हैं। संघ के सांगठनिक ढांचे व कार्यशैली की समझ रखने वालों के लिए उसको चुनौती देने का संदेश देने के लिए नागपुर में रैली करना अपरिहार्य नहीं हो सकता। कांग्रेस के स्थापना काल से कई महत्वपूर्ण अधिवेशन और रैलियां नागपुर में हुए हैं। इसके पहले शायद ही उसका लक्ष्य नागपुर से संघ को चुनौती देना बताया गया हो। संघ पर अध्ययन करने वाले जानते हैं कि इसका मुख्यालय नागपुर है लेकिन उनके ज्यादातर केंद्रीय पदाधिकारियों का केंद्र देश के अलग-अलग जगहों पर हैं। उदाहरण के लिए संघ के सरकार्यवाह, जो सर संघचालक के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं और आधुनिक शब्दावली में व्यावहारिक रूप में संघ के मुख्य कार्यकारी माने जा सकते हैं, उनका केंद्र लखनऊ है। ऐसे ही दूसरे पदाधिकारीयों का है। अलग-अलग कार्यों के लिए भी केंद्र देश के दूसरे स्थान पर हैं। संघ की नियमित राष्ट्रीय बैठकों का भी विवरण देखें तो ज्यादातर देश के दूसरे भागों में ही आयोजित होते हैं। यह भी नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के दोनों कार्यकाल में मंत्रियों को नागपुर मुख्यालय में उपस्थिति दर्ज करने जाते देखा गया हो।?

अगर वाकई ऐसा कोई भी संकेत दिखता कि भाजपा और सरकार की गतिविधियों की डोर नागपुर है, सरकार के मंत्री अधिकारी अलग-अलग नीतियों और कार्यक्रमों के लिए नागपुर का चक्कर लगाते दिखते? तो उसकी लगातार चर्चा होती। वैसे में शायद कुछ समय के लिए लगता कि वहीं से चुनौती दी जाए। ऐसा दिखा नहीं। माहौल ऐसा बनाया गया मानो नागपुर कोई ऐसा दुर्ग है जहां चुनौती देने से ही कांग्रेस को संघ विरोध का? सेहरा मिल सकता है। यही स्थिति विचारधारा के मामले में भी है। राहुल गांधी सहित दूसरे नेताओं ने वही बातें बोली जो जो पहले से बोली जाती रही हैं और इससे संघ का कार्य विस्तार अप्रभावित रहा है। उदाहरण के लिए राहुल गांधी संघ पर तिरंगे झंडे की सलामी न लेने का आरोप लगाते हैं। संघ पर निष्पक्षता से अध्ययन करने वालों ने लिखा है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1929 में पूर्ण स्वराज की घोषणा के बाद संघ के तत्कालीन सरसंचालक डॉक्टर हेडगेवार ने सभी शाखाओं पर 26 जनवरी, 1930 को तिरंगा झंडा फहराने का निर्देश जारी किया और ऐसा ही हुआ। संघ कहता है कि शाखाओं पर लगने वाला भगवद्ध्वज भारत का सांस्कृतिक ध्वज है और भारत राष्ट्र-राज्य राज्य का ध्वज तिरंगा ही है। फैलाए गए झूठ के आधार पर आप विरोध करेंगे तो उसे जानकार लोग प्रभावित नहीं होंगे।

बाबा साहब अंबेडकर का नाम लेने वाले कांग्रेस के लोग यह न भूलें कि उन्होंने संघ विरोध में ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसके आधार पर कोई पुस्तिका भी तैयार की जा सके। ठीक इसके विपरीत कांग्रेस के विरुद्ध उनकी कई पुस्तकें हैं। बाबा साहब ने राजनीति में अपनी मुख्य लड़ाई ही कांग्रेस के विरुद्ध लड़ी। बाबा साहब ने कहीं एक शब्द भी कांग्रेस की प्रशंसा में लिखा हो उसे राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों को अवश्य उद्धृत करना चाहिए। बाबा साहब का संघ से कुछ वैचारिक असहमति स्वीकार करने में समस्या नहीं है, पर सच यही है कि उन्होंने कभी आज के कुछ अंबेडकरवादियों की तरह उसके विरुद्ध न लिखा न बोला। सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ही बाबा साहब से जुड़े देश-विदेश के पांच प्रमुख स्थानों का आकर्षक पुनर्निर्माण कराया तथा उनसे जुड़े कार्यक्रमों को भव्य व्यापक स्वरूप प्रदान किया। इसमें यदि कांग्रेस के नेता नागपुर जाकर स्वयं को बाबा साहब का समर्थक साबित करें तो जानकार लोग उसे कैसे स्वीकार कर लेंगे? इससे देश भर के दलित संघ और भाजपा के विरुद्ध तथा कांग्रेस के समर्थक हो जाएंगे इसकी कल्पना वही कर सकते हैं जिन्हें जमीनी वास्तविकता का आभास नहीं हो।

इस तरह कांग्रेस ने नागपुर रैली आयोजित कर फिर अपनी अपरिपक्वता तथा आवश्यक गहरी समझ के अभाव को दयनीय तरीके से उद्घाटित किया है। इतने विरोध के बावजूद संघ ने आरोपी का उत्तर देने या इनके खंडन करने तक की आवश्यकता नहीं समझी। से भी कांग्रेस या अन्य विरोधी हर दिन संघ की जितनी आलोचना करते हैं सामान्यत: संघ पलट कर उनका उत्तर देने या खंडन करने नहीं आता। इससे भी संघ के संस्कार और चरित्र को समझा जा सकता है। कांग्रेस संघ और भाजपा का विरोध करती है, उनको खलनायक भी साबित करने की कोशिश करती है, पर इसके समानांतर अपना विजन और दृष्टिकोण व्यापक स्तर पर कभी प्रस्तुत नहीं करती। नागपुर में भी राहुल गांधी और अध्यक्ष के रूप में खड़गे अगर विस्तार से बताते कि भारत के बारे में उनके सपना क्या हैं , वह कैसी अर्थव्यवस्था चाहते हैं , सभ्यता -संस्कृति -अध्यात्म -समाज व्यवस्थाआदि की उनके रूपरेखा क्या है तो शायद कुछ प्रभाव पड़ता। लोग संघ, भाजपा तथा कांग्रेस के विजन और दृष्टिकोण की तुलना भी करते। केवल संघ और भाजपा विरोध से कांग्रेस का जनाधार विस्तृत होगा ऐसी सोच ही निरर्थक है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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