बांग्लादेश चुनाव में कैसे दखल दे रहा अमेरिका?

बांग्लादेश चुनाव में कैसे दखल दे रहा अमेरिका?
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अरुण आनंद

बांग्लादेश अगले साल 7 जनवरी को अपने 12वें संसदीय चुनाव के लिए तैयारी कर रहा है, जिसे जातीय संसद के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) ने चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है जिससे बांग्लादेश में एक राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। विपक्ष की मांग है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो, यह सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान सरकार चुनाव आयोग के बजाय तटस्थ कार्यवाहक सरकार के तहत चुनाव करवाए। हालाँकि चुनाव किसी भी संप्रभु राष्ट्र का आंतरिक मामला माना जाता है, लेकिन ढाका के मामले में ऐसा नहीं लगता है।

2022 के बाद से, बाहरी तत्व, मुख्य रूप से पश्चिमी देश, बांग्लादेश की चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रहे हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका इसमें सबसे आगे है। बांग्लादेश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की मांग के बीच 28 अक्टूबर को वहां हुई हिंसा के बाद, अमेरिका ने 'चिंताÓ व्यक्त की है, और इस घटना की राजनीतिक हिंसा के रूप में 'निंदाÓ की है, जबकि यूरोपीय संघ (ईयू) ने इसपर गहरा दु:ख जताया है। सात देशों — ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, कोरिया गणराज्य, नॉर्वे, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका— ने एक संयुक्त बयान जारी कर हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की है। सवाल यह है कि पश्चिमी देश बांग्लादेश के चुनाव में दखल क्यों दे रहे हैं?

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, कुछ भी शून्य में नहीं होता है और किसी भी संप्रभु राष्ट्र द्वारा कोई भी कार्रवाई बिना स्वार्थ के नहीं की जाती है। 'लोकतंत्रÓ स्थापित करने के लिए अन्य देशों (लीबिया, इराक, अफगानिस्तान, दक्षिण वियतनाम, कुछ नाम) में अमेरिका का हस्तक्षेप इसके उदाहरण हैं। अब जब अमेरिका बांग्लादेश में उसी बयानबाजी का उपयोग कर रहा है तो वह लगातार बांग्लादेश के चुनाव को 'स्वतंत्र और निष्पक्षÓ बनाने की आवश्यकता पर जोर दे रहा है। यह बांग्लादेश में वाशिंगटन के वास्तविक इरादे और हितों के बारे में चिंता पैदा करता है। ऐतिहासिक रूप से, अमेरिका शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में स्वतंत्र बांग्लादेश के निर्माण के पक्ष में नहीं था और उसने खालिदा जिया और उनकी पार्टी बीएनपी के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं। 2007 में बीएनपी और अवामी लीग के बीच समझौता कराने में अमेरिका एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बीएनपी के नेतृत्व वाली सरकार को इस्तीफा देना पड़ा और 2009 में शेख हसीना सत्ता में आईं। पिछले दो चुनावों (2014 और 2018) में बांग्लादेश में अमेरिका ने चुनाव परिणामों के बारे में 'निराशाÓ और 'चिंताÓ व्यक्त की। फिर भी इसने हसीना सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से काम करना जारी रखा। हालाँकि इस चुनाव में अमेरिका के रुख और लहजे में बदलाव देखने को मिला है। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका द्वारा उठाए गए कई कदमों से यह भी पता चलता है कि यह कोई बदलाव अचानक नहीं आया है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश आर्थिक रूप से अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर है। अमेरिका बांग्लादेश में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक, तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और बांग्लादेश के तैयार कपड़ों का सबसे बड़ा बाजार और बांग्लादेश के ऊर्जा क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेशक है। इसके अलावा, बांग्लादेश, एशिया में अमेरिकी सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता और शिक्षा, अनुसंधान और बौद्धिक संपदा के क्षेत्र में अग्रणी सहयोगी भी है। ढांचागत परियोजनाओं में बढ़ते चीनी निवेश को वाशिंगटन ढाका का बीजिंग की ओर बढ़ता झुकाव मानता है। बांग्लादेश की रणनीतिक स्थिति इसे हिंद—प्रशांत यानी इंडो पैसिफिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है, और इसलिए, यह दो प्रमुख प्रतिस्पर्धी शक्तियों —अमेरिका और चीन— के प्रभाव का लक्ष्य बन गया है। साल 2020 में, तत्कालीन अमेरिकी उप विदेश मंत्री ने ढाका को क्वॉड में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया और वह चाहते थे कि वह 2022 की शुरुआत में स्थापित इसकी इंडो-पैसिफिक रणनीति का हिस्सा बने। हालाँकि, ढाका ने क्वॉड जैसे किसी भी सैन्य गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया। इस बीच, 2021 में, तत्कालीन चीनी राजदूत ने बांग्लादेश को किसी भी सैन्य गठबंधन में शामिल होने को लेकर चेतावनी दी क्योंकि इससे (चीन-बांग्लादेश) द्विपक्षीय संबंधों को 'पर्याप्त नुकसानÓ होगा। इस पर ढाका ने दो टूक जवाब दिया कि 'हम अपनी विदेश नीति खुद तय करते हैंÓ। इस प्रकार, बांग्लादेश ने दो प्रमुख प्रतिस्पर्धी शक्तियों के बीच सौहार्दपूर्ण और संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश की।

बांग्लादेश और अमेरिका के बीच संदेह और अविश्वास अवामी लीग सरकार के खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना और देश के लोकतंत्र के मुद्दों पर इसकी तीव्र मुखरता के कारण उत्पन्न हुआ है। 2021 में, अमेरिका ने बांग्लादेश के विशिष्ट अर्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) पर प्रतिबंध लगाया और इसके सात वर्तमान और पूर्व सदस्यों को उनकी कथित न्यायेतर हत्याओं और लोगों के गायब होने के लिए दोषी ठहराया है। दिसंबर 2022 में, बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने घरों का दौरा किया और जबरन गायब किए जाने के पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की, जिसमें बीएनपी नेता सजेदुल इस्लाम सुमोन का घर भी शामिल था। हास की कार्रवाइयों पर अवामी लीग के नेताओं की प्रतिक्रिया शुरू हो गई जिन्होंने हास पर बीएनपी का समर्थन करने और देश के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया। वाशिंगटन ने दिसंबर 2021 और मार्च 2023 में अपने लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में बांग्लादेश को आमंत्रित करने से परहेज किया। फरवरी में, अमेरिकी विदेश विभाग के सलाहकार डेरेक चॉलेट ने चिंता व्यक्त की कि बांग्लादेश में लोकतंत्र के क्षरण से वाशिंगटन का ढाका के साथ सहयोग सीमित हो जाएगा। अप्रैल में बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन की वाशिंगटन यात्रा के दौरान, अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने मोमेन को चेतावनी दी थी कि दुनिया अगले चुनाव के लिए बांग्लादेश की ओर देख रही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बांग्लादेश स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का एक मजबूत उदाहरण स्थापित करे। ये चेतावनियाँ मई में तब क्रियान्वित हुईं जब अमेरिका ने बांग्लादेशी नागरिकों के लिए एक नई वीज़ा नीति की घोषणा की, जिसके तहत वाशिंगटन उन व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्यों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठाने होंगे जो बांग्लादेश में लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को कमजोर करने के लिए ज़िम्मेदार हैं, या इसमें शामिल हैं। हाल ही में, अमेरिका ने विश्व स्तर पर श्रमिक सशक्तिकरण, अधिकार और उच्च श्रम मानकों को आगे बढ़ाने पर एक राष्ट्रपति ज्ञापन पेश किया, जो अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में जाए बिना किसी भी देश पर प्रतिबंध, जुर्माना और वीजा प्रतिबंध लगाने की अनुमति देगा, जिससे बांग्लादेश के लिए चिंता बढ़ गई है।

बांग्लादेश अमेरिका की चेतावनियों और कार्रवाइयों पर मूकदर्शक नहीं बना रहा। अप्रैल में, शेख हसीना ने अमेरिका पर बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का प्रयास करने का आरोप लगाया, जो एक 'अलोकतांत्रिक कार्रवाईÓ है, जिसके तहत 'वे (अमेरिका) लोकतंत्र को खत्म करने और एक ऐसी सरकार लाने की कोशिश कर रहे हैं जिसका कोई लोकतांत्रिक अस्तित्व नहीं होगा।Ó बांग्लादेश के अधिकारियों द्वारा अमेरिका में लोकतंत्र में कमज़ोरी की ओर इशारा करते हुए और अमेरिका को 'पाखंडियों का एक समूहÓ बताते हुए कहा गया कि वह लोकतंत्र पर बांग्लादेश को उपदेश देने की स्थिति में नहीं है। विश्व बैंक के साथ साझेदारी के 50 साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए अप्रैल के अंत में वाशिंगटन डीसी की उनकी यात्रा के दौरान हसीना की टिप्पणियों ने अमेरिका के असंतोष को दर्शाया, जब राष्ट्रपति बाइडेन के प्रशासन के किसी भी अधिकारी ने उनसे मिलने के लिए समय नहीं निकाला। दूसरी ओर, अमेरिका द्वारा लगाए गए वीज़ा प्रतिबंधों पर ढाका की प्रतिक्रिया से पता चला कि उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी। इस बीच हसीना सरकार ने स्वतंत्र चुनाव कराने, चुनावी प्रक्रिया पर कड़ी निगरानी रखने और चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों द्वारा भी चुनावी प्रक्रिया पर कड़ी निगरानी रखने का वादा दोहराया था।

साफ है कि अमेरिका बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए हस्तक्षेप कर रहा है। हाल ही में देश में चुनावी परिदृश्य पर जारी की गई यूएस-आधारित ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि हसीना सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को जेलों में डाल रही है। अपने रणनीतिक हितों को पूरा करने के लिए, अमेरिका अप्रत्यक्ष रूप से जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामी कट्टरपंथियों को भी राज्य हिंसा के शिकार के रूप में पेश कर रहा है जो विपक्ष में हैं। इस तरह की रणनीति ने बांग्लादेश में राजनीतिक संकट को और बढ़ा दिया है। इतिहास गवाह है कि 1989 में मुजाहिदीन लड़ाकों को अमेरिका के समर्थन के कारण अफगानिस्तान को उन दुष्परिणामों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण तालिबान का उदय हुआ। लोकतंत्र को बढ़ावा देने की आड़ में अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाना अमेरिका की पुरानी रणनीति रही है। इसलिए, बांग्लादेश के चुनाव में अमेरिकी हस्तक्षेप को चिंता की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।

(लेखक चिंतक एवं विचारक हैं)

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