हाइड्रोजन: भविष्य का हरित ऊर्जा ईंधन
पिछले दिनों इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने देश की पहली हरित हाइड्रोजन संचालित बस का अनावरण करके स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल किया है। गौरतलब है कि यह अभूतपूर्व पहल पर्यावरण अनुकूल परिवहन विकल्पों को बढ़ावा देते हुए जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आईओसी नवीकरणीय स्रोतों से बिजली का इस्तेमाल कर पानी के कणों को अलग कर 75 किलोग्राम हाइड्रोजन का उत्पादन करेगी। यह हाइड्रोजन प्रायोगिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में चलने वाली दो बसों में इस्तेमाल किया जाएगा।
बताते चलें कि इंडियन ऑयल का फरीदाबाद स्थित शोध एवं विकास केंद्र फिलहाल प्रायोगिक तौर पर ही हरित हाइड्रोजन का उत्पादन कर रहा है। ध्यातव्य है कि हरित हाइड्रोजन के 30 किलोग्राम क्षमता वाले चार सिलेंडर से लैस बस 350 किलोमीटर दूरी तक दौड़ सकती है। इन सिलेंडर को भरने में 10-12 मिनट का समय लगता है। ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन के इस्तेमाल में खासियत यह है कि इससे सिर्फ पानी का भाप ही उत्सर्जित होता है। हानिकारक उत्सर्जक तत्वों के नदारद होने और ऊर्जा सघनता तिगुनी होने से हाइड्रोजन एक स्वच्छ एवं अधिक कारगर विकल्प के तौर पर उभर रहा है। बहरहाल, सरकार का कहना है कि वर्ष 2023 के अंत तक इंडियन ऑयल, हाइड्रोजन से चलने वाली बसों की संख्या को बढ़ाकर 15 तक ले जाएगी। इन बसों को दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में चिह्नित मार्गों पर संचालित किया जाएगा। बता दें कि सरकार की स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा को लेकर तमाम महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। भारत ने हाइड्रोजन एवं जैव-ईंधन जैसे नए ईंधनों के जरिये निम्न कार्बन विकल्पों की दिशा में कई कदम भी उठाए हैं। अगले दो दशक में वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाली नई ऊर्जा मांग में इन विकल्पों की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक होगी। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं गैस कंपनियां वर्ष 2030 तक सालाना 10 लाख टन का उत्पादन करने लगेंगी। घरेलू स्तर पर हाइड्रोजन की खपत चार गुना होकर 25-28 टन हो जाने का अनुमान है। हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन माना जा रहा है और यह भारत के शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों की दिशा में काफी अहम हो सकता है। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक हाइड्रोजन की वैश्विक मांग सात गुना तक बढ़कर 800 टन तक पहुंच सकती है। ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि हाइड्रोजन भारत का संक्रमणकालीन ईंधन बनने के लिए तैयार है, जो एक स्वच्छ और अधिक टिकाऊ भविष्य का मार्ग तैयार करेगा।
हरित हाइड्रोजन मिशन की हुई शुरुआत: भारत को हरित हाइड्रोजन का वैश्विक हब बनाने के उद्देश्य से केंद्र ने नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को लागू किया है। बताते चलें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल पहले ही राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के लिए 19,500 करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी को मंजूरी दे चुका है। बहरहाल, इस मिशन का उद्देश्य देश में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ाना और हरित हाइड्रोजन बनाने में उपयोग होने वाले प्रमुख घटकों के विनिर्माण को बढ़ावा देना है। इस योजना का प्रारंभिक लक्ष्य सालाना 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन तैयार करना है। विदित हो कि पिछले साल फरवरी में ही ऊर्जा मंत्रालय ने हरित हाइड्रोजन नीति को अधिसूचित किया था, जिसके तहत 2030 तक 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। इस तरह भारत इस मिशन के जरिए न सिर्फ अपनी जरूरत की स्वच्छ ऊर्जा पैदा कर सकता है, बल्कि दूसरे देशों को भी उपलब्ध करा सकता है। जिस तरह सौर ऊर्जा मिशन के लिए दुनिया के तमाम देशों ने भारत से हाथ मिलाया, उसी तरह हरित हाइड्रोजन उत्पादन में भी निवेश की स्वाभाविक अपेक्षा की जाती है। जाहिर है कि इससे 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में कटौती के अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में भी आसानी होगी। ध्यातव्य है कि अगर दुनिया के बड़े देशों से तुलना की जाए तो भारत का आज भी बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता बहुत अधिक है। भारत में बिजली के उत्पादन का करीब सत्तर फ़ीसदी हिस्सा कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से आता है। बहरहाल हमें अब कोयले से अलग हरित ऊर्जा की ओर अपना ध्यान अधिक से अधिक केंद्रित करना होगा, क्योंकि आने वाले समय में कोयले का स्रोत निश्चित ही खत्म हो जायेगा। लेकिन आज स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते प्रयास को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन लागत प्रभावी हो सकता है।
हाइड्रोजन ऊर्जा की राह में चुनौती: हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन की राह में चुनौतियां भी कम नहीं है। उल्लेखनीय है कि एक किलो हाइड्रोजन में एक किलो डीजल से करीब तीन गुना अधिक ऊर्जा होती है। परंतु हल्की होने के कारण सामान्य घनत्व पर एक किलो हाइड्रोजन को 11,000 लीटर जगह चाहिए जबकि एक किलो डीजल को केवल एक लीटर। इसके भंडारण और वितरण के लिए विशेष टैंकों में संकुचित करके रखना होगा या 250 डिग्री सेल्सियस ऋणात्मक दर पर तरल बनाना होगा। यह प्रक्रिया सीएनजी और एलपीजी के प्रबंधन से ज्यादा जटिल होती है। बिजली की कीमत के अनुसार हरित हाइड्रोजन प्रति किलोग्राम 3.5 डॉलर से 6.5 डॉलर मूल्य पर उत्पादित हो सकती है और आने वाले समय में नई तकनीक के जरिये पहले दो और फिर एक डॉलर प्रति किलो पर लाया जा सकेगा। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती भंडारण की होगी। हमें भंडारण की ऐसी सुविधा विकसित करनी होगी जिससे हाइड्रोजन ऊर्जा का वाणिज्यिक इस्तेमाल संभव हो सके।
(लेखक स्तंभकार हैं)