अज्ञान और भूल
भक्ति देने की चीज है लेने की नहीं। इस संसार में यहां हमारा और तुम्हारा अपना क्या है कि हम-तुम किसी को कुछ देंगें। हमारी और तुम्हारी क्या औकात? क्या दौलत? क्या समर्थता कि हम तुम किसी को कुछ देंगे और सहायता करेंगे? इस पर गहराई से सोच-विचार हमें करना चाहिए। हम-तुम यहां निमित मात्र हैं। हमारा-तुम्हारा यहॉ कुछ नहीं। यह पूरा का पूरा ब्रह्माण्ड, सृष्टि की रचना ईश्वर की है। यह प्रकृति, दृश्य जगत, सारी कृति उनकी है। उन्हीं का दिया हुआ जो कुछ हमारे-तुम्हारे पास है, उसे हम-तुम अपना समझने की मूर्खता करते हैं और मन में अहं पालते हैं कि हमारी संपति, हमारा कल-कारखाना, हमारी जायदाद, हमारा परिवार, हमारा तन, मन, धन। यह सब तुम्हारी भूल नहीं तो क्या? आखिर तुम जन्म लिया तो तुम्हारे पास क्या था। मां के गर्भ से उत्पन्न हुए तो तन खाली था, तन पर कुछ नहीं था। बचपन, युवा, बुढ़ापे के पश्चात् जब शरीर से प्राण का त्याग करते हैं तो शरीर पर जो कुछ है, उसे संसार वाले, घर वाले ले लेते हैं और मात्र सवा गज कपड़ा और बांस की ठठरी की शय्या ही इस दुनिया वाले तुम्हें देते हैं। तुम्हारा जमीन, जायदाद, संपति, घर, परिवार, पुत्र, पुत्री, मित्र, कुटुंब सब यही रह जाता है। कुछ तुम्हारे साथ अपना जाता नहीं। तुम्हारा तन भी अपना नहीं। उसे इस दुनिया वाले जलाकर भस्म कर देते हैं। पंचतत्वों से निर्मित शरीर पुन: पंचतत्वों में विलिन हो जाता है। फिर किस बात का अहं? किस बात की मूर्खता और भूल? किसकी जायदाद? किसकी सम्पति? किस बात का अहंकार, मन में पाले बैठे हैं? यही आपकी तुच्छता, आपकी स्वार्थपरता, आपकी नासमझी परमात्मा से आपको जुदा करके रखता है। परमात्मा के स्नेह, प्यार, शक्ति को प्राप्त करने से वंचित करके रखता है। परमात्मा तो दयासिन्धु, कृपानिधान, भक्तवत्सल हैं। वे तो भक्त की पुकार पर दौड़े गज, प्रहलाद, द्रौपदी की रक्षा, सहायता हेतु चले जाते हैं। अत: तुम अपने अहं का त्याग करो और उनसे प्रेम करो। सबका दाता वे ही हैं। अगर तुम चाहते हो कि परमात्मा का प्यार, स्नेह, शक्ति मिलें तो परमात्मा से प्रेम करने हेतु तुम इन तुच्छ विचारों, संकीर्णताओं की खाई को प्रेम, स्नेह, सहयोग, त्याग से पाटो तो तुम तुच्छ नहीं महान बनोगे, परमात्मा के जैसा। तुम स्वयं अल्प नहीं विभु की प्रतीक्षा करो। उसकी तरह विराट बनने की आकांक्षा मन में बनाओ। परमात्मा तुम्हारी इच्छा, कामना अवश्य पूरा करेंगें। लेकिन तुम्हें जो परमात्मा दिये हैं, उसे भूल जाओ कि वह मेरा है। मैं और मेरापन की जगह तेरा है। परमात्मा का सब है। मेरा यहां कुछ नहीं। इस भाव को मन-जिगर में उत्पन्न करो। परमात्मा तुम्हें अपनी तरह बना देंगें। वे ऐंठे रखने वाले अहंकारी का घमंड चूर-चूर करते हैं। बुद्ध की तरह सब त्यागकर उनकी शरणागत होने पर बुद्धत्व की प्राप्ति होगी। तुम उनकी तरह विराट हो जाओगे। परमात्मा कब किससे सब छीन लेंगें, कोई नहीं जानता? इसलिए अहंकार से बचे और समझे कि सब कुछ ईश्वर का, हमारा कुछ नहीं।