सांस्कृतिक बोध का परिचायक है भारत

सांस्कृतिक बोध का परिचायक है भारत
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डॉ. नवीन कुमार मिश्र

जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले रात्रि भोज के निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा था, जिसने भारत बनाम इंडिया के बीच देश भर में फिर से विमर्श खड़ा कर दिया कि देश का नाम क्या होना चाहिए? संविधान के अंग्रेजी संस्करण में इंडिया यानी भारत व हिंदी प्रति में भारत अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा, ऐसा लिखा है। भारत के विभाजन के बाद संविधान सभा में 18 सितंबर 1949 को डॉ. आंबेडकर ने संविधान के ड्राफ्ट प्रस्तुत करते हुए इंडिया दैट इज़ भारत कहा था। इसके विरुद्ध हरि विष्णु कामथ व सेठ गोविंद दास ने देश का नाम केवल भारत करने के लिए संशोधन की मांग की। संविधान सभा में 'भारत बनाम इंडियाÓ पर बहस तो चली थी कि इंडिया शब्द से गुलामी की अनुभूति होती है, लेकिन भारत के साथ-साथ इंडिया शब्द को भी अपना लिया गया। देश का नाम भारत हो इसके लिए वर्ष 2016 व 2020 में दायर याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि भारत व इंडिया दोनों नाम संविधान के अनुच्छेद एक में लिखे गए है, और यह व्यक्ति का निजी फैसला है कि उसे भारत कहे या इंडिया। इसके अलावा देश का एक और नाम हिंदुस्तान है, जो देश की जनता द्वारा आम बोल-चाल में प्रयोग किया जाता है। इन तीनों नामों की अलग-अलग ऐतिहासिक उत्पत्ति है।

राजा दुष्यंत व शकुंतला के पुत्र भरत एक चक्रवर्ती सम्राट हुए। सम्राट भरत के नाम पर ही देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। भारत संस्कृत के 'भ्रÓ धातु से बना है तथा उत्पन्न व निर्वाह जैसे अर्थ लिए है। भारत नाम से सांस्कृतिक श्रृंखला की कड़ियों को जुड़ने की अनुभूति होती है, जिसकी जड़े ऐतिहासिक है। परन्तु भारत की जगह जब इंडिया कहा जाता है, तब हमारी निरंतरता भंग होती दिखाई देती है। वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत तथा ब्राह्मण ग्रंथो में भारत का नाम से ही उल्लेख मिलता है। भारत से पुण्य-भूमि का अहसास होता है। महाभारत के भीष्म पर्व के 12वें अध्याय में कहा गया है कि इदं तु भारतं वर्षं यत्र वर्तामहे वयम्। पूर्वै: प्रवर्तितं पुण्यं तत्सर्वं श्रुतवानसि।। यानि जहां हम रहते है, वह पुण्यभूमि भारत है, यहीं हमारे पूर्वजों ने पुण्य किए हैं। यह सब मैंने आपको सुनाया। विष्णु पुराण में भारत के विषय में कहा गया है कि उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्तति:।। यानि समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो राष्ट्र है उसे भारतवर्ष, तथा उनकी संतानों को भारती कहते हैं।

इंडिया शब्द हमारे किसी प्राचीन ग्रंथ में न होकर उस समय से प्रयोग में आने लगा, जब से यूनानी भारत में आए। सिंधु नदी को यूनानी इंडस कहते थे और इंडस कहने के साथ इंडिया शब्द आया। यहां के निवासियों को 'इंडोईÓ कहा गया। हेरोडोटस ने 454 ईसा पूर्व इंडिका को बसे भू-भाग की पूर्वी सीमा बताया। यूनानियों में चौथी से तीसरी सदी ईसा पूर्व तक इंडिका भारत के लिए प्रचलित शब्द हो गया, जिसका विवरण टालमी, मेगास्थनीज व एरियन की रचनाओं में मिलता है। इसी प्रकार जब इरानी आए तो उन्होंने भारत के लोगों को हिंदुस्तानी कहा। फारसी में सिंधु को हिंदू कहा जाता है, क्योंकि स का उच्चारण ह के रूप में होता है। अंग्रेजों ने जब भारत को गुलाम बनाया तो भारत के लिए ब्रिटिश इंडिया नाम प्रयोग में लाने लगे। अंग्रेजों की मनसा भारत की शिक्षा पद्धति को बदलकर लंबे समय तक शासन करने की थी, जिसके निमित्त भारत में ऐसे लोग तैयार करने थे, जो रंग और खून से भारतीय हो, लेकिन विचारों और नैतिकता में ब्रिटिश हो, और इसमें कुछ हद तक सफल भी हुए। विभाजन के बाद पहले गवर्नर जनरल माउंटबेटन भारत के तथा मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के बने। तब जिन्ना इंडिया नाम पाकिस्तान के लिए चाहते थे, क्योंकि सिंधु (इंडस) नदी पाकिस्तान से होकर बह रही थी, परंतु ऐसा नहीं हो सका, परंतु इससे इंडिया शब्द की ऐतिहासिकता का पता चल जाता है, जो 76 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के लिए जिन्ना द्वारा मांगा जा रहा था।

दुनिया का कोई भी स्वाभिमानी देश औपनिवेशिक इतिहास का प्रतिधित्व करने वाले चिह्न और नाम स्वीकार नहीं करता है। विश्व के कई देश राष्ट्रवादी भावनाओं के प्रतिबिंब में अपने नाम बदल चुके है, जैसे सीलोन से श्रीलंका, आइवरी कोस्ट से कोटे डीÓआइवर, गोल्ड कोस्ट से घाना, सियाम से थाईलैंड, रोडेशिया से जिंबाब्वे, बर्मा से म्यांमार हो चुका हैं। फिलीपींस ने स्पेनिश औपनिवेशिक मानसिकता वाले नाम को बदलकर महारलिका करने का प्रयास कई बार किया, लेकिन असफल रहे। प्राचीन संस्कृति वाला हमारा देश भारत के नाम को क्यों नहीं अपना सकता है। हालांकि यह भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त नाम है और कानूनी मुद्दा भी नहीं है। यह मुख्य रूप से सार्वजनिक परिचितता का मामला है। भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुलामी के प्रत्येक अंश को खत्म करने तथा अपने विरासत पर गर्व करने का प्रण दिला चुके है, जो पंच प्रण का हिस्सा है। इसकी शुरुआत करते हुए नरेंद्र मोदी इंडोनेशिया की यात्रा पर गए तो अधिकृत घोषणा की गयी कि भारत के प्रधानमंत्री आसियान-इंडिया समिट में शामिल होने जा रहे है। इसके बाद जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने इंडिया नहीं बल्कि भारत नाम की रखी गई पट्टिका दर्शाती है कि वैश्विक स्तर पर अब देश को भारत के नाम से संदर्भित किया जाने की प्रबल संभावना है।

(लेखक भू-राजनीतिक मामलों के जानकार हैं)

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