भारतीय ग्रामीण संस्कृति और साहित्य

भारतीय ग्रामीण संस्कृति और साहित्य
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राज किशोर वाजपेयी

भारतीय ग्रामीण संस्कृति और साहित्य चिर-प्राचीन होकर सनातन भी है। मानवीय चेतना के उद्भव के ज्ञात इतिहास जितने प्राचीन हैं भारतीय वेद-साहित्य संपदा । वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृतियों से लेकर वर्तमान आधुनिक भारत की मूल संस्कृति का आधार ग्रामीण परिवेश और साहित्य की स्पंदित संवेदनाएं ही है। तुलसी की राम-कथा हो या बाबा नागार्जुन की कविता, फणेश्वरनाथ 'रेणुÓ के 'मैला-आंचलÓ जैसा उपन्यास हो या वृक्षों के नीचे सजती पंचायत, भजन, चौपाल, सब उस लोक-जीवन की ही झाँकी रचते हैं, जहाँ परम्पराएं, उत्सव के रुप में रूपायित हो इंडिया के कुहाँसे के बीच भारत के सूर्य का सदा उदय ही होता दिखता है।

कृषि और ऋषि परंपरा की विरासत संस्कृति का प्रवाह रचती है, जिससे भारतीय आत्मा आलोकित हो भारतीय साहित्य के स्वरूप को जीवंत बना देती है। जिस पर लिख कर कोई धनपत राय प्रेमचंद के नाम से विख्यात हो जाता है तो कोई अमृतलाल नागर कहलाता है पर भारतीय संस्कृति की गर्भ-नाल तो हमारी ग्रामीण कृषि आधारित उत्सव-शोभित परम्परा ही है जो होली,दिवाली, नव-रात्र, दशहरा, रक्षा-बंधन जैसे त्यौहार रचती है, जिसमें सामाजिक एक्य-भावना के संबंधों के सूत्र निहित है। रस बरसाती संस्कृति ही सार्थक साहित्य का निर्माण कर सकती है। लोकोक्तियां,मुहावरे, लोक चेतना का युग-घोष होते हैं जो संस्कृति की अदृश्य- सरस्वती का मिलन लोक- संस्कृति और लोक-साहित्य की गंगा-यमुना से करा देव-भूमि, प्रकाश की खोज में रत उस भारत का निर्माण करते हैं जहाँ साहित्य संवाद-शैली में ही रचा जाता है, विवाद त्याज्य है। फिर चाहे रामायण, महाभारत हो भगवत-गीता हो पुराण हो। सभी में वक्ता श्रोता की सार्थक उपस्थिति भारतीय संस्कृति, साहित्य में दर्शित है।

यहाँ की विशिष्टता बहस नहीं शास्त्रार्थ है

विभिन्न मतों संप्रदायो के होते हुये भी विश्व का स्वयं आयोजित सबसे बड़ा मेला कुंभ का है जो भारतीय काल-गणना पर आधारित हजारों बर्षो से अनवरत आयोजना का सामर्थ्यवान इतिहास रखता है। भारतीय संस्कृति और साहित्य की इतनी मूल्यवान स्थिति है कि यदि विश्व को परम्पराओं के उत्सव और संवेदनशील मानवीय संवेदनाओं के संगम में स्नान करने आचमन करने की चाह है तो उसे भारतीय ग्रामीण संस्कृति और ग्रामीण साहित्य की मानवोचित मूल्य-संपदाओं से एकाकार होना ही होगा जो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओतप्रोत विश्व- कल्याण की जननी है।

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