इंडी गठबंधन की बिगड़ने लगी सेहत
सवाल यह है कि इंडी गठबंधन की बैठक के बाद सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे ही क्यों बोले। जबकि इससे पहले हुई बैठकों के बाद कई दलों के नेता बोला करते थे। इतना ही नहीं, बैठक में यह भी कह दिया गया था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो-तीन लोग ही बैठेंगे। मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कम छिपाया ज्यादा। प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होते ही पहली खबर यह बाहर आई कि ममता बनर्जी ने बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था। जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। क्योंकि वह सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछे बिना एक कदम भी नहीं चल सकते। सोनिया-राहुल कहेंगे, तो वह कढ़ाई में सिर देने को तैयार हो जाएंगे, लेकिन किसी ममता, केजरीवाल के कहने पर नहीं। वैसे सोनिया गांधी इंडी गठबंधन का नेता खुद या मल्लिकार्जुन खड़गे को बनाना चाहती हैं, इसीलिए उन्होंने बेंगलुरु बैठक में यूपीए भंग करने का एलान किया था। फिर क्या कारण है कि खड़गे ने विरोध किया। कारण वही है जो खड़गे ने एक सवाल के जवाब में कहा। उन्होंने कहा कि पहले सरकार बनाने लायक सांसद तो जीत जाएं, प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाकर क्या होगा। यानि वह बलि का बकरा नहीं बनना चाहते। वह चाहते हैं कि बलि का बकरा राहुल गांधी को बनाया जाए। जबकि गठबंधन का कोई भी अन्य दल राहुल को नहीं चाहता।
खड़गे चाहते हैं कि राहुल नहीं तो कोई गैर कांग्रेसी बनाया जाए। फिर सबसे ज्यादा भारी नीतीश पड़ते हैं, जिन्हें लालू और पवार का समर्थन है। नीतीश की मेहनत से गठबंधन खड़ा हुआ है। इससे पहले जहां-जहां बैठकें हुई थीं, जेडीयू ने बैठक स्थल पर नीतीश कुमार को भावी पीएम बताने वाले के होर्डिंग लगवाए थे। 19 की बैठक से एक दिन पहले ममता बनर्जी और केजरीवाल की मीटिंग हुई थी, उसी मीटिंग में मल्लिकार्जुन का नाम आगे करने की रणनीति बनी थी। ममता और केजरीवाल दोनों का इस में दूसरा खेल भी है, दोनों मल्लिकार्जुन को पीएम का उम्मीदवार बनाने के बदले बंगाल, पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस को तीन-चार सीटों में निपटाना चाहते हैं। ममता के इस खेल से नीतीश कुमार खफा है, वह तो शुरू से ही गठबंधन का संयोजक बनना चाहते थे। लालू और तेजस्वी भी खफा हैं, क्योंकि वे नीतीश को बड़ा सपना दिखा कर मुख्यमंत्री पद खाली करवाना चाहते हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी का रास्ता साफ़ करने के लिए सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद के सभी उम्मीदवारों को एक-दूसरे से लड़वाने की रणनीति पर चल रही हैं। 19 दिसंबर की बैठक में यह साबित हो गया। ममता वैसे भी राहुल गांधी को किनारे करना चाहती हैं। इसका प्रमाण यह है उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री के मुद्दा बनने का ठीकरा भी ममता ने राहुल गांधी के सिर फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि अगर राहुल गांधी वीडियो न बनाते तो यह बड़ा मुद्दा नहीं बनता।
अब अखिलेश यादव का सुन लीजिए। वह कांग्रेस की साजिशों को समझ रहे थे। कांग्रेस की साजिश यह है कि वह मायावती को गठबंधन में लाना चाहती है। क्योंकि सपा का आधार तो सिर्फ यूपी में है, जबकि बसपा का आधार कई राज्यों में है। हाल ही के विधानसभा चुनावों में बसपा को हिन्दी बेल्ट के तीनों राज्यों में 1 से 3 प्रतिशत तक वोट मिले हैं। उसे तेलंगाना में भी 1.38 प्रतिशत वोट मिले हैं। राजस्थान में दो सीटें भी जीती हैं। खबर यह आ रही थी कि कांग्रेस और बाकी पार्टियां भी बसपा को गठबंधन में शामिल करवाना चाहती हैं। कहा यहाँ तक जा रहा था कि अगर मायावती के शामिल होने पर अखिलेश बाहर जाते हैं, तो बेशक चले जाएं। इसी रणनीति के चलते ही कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में उन्हें पांच सीटें देने से भी इनकार कर दिया था। अखिलेश यादव उसके बाद कई बार कांग्रेस के खिलाफ बोल चुके हैं। कांग्रेस तो क्या राहुल गांधी के जाति आधारित जनगणना को भी कांग्रेस का फ्रॉड बता चुके हैं। इसलिए अखिलेश यादव ने बैठक में कांग्रेस से मायावती पर अपना स्टैंड क्लीयर करने को कहा था। जिस पर राहुल गांधी ने कहा कि भाजपा को हराने के लिए सबको मिलकर चलना चाहिए। यह सुनते ही अखिलेश यादव ने दो टूक कह दिया कि अगर मायावती को लाया गया., तो वह गठबंधन से बाहर हो जाएंगे। हालांकि अगर ऐसा होता है कि मायावती आती हैं और अखिलेश यादव जाते हैं, तो यह अखिलेश यादव की राजनीतिक आत्महत्या होगी। क्योंकि वैसे भी उनके पल्ले यूपी में यादवों के अलावा कुछ बचा नहीं। ज्यादातर गैर यादव पिछड़े भाजपा के साथ जा चुके हैं। इसी तरह मायावती के पल्ले भी जाटवों के अलावा कुछ नहीं बचा, गैर जाटव दलित भी भाजपा के साथ जा चुके हैं। इन दोनों ही दलों को पता है कि इस बार मुसलमान कांग्रेस के साथ चले गए, तो उनकी दुकानें बंद हो जाएँगी। इसलिए मायावती इंडी गठबंधन में शामिल होने की संभावनाओं पर विचार कर रही हैं। लेकिन जैसे ही मायावती को खबर लगी कि अखिलेश यादव ने उन्हें गठबंधन में शामिल करने का विरोध किया है, उन्होंने अखिलेश को नसीहत देते हुए कहा है कि जो पार्टी गठबंधन में शामिल नहीं है, उसके बारे में किसी को टीका टिप्पणी करने की जरूरत नहीं। क्योंकि पता नहीं भविष्य में किसको किस की जरूरत पड़ जाए।
उनकी इसी टिप्पणी से साफ़ है कि वह गठबंधन में शामिल होने की खिड़की खुला रखना चाहती है। अखिलेश यादव और मायावती दोनों ही बहुत मुश्किल में फंसे हैं। दोनों को लगता है कि मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ चला जाएगा, तो उनका क्या होगा। 2009 में जब मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह को साथ ले लिया था, मुसलमान सपा से रूठ गए थे, जिसका फायदा कांग्रेस को हुआ था। सपा की 12 सीटें घट कर 23 रह गई थीं, और कांग्रेस की 12 सीटें बढ़कर 21 हो गईं थीं। बसपा की भी एक सीट बढ़कर 20 हो गई थी। हालांकि अब भाजपा इन सभी से ज्यादा मजबूत हो चुकी है, इसलिए कांग्रेस को लगता है कि उसके साथ पिछड़े और दलित न जुड़े तो सिर्फ मुस्लिम वोटों से कुछ नहीं होगा। इसलिए वह मायावती और अखिलेश और जयंत चौधरी तीनों को साथ लाना चाहती है। मायावती तो इसके लिए तैयार दिखाई देती हैं, लेकिन अखिलेश तैयार नहीं है। देखते हैं गठबंधन क्या रूप लेता है।
(लेखक देश के ख्यात समीक्षक एवं स्तंभकार हैं)