मानवतावादी दृष्टिकोण बदलने की पहल
किसी भी राष्ट्र का उत्थान वहां पर निवासरत लोगों के सामाजिक और आर्थिक विकास से सम्भव है। एक राष्ट्र के बहुआयामी विकास में शिक्षा महती भूमिका निभाती है। यही वजह है कि जिन देशों की शिक्षा व्यवस्था समृद्ध है। वो देश वैश्विक फ़लक पर अधिक समृद्ध और संपन्न हैं। विगत कुछ वर्षों में भारत ने भी तरक्क़ी के नित नए आयाम स्थापित किए हैं। जिसकी परिणीति यह हुई है कि भारत की पहचान वैश्विक परिदृश्य पर एक मज़बूत और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरी है। आज़ादी के अमृतकाल के दौरान भारत को जी-20 का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलना अपने आप में एक सुखद आश्चर्य की अनुभूति करने वाला विषय रहा। जी-20, दुनिया के 20 बड़े देशों का एक अंतर-सरकारी मंच है, जो दुनिया के बड़े भूभाग का प्रतिनिधित्व करता है। दुनिया की लगभग 85 प्रतिशत जीडीपी और 75 फीसदी ग्लोबल ट्रेड जी-20 देशों के पास है। विश्व की दो तिहाई आबादी भी जी-20 देशों में निवासरत है। भारत के पास नवम्बर 2023 तक इस समूह की अध्यक्षता रहने वाली है और इस दौरान भारत लगातार दुनिया को विभिन्न वैश्विक चुनौतियों से बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
भारत, लोकतंत्र की जननी है और 'वसुधैव कुटुम्बकमÓ की जिस अवधारणा को हम सदियों से आत्मसात करके आगे बढ़ रहे हैं। उसी को केंद्र में रखते हुए जी-20 की थीम 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्यÓ रखा गया है। वर्तमान समय में दुनिया तमाम तरह के संकटों के दौर से गुजर रही है। जलवायु परिवर्तन, विभिन्न देशों में गृह युद्ध की स्थितियों का निर्मित होना और कमज़ोर होती वैश्विक अर्थव्यवस्था इसी का हिस्सा है। शिक्षा का क्षेत्र भी एक तरह के संक्रमण काल से जूझ रहा है। जिसकी वजह से सतत विकास के लक्ष्यों को अर्जित करने में हम पिछड़ रहे हैं। आज दुनिया के सामने भुखमरी एक बड़ी समस्या हो सकती है तो दूसरी तरफ शिक्षा से वंचित बच्चों के आंकड़े हमें शिक्षण नीतियों में बड़े फेरबदल की दिशा में इशारा कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार दुनिया के 260 मिलियन बच्चें स्कूल का मुँह नहीं देख पाते हैं। ऐसे में जरा सोचिए कैसे सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति हो पाएगी? शिक्षा ही है, जो किसी देश के मानव संसाधन को कुशल और उपगोगी बनाती है। ऐसे में जी-20 देशों के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर कैसे बेहतर, न्यायसंगत, प्रासंगिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अवसर सृजित हो सके। इस दिशा में पहल की जा रही है।
भारत के नेतृत्व में जी-20 समूह के देश एक एजुकेशन वर्किंग गु्रप के तहत काम कर रहे हैं। जिसका उद्देश्य बुनियादी साक्षरता और प्रौद्योगिकी के जरिए पठन-पाठन का माकूल वातावरण तैयार करना है। गौरतलब है कि इसके लिए जी-20 शिक्षा कार्य समूह (एजुकेशन वर्किंग ग्रुप) की स्थापना साल 2018 में अर्जेंटीना की अध्यक्षता में की गई थी। एक मेजबान राष्ट्र के रूप में भारत, पिछली अध्यक्षताओं के तहत शिक्षा के क्षेत्र की समस्याओं के समाधान एवं शिक्षा से संबंधित ऐसे विचार-विमर्शों को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव लगातार कर रहा है जो कि शिक्षा की पूर्ण परिवर्तनकारी क्षमता को साकार होने से रोक रही हैं। इस भावना के अनुरूप कई ऐसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है। जिससे शिक्षा के क्षेत्र में युगांतरकारी परिवर्तन लाया जा सके। जी-20 के माध्यम से भारत ने दुनिया के सामने शिक्षा का एक नया खाका प्रस्तुत किया है। जो कहीं न कहीं विश्व की सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए लाभकारी है। भारत ने अपनी मेजबानी में शिक्षा कार्य समूह के सामने चार चरणों की एक रूप-रेखा पेश की है। जिसका पहला चरण बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान से सम्बंधित है। इसके दूसरे चरण में तकनीक की मदद से शिक्षा की पहुंच को ब़़ढावा देना, तीसरे चरण में भविष्य की जरूरत और कौशल विकास को ध्यान में रखना और चौथे और आखिरी चरण में शोध को बढ़ावा देना और साझेदारी सम्मिलित है।
साधारण सी बात है कि अगर दुनिया की 85 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व रखने वाले इन देशों की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आगामी भविष्य में दृष्टिगोचर हो जाते हैं, तो वैश्विक परिदृश्य व्यापक स्तर पर बदल जाएगा। पर्यावरण के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आ जाएगा। विश्व बंधुत्व और 'वसुधैव कुटुम्बकमÓ की भावना प्रगाढ़ होती परिलक्षित होगी और सबसे महत्वपूर्ण बात जो निकलकर आएगी वो ये होगी कि दुनिया के सामने एक ऐसा वैश्विक मॉडल उभरकर सामने आएगा, जहां दूसरी या तीसरी दुनिया जैसे शब्दों के लिए कोई स्थान शेष नहीं होगा। इतना ही नहीं, दुनिया इस तथ्य से भलीभांति अवगत है कि भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्ध विरासत रही है और नि: संदेह भारत की यही विरासत पुन: दुनिया के सामने भारतीयता का गौरव-गान कर रही है और हमारा देश 'वसुधैव कुटुम्बकमÓ के प्रस्तोता के रूप में उभरकर सामने आ रहा है।
भारत की अध्यक्षता में शिक्षा कार्य समूह (एजुकेशन वर्किंग ग्रुप) के अधिदेश में शिक्षार्थियों के सामने आने वाली बाधाओं को पहचानना और समझना शामिल है। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में हासिल की गई ताकतों को आगे बढ़ाने में मदद करना, विशेषकर शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग और शिक्षण के तरीकों, पाठ्यक्रम, सामग्री, मूल्यांकन और शिक्षाशास्त्र पर महत्वपूर्ण प्रतिबिंब को सक्षम बनाने के लिए बेहतर प्रयास कर सीखने के परिणामों को सुनिश्चित करना और 21 वीं सदी में आवश्यक कौशल, दक्षताओं, मूल्यों और दृष्टिकोण के लिए शिक्षा को अधिक प्रासंगिक बनाना है। साथ ही शिक्षा कैसे मानव कल्याण के काम आ सके। इसके लिए प्रयास किए जाने हैं। जी- 20 ने हरित अर्थव्यवस्था में सतत परिवर्तन का नेतृत्व करने के लिए उल्लेखनीय प्रतिबद्धता को भी व्यक्त किया है। दुनिया ने कई बार वैश्विक मंचों से देखा और सुना है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कितने संजीदा हैं। ऐसे में जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी दुनिया को राह दिखाने का काम आगामी समय में भारत के नेतृत्व में जी-20 समूह करेगा।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनिया गुटेरेस की मानें तो दुनिया का 80 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन जी-20 के देश करते हैं। ऐसे में 'लाइफ़ मिशनÓ इस क्षेत्र में कारगर साबित हो सकता है। लाइफ मिशन को कैसे सफ़ल बनाना है? इसके बारे में हमारा देश काफी सज़ग है और दुनिया को इस मामले में शिक्षित करने का माद्दा भारत रखता है। जी-20 के माध्यम से, भारत का लक्ष्य कार्य और समाज के भविष्य के संदर्भ में मूलभूत शिक्षा, आजीवन कौशल अधिग्रहण और उच्च शिक्षा की भूमिका पर विशेष जोर देने के साथ स्थिरता पर अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई को उत्प्रेरित करना है और जी- 20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता लेते हुए भारत का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल में अंतर को पाटने के लिए जी-20 देशों के साथ मिलकर काम करना है। जिस दिशा में लगातार प्रयास जारी है। जी-20 शिखर सम्मेलन की थीम, 'वसुधैव कुटुंबकमÓ या 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्यÓ, भारत की प्राचीन मान्यता से मेल खाती है। चाहें हम कोरोना काल की बात करें या जलवायु परिवर्तन से निपटने की भारत की प्रतिबद्धता की। भारत लगातार वैश्विक समस्याओं के निराकरण और वंचित लक्ष्यों की प्राप्ति में विशेष योगदान दे रहा है।
(लेखिका डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर की कुलपति हैं)